राजद में टूट की आशंका के बीच सोनिया की तर्ज पर राबड़ी थामेंगीं पार्टी की बागडोर!
पटना। लालू यादव ने बड़े अरमानों के साथ तेजस्वी को अपनी विरासत सौंपी थी लेकिन वे राजनीति में 'बच्चा' साबित हुए। अपनी बचकाना हरकतों से उन्होंने सबसे अधिक विधायकों (79) वाले दल, राजद को मजाक का विषय बना दिया है। वे लालू-राबड़ी की भी बात नहीं मान रहे। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की सलाह को रद्दी की टोकरी में फेंक दे रहे हैं। और तो और वे पटना आने की बात कह कर भी मुकर जा रहे हैं। उनके रवैये से पार्टी के नेता और कार्यकर्ता खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं। राजद में अब तेजस्वी के खिलाफ अंदर ही अंदर आग सुलग रही है। कुछ भी हो सकता है। राजद के कई विधायकों को अब महसूस हो रहा है कि इस दल में उनका कोई भविष्य नहीं है। तेजस्वी यादव की वो कूवत नहीं कि उन्हें जीत दिला सकें। केवल लालू के नाम से नैया पार नहीं लगने वाली क्यों कि जदयू-भाजपा की ताकत लगातार बढ़ रही है। चुनौती कठिन है और राजद का कोई माथ-मालिक नहीं है। राजद भी अब कांग्रेस की राह पर है। 'युवराज' के पलायन के बाद अब राजद के नेता भी राबड़ी देवी को ही कमान संभालने पर जोर दे रहे हैं। राबड़ी देवी राजद की राष्ट्रीय उपाध्क्ष हैं और वे सभी नेताओं को एक साथ लेकर आगे बढ़ सकती हैं। यानी सोनिया गांधी की तरह राबड़ी देवी को भी संकटकाल में दल की बागडोर थामनी होगी।
पार्टी में तेजस्वी के खिलाफ गुस्सा
राजद में अगर कोई बड़ी टूट हो जाए तो अचरज नहीं। जदयू ने जाल फेंक दिया है, दाना डाल दिया है, बस परिंदों के आने का इंतजार है। शुक्रवार को राजद की अहम बैठक रद्द किये जाने के बाद से स्थितियां तेजी से बदलने लगी हैं। लालू के पुत्र होने की वजह से तेजस्वी को जो अहमियत हासिल थी, अब वो खत्म हो रही है। दल में इस बात को लेकर नाराजगी पैदा हो गयी है कि तेजस्वी अपने स्वार्थ के लिए राजद को रसातल में ले जा रहे हैं। बिना संघर्ष किये ही उन्हें ऊंचा ओहदा मिल गया है इसलिए वे इसका महत्व नहीं जान रहे। एक आदमी के चक्कर में पार्टी बर्बाद हो रही है। कभी राजद के नाम का सिक्का चलता था, आज लोग उस पर हंस रहे हैं। अब राजद में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि राबड़ी देवी आगे बढ़ें और हालात को संभालें वर्ना सब कुछ खत्म हो जाएगा। चर्चा है कि राजद के कई विधायक सामाजिक न्याय में आस्था रखने वाले जदयू की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि भविष्य में नीतीश ही उनकी चुनावी कश्ती पार लगा सकते हैं। जदयू भी खुद को मजबूत करने के लिए राजद के विधायकों पर नजर गड़ाये हुए है। इस बात को लेकर राजद के वरिष्ठ नेता और डरे हुए हैं।
क्यों राजद से विमुख हैं तेजस्वी ?
बार बार आग्रह के बाद भी तेजस्वी आखिर राजद में सक्रिय क्यों नहीं हो रहे ? किस बात से रूठ कर दिल्ली में बैठे हैं ? कहा जा रहा है कि जब तेजप्रताप को पार्टी से निकालने की उनकी मांग खारिज हो गयी तो उन्होंने खुद को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की शर्त रख दी। तेजस्वी की मंशा है कि वे राजद का कार्यकारी अध्यक्ष बनकर दल पर अपना प्रभुत्व स्थापित करें। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू य़ादव जेल में हैं। अगर भविष्य में सुप्रीम कोर्ट ने सजायाफ्ता व्यक्ति को किसी दल के अध्यक्ष बनने पर रोक लगा दी तो राजद की कमान खुद ब खुद उनके हाथ में आ जाएगी। लेकिन लालू यादव तेजस्वी की इस मांग को भी मानने के मूड में नहीं है। तेजस्वी के लगातार ना नुकुर के बाद तो लालू अब और सख्त हो गये हैं।
अब बिना तेजस्वी के राजद की कल्पना
पार्टी के तीन बड़े नेता संकेत कर चुके हैं कि अब राजद को बिना तेजस्वी के ही आगे बढ़ना चाहिए। तेजस्वी को मनाने में वक्त जाया करने से बेहतर है कि भविष्य के राजनीतिक कार्यक्रम तय किये जाएं। राजद के उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी, रघुवंश प्रसाद सिंह और विधायक भाई वीरेन्द्र ने कह चुके हैं कि एक व्यक्ति के नहीं रहने से पार्टी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। राजद का जन्म संघर्षों से हुआ है और गरीब लोग आज भी इस पर सबसे अधिक भरोसा करते हैं। हालात जिस तरह से खराब हुए हैं अब वो तेजस्वी आने के बाद भी नहीं संभल सकता। इसलिए अब सारी निगाहें राबड़ी देवी पर ही टिक गयी हैं।