बुजुर्ग नेताओं पर कांग्रेस के भीतर से उठे सवाल, 200 से 44 सांसदों पर कैसे आ गए?
नई दिल्ली- लगातार दो लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त मिलने के बाद कांग्रेस अबतक इस नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है कि आखिर पार्टी को इस हालत में पहुंचाने के लिए कौन जिम्मेदार है। दूसरे लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था, लेकिन पार्टी सालभर बाद भी उनकी जगह कोई स्थाई नेता नहीं चुन पाई। वैसे राहुल गांधी कहने के लिए अध्यक्ष पद के दायित्व से मुक्त हैं, लेकिन उनका पार्टी पर दबदबा पहले की तरह ही कायम है। अब पार्टी के भीतर ही इस बात को लेकर घमासान मच गया है कि कांग्रेस की इस दुर्गति के लिए जिम्मेदार कौन है। कांग्रेस के अनुभवी और बुजुर्ग नेता बाकियों से आत्ममंथन करने को कह रहे हैं, जो युवा नेता सीधे तौर पर बुजुर्गों पर ही पार्टी की खस्ताहाल के लिए उंगलियां उठा रहे हैं।
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सोनिया के सामने सवाल- 200 से 44 पर क्यों आ गए हम?
लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव में बुरी तरह मात खाने के बाद कांग्रेस कर्नाटक और मध्य प्रदेश में सत्ता गंवा चुकी है। मध्य प्रदेश के सबसे युवा और ऊर्जावान नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। राजस्थान में बुजुर्ग नेता अशोक गहलोत और युवा नेता सचिन पालयट के बीच कुर्सी का दंगल जारी है। पार्टी अध्यक्ष समझ नहीं पा रही हैं कि शुरू कहां से किया जाए। कैसे पार्टी को पटरी पर लाया जाए। शायद इसी सोच के साथ गुरुवार को सोनिया गांधी ने राज्यसभा सांसदों की एक वर्चुअल मीटिंग बुलाई थी। जानकारी के मुताबिक इसमें बुजुर्ग और युवा नेताओं ने एक-दूसरे पर जिस तरह से उंगलियां उठाईं, उससे जाहिर हो गया कि वयोवृद्ध हो चुकी कांग्रेस के नेताओं में भी युवाओं और बुजुर्गों (या अनुभवी भी कह सकते हैं) के बीच सोच की खाई बहुत ही गहरी हो चुकी है।
कांग्रेस कहां से शुरू करे आत्ममंथन ?
खबरों के मुताबिक इस बैठक में पूर्व केंद्रीय मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि पार्टी को हार के कारणों के लिए आत्ममंथन करने की जरूरत है। एक और बुजुर्ग नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने भी इस बात पर जोर दिया कि लोगों के बीच जाकर पता करना होगा कि वे कांग्रेस से दूर क्यों हो गए हैं। जानकारी के मुताबिक इस दौरान युवा नेता और राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले और नए-नए राज्यसभा सांसद बने राजीव साटव ने जो कुछ भी कहा, उससे कांग्रेस के युवा और बुजुर्ग नेताओं के बीच की दूरी खुलकर सामने आ गई। उन्होंने भोपाल से लेकर जयपुर तक का हवाला देकर बताया कि ऊपर के स्तर पर किस तरह से एक शून्य की स्थिति सी बन गई है।
यूपीए-2 के समय से मंथन हो- राहुल के करीबी सांसद
इतना ही नहीं साटव ने यहां तक कह दिया कि आत्ममंथन हो और यूपीए-2 के समय से ही हो, जिसके चलते हम 200 से 44 सांसदों पर आ गए। वर्चुअल मीटिंग में शामिल रहे एक सांसद ने साटव की बातों को उनके शब्दों में कुछ यूं बयां किया, 'हर तरह से आत्ममंथन होना चाहिए.......लेकिन यह भी देखना चाहिए कि हम 44 पर कैसे पहुंच गए। 2009 में हम 200 प्लस थे। अब आप सभी लोग ये कह रहे हैं (कि आत्ममंथन की जरूरत है)। आप सभी लोग उस समय मंत्री थे। स्पष्ट रूप से कहता हूं कि यह भी देखा जाना चाहिए कि आप लोग कहां पर नाकाम हो गए। आपको यूपीए-दो के समय से आत्ममंथन करना चाहिए।' 46 साल के साटव यूथ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं और अभी गुजरात प्रदेश कांग्रेस के इंचार्ज हैं और साथ ही साथ सीडब्ल्यूसी में स्थाई आमंत्रित सदस्य भी हैं। साटव ने बुजुर्ग नेताओं को जिस वक्त आईना दिखाने की कोशिश की, उस समय सोनिया-मनमोहन समेत सभी बड़े नेता भी मौजूद थे। खबरों के मुताबिक पूर्व पीएम ने इसपर टोकने की भी कोशिश की।
कांग्रेस में चापलूसों को पुरस्कृत कौन कर रहा है?
सूत्रों के मुताबिक पंजाब से कांग्रेस सांसद और पार्टी के वरिष्ठ नेता शमशेर सिंह ढुल्लो ने युवा नेताओं के इस रवैये पर फौरन पलटवार कर दिया। उन्होंने साफ आरोप लगा दिया कि 'वरिष्ठ लोगों को नजरअंदाज किया जा रहा है' और 'चापलूसों को पुरस्कृत दिया जा रहा है। ' उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नेताओं ने अपने खून और पसीने से पार्टी को खड़ा किया है, युवा नेताओं ने नहीं किया है। उन्होंने कहा, 'पार्टी में चाटुकारिता प्रबल है और संबंधों के आधार पर पार्टी में पद और पदोन्नति दी जा रही है, योग्यता और वरिष्ठता के आधार पर नहीं।'
यूपीए-2 को अंदर से किसने नाकाम किया ?
पार्टी में युवा और बुजुर्ग खेमे में खिंची इस तलवार की पुष्टि पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी के ट्वीट ने कर दिया है। उन्होंने 4 प्वाइंट में इन खबरों पर इस तरह से प्रतिक्रिया दी है, '1-2014 में कांग्रेस की हार के लिए क्या यूपीए जिम्मेदार था एक जायज सवाल है और इसे जरूर देखना होगा? 2- यह भी उतना ही जायज है कि क्या यूपीए को अंदर से नाकाम किया गया? 3- 2019 की हार का भी जरूर विश्लेषण होना चाहिए। 4- 6 साल बाद भी कानून के सामने यूपीए के खिलाफ कोई भी आरोप टिक नहीं पाए गए हैं।'