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कृषि कानून 2020 को निरस्त करने पर अड़े किसानों की मंशा पर उठ रहे हैं सवाल

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नई दिल्ली। मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानून 2020 में किए गए प्रावधानों को लेकर हरियाणा और पंजाब के किसानों का धरना-प्रदर्शन 12वें दिन में प्रवेश कर चुका है, लेकिन अभी तक सरकार और किसानों के बीच बातचीत किसी समाधान तक नहीं निकल सका है। मोदी सरकार का दावा है कि किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए लाए गए ऐतिहासिक कानून में किसानों की हितों को ध्यान रखा गया और कानून से उन्हें किसी प्रकार का खतरा नहीं है, लेकिन किसान एमएसपी, मंडी और एपीएमसी एक्ट खत्म होने का हवाला देकर कृषि कानूनको रद्द करने की मांग पर अडिग हैं।

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आखिर किसान को सरकार की बातों पर भरोसा क्यों नहीं हो रहा है?

आखिर किसान को सरकार की बातों पर भरोसा क्यों नहीं हो रहा है?

सवाल यह है कि आखिर किसान को सरकार की बातों पर भरोसा क्यों नहीं हो रहा है, जबकि कृषि कानून में एमएसपी, मंडी और एपीएमसी एक्ट का खत्म करने की बात नहीं कही गई है। इसकी बार-बार सफाई और भरोसा मोदी सरकार लगातार देती आ रही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों को भरोसा दिलाते हुए कह चुके हैं कि कृषि कानून में एमएसपी पर सरकारी खऱीद को बंद नहीं किया है, बल्कि किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए किसानों को फसल मंडी से बाहर बेचने का विकल्प दिया है और मंडी में फसलों खरीद पहले की तरह यथावत जारी रहेगी, लेकिन किसान मान नहीं रहे हैं।

ऐसे में किसान आंदोलन की मंशा पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं

ऐसे में किसान आंदोलन की मंशा पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं

ऐसे में किसान आंदोलन की मंशा पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अब तक किसान और सरकार के बीच हुए कई बैठकों में सरकार ने किसानों की आशंकाओं को दूर करने की कोशिश करते हुए बातचीत के लिए आए किसान प्रतिनिधियों से कृषि कानून में समस्या और उसके निदान के लिए कई बार सुझाव मांग चुकी है, लेकिन किसान प्रतिनिधि सुझाव देना या संशोधन की मांग की बजाय केवल कृषि कानून 2020 को रद्द करने पर अमादा हैं, जिसका आशय़ यह निकाला जा रहा है कि किसानों को कृषि कानून से कोई दिक्कत नहीं है, बल्कि यह आंदोलन सरकार को झुकाने की साजिश है।

कृषक हितों से इतर मोदी सरकार विरोधी में सिमटता जा रहा है आंदोलन

कृषक हितों से इतर मोदी सरकार विरोधी में सिमटता जा रहा है आंदोलन

माना जा रहा है कि किसान आंदोलन कृषि और कृषक हितों से इतर हटकर मोदी सरकार विरोधी आंदोलन में सिमटता जा रहा है। य़ह ठीक सीएए और एनआरसी के खिलाफ शुरू हुआ सरकार विरोधी आंदोलन बनकर रह गया है। यह इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि चौथे दौर के बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जब किसानों से बातचीत के दौरान एमएसपी को संवैधानिक दर्जा दिलाने की बात कहीं तो तब भी किसान कृषि कानून 2020 को निरस्त करने की जिद पर अड़े रहे, जबकि एमएसपी को कानूनी दर्जा मिलने से उक्त आशंका का विराम लगना स्वाभाविक था, जिसको मुख्य मुद्दा बनाकर किसान आंदोलनरत हैं।

किसान आंदोलन की आड़ में राजनीतिक दल अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं

किसान आंदोलन की आड़ में राजनीतिक दल अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं

ऐसी आशंका जताई जा रही है कि किसान आंदोलन की आड़ में राजनीतिक दल अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश कर रही है और उन्होंने सरकार को झुकाने के लिए किसानों को अपना मोहरा बनाया हुआ है। यह इसलिए संभव है, क्योंकि किसान किसी भी मुद्दे को लेकर अभी तक क्लीयर नहीं है कि वो आखिर किस लिए आंदोलनरत हैं। सरकार जब उनसे सुझाव के लिए पूछती है कि कानून में कहां उन्हें भ्रांति अथवा समस्या है, तो किसान बिना कोई तर्क-वितर्क किए कानून को निरस्त करने की बात कहकर उठकर चले जाते हैं।

कृषि कानून को लेकर अभी तक कोई संशोधन नहीं दे पाए हैं किसान

कृषि कानून को लेकर अभी तक कोई संशोधन नहीं दे पाए हैं किसान

ऐसे में सरकार संवैधानिक प्रक्रियाओं से पारित कृषि कानून 2020 को कैसे निरस्त करने के बारे में राय बना सकती है, जब किसान कृषि कानून को लेकर कोई संभावित समस्या को रख नहीं रहे हैं। अभी तक किसी भी बैठक में किसानों की ओर से कृषि कानून में संशोधन को लेकर कोई सुझाव नहीं दिया गया है। किसान प्रतिनिधियों से सिर्फ एक रट्टा लगा रखा है कि जब तक कृषि कानून वापस नहीं लिया जाता है, वो तब तक सरकार के खिलाफ धऱना देते रहेंगे और सरकार इस ऊहापोह में हैं कि जहां समस्या हो, उसको दुरस्त किया जाए, जिससे किसान संतुष्ट हो सके।

यह पहली बार है जब बिना किसी मुद्दे के आंदोलन किया जा रहा है

यह पहली बार है जब बिना किसी मुद्दे के आंदोलन किया जा रहा है

यही कारण है कि किसान आंदोलन की समीक्षा कर रहे लोग भी हतप्रभ हैं। यह पहली बार है जब बिना किसी मुद्दे के आंदोलन किया जा रहा है। मतलब, सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा वाली कहावत चरित्रार्थ हो रही है। यह आंदोलन सीएए की तरह निर्मूल आधार पर खड़ा हुआ लगता है। सीएए के खिलाफ आंदोलनरत लोग भी मुस्लिम भाईयों की नागरिकता खत्म करने की आशंकाओं के बीच सड़कों पर कई महीनों तक जमा रहे, जिसका हासिल कुछ नहीं निकला, क्योंकि सीएए में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं था। ठीक इसी तरह एमएमसपी खत्म करने की निर्मूल आशंकाओं को लेकर धऱना दे रहे किसान भी सड़कों पर जमा है।

सरकार को झुकाने के इरादे से खड़े हुए आंदोलन में घुसे असमाजिक तत्व

सरकार को झुकाने के इरादे से खड़े हुए आंदोलन में घुसे असमाजिक तत्व

अब तक किसान आंदोलन से एक बात तो साफ हो गई है कि यह आंदोलन एक राजनीतिक आंदोलन है, जो सरकार को झुकाने के इरादे से खड़ी हुई है, जिसमें अब असमाजिक तत्व में घुसने लगे हैं। दिल्ली में सोमवार को गिरफ्तार किए पांच आईएसआई संदिग्ध इसके सबूत हैं। जैसा कि मोदी सरकार का अब तक का इतिहास रहा है, उससे नहीं लगता है कि यह आंदोलन ज्यादा दिन आगे टिक पाएगा। क्योंकि कांग्रेस समेत लगभग सभी दल 8 दिसंबर को बुलाए भारत बंद का समर्थन कर रही हैं। यह सीधे-सीधे दवाब की राजनीति से प्रेरित लगता है, क्योंकि सरकार से बातचीत में किसान प्रतिनिधियों के पास कुछ नहीं हैं।

विपक्ष कृषि कानून 2020 को वापस करवाने में कामयाब होना चाहती है तो..

विपक्ष कृषि कानून 2020 को वापस करवाने में कामयाब होना चाहती है तो..

विश्लेषकों की मानें तो विपक्ष किसान आंदोलन के जरिए मोदी सरकार पर दवाब बनाकर कृषि कानून 2020 को किसी तरह वापस करवाने में कामयाब होना चाहती है और अगर विपक्ष ऐसा करने में कामयाब होती है, तो 2024 लोकसभा चुनाव को लक्ष्य करते हुए विपक्ष मोदी सरकार में आए ऐसे सभी कानूनों को निरस्त करने के लिए भविष्य में इस्तेमाल कर 2024 लोकसभा चुनाव तक सरकार को उलझाए रखना चाहती है। इस क्रम में जम्मू-कश्मीर से हटाए गए विशेष राज्य के दर्जे वाले कानून और सीएए को भी शामिल किया जा सकता हैं।

कृषि कानून 2020 में उन्हीं बातों को जोड़ा गया है, जो कांग्रेस चाहती थी

कृषि कानून 2020 में उन्हीं बातों को जोड़ा गया है, जो कांग्रेस चाहती थी

उल्लेखनीय है मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानून 2020 में उन्हीं बातों को जोड़ा गया है, जिसकी मांग किसान आंदोलन के समर्थन भारतीय किसान यूनियन अपने मेनिफेस्टो 2019 में कर चुकी है। इसका प्रावधान किसान आंदोलन में अगुआ पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सरकार खुद पंजाब में कर चुकी है, जिसको आधार बनाकर कांग्रेस ने 2019 लोकसभा चुनाव में अपनी घोषणा पत्र में एपीएमसी एक्ट को खत्म करने का दावा किया था। यही वजह है कि किसान आंदोलन का सच कब का सतह पर आ चुका था, लेकिन कृषि कानून 2020 के खिलाफ आंदोलन की अधकचरी तैयारी ने अब पोल खोल दी है।

Comments
English summary
The sit-in demonstration by farmers of Haryana and Punjab has entered the 12th day regarding the provisions made by the Modi government in the Agriculture Act 2020, but till now the talks between the government and the farmers have not reached any solution. The Modi government claims that the landmark legislation brought to protect farmers from middlemen took care of the interests of farmers and does not pose any threat to them, but citing the end of farmer MSP, mandi and APMC Act, agriculture They are firm on the demand to repeal the law.
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