69 करोड़ की मालकिन उर्मिला मातोंडकर ने कांग्रेस पार्टी के 20 लाख दिए दान तो उठे सवाल
Urmila Matondkar: फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का मुख्यमंत्री राहत कोष में 20 लाख रुपये का दान देना, विवादों में आ गया है। कांग्रेस ने उन्हें 2019 में चुनाव लड़ने के लिए 50 लाख रुपये दिये थे। 30 लाख चुनाव में खर्च हुए और 20 लाख रुपये बच गये थे। लोकसभा चुनाव हारने के बाद उर्मिला ने सितम्बर 2019 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी तब उसके पैसे पर उनका कोई नैतिक अधिकार नहीं था। लेकिन जुलाई 2020 में उर्मिला ने कांग्रेस से मिले 20 लाख रुपये सीएम राहत कोष में दान कर दिये। मतलब, माल महाराज के, मिर्जा खेले होली। जब कांग्रेस के पैसे से उर्मिला अपनी राजनीति चमकाने लगीं तो सवाल उठने लगे। कांग्रेस ने उर्मिला मातोंडकर की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि पैसा चुनाव लड़ने के लिए मिला था, दान देने के लिए नहीं। अगर कोरोना राहत कार्य के लिए पैसा दान ही करना था तो यह कांग्रेस पार्टी के माध्यम से किया जाना चाहिए था। चूंकि उर्मिला अब शिव सेना की नेता हैं इसलिए कांग्रेस उन पर तीखे हमले कर रही है। लेकिन सवाल ये है कि उर्मिला जैसे अमीर उम्मीदवार को कांग्रेस ने चुनाव लड़ने के लिए 50 लाख रुपये क्यों दिये ? क्या कांग्रेस में सभी लोकसभा उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए 50 लाख रुपये मिलते हैं ? क्या यह पार्टी फंड पाने के लिए ही कांग्रेस में अधिकतर लोग चुनाव लड़ते हैं ? जीते तो ठीक। हारे तो भी ठीक, क्यों कि 20-25 लाख तो बच ही जाएंगे!
क्या सच बोल रही हैं उर्मिला?
अभिनेत्री से नेता बनी उर्मिला ने 2019 में कांग्रेस के टिकट पर उत्तरी मुम्बई सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा था। वे चुनाव हार गयीं थीं। उर्मिला कभी सफल अभिनेत्रियों में एक थीं। लोकसभा चुनाव में उन्होंने जो हलफनामा दिया था उसके मुताबिक उनके पास करीब 69 करोड़ रुपये की सम्पत्ति है। दिसम्बर 2020 में उर्मिला मातोंडकर कांग्रेस से शिवसेना में आ गयीं। शिवसेना ने उन्हें विधान परिषद के लिए नामित भी किया है। अब उनके 20 लाख रुपये दान पर कांग्रेस सवाल उठा रही है। कांग्रेस के मुताबिक, यह कांग्रेस का पैसा था। इसलिए उर्मिला मातोंडकर को बचा हुआ पैसा कांग्रेस को लौटा देना चाहिए था। दिये। उनके कांग्रेस छोड़ने के बाद भी यह पैसा बैंक में पड़ा रहा। हालांकि उर्मिला का कहना है कि उन्होंने महाराष्ट्र कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष बाला साहेब थोराट की अनुमति से यह पैसा दान दिया था। लेकिन इस मामले में बाला साहेब थोराट का कहना है, एक बातचीत के दौरान उर्मिला ने केवल यह बताया था कि उन्होंने बचे हुए पैसे दान कर दिये हैं। अनुमति जैसी कोई बात नहीं है।
चुनावी फंड की ‘माया’
कांग्रेस ने 2019 में 423 सीटों पर चुनाव लड़ा था और जीत मिली थी सिर्फ 52 पर। यानी उसके 371 कैंडिडेट चुनाव हार गये। तो क्या कांग्रेस में अधिकतर लोग सिर्फ पार्टी फंड पाने के लिए ही चुनाव लड़ते हैं। जीते तो बल्ले-बल्ले, हारे तो भी 'नकद नारायण' की कृपा। 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय मेरठ कांग्रेस के एक नेता ने कहा था, चूंकि पार्टी इस बार फंड नहीं दे रही है, इसलिए अधिकतर नेता कांग्रेस से किनारा कर रहे हैं। उस नेता ने सार्वजनिक रूप से बयान दिया था, पार्टी (कांग्रेस) विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए 50 लाख रुपये और लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए 1 करोड़ रुपये देती रही थी। लेकिन इस बार (2017) पार्टी चुनाव लड़ने के लिए यह फंड नहीं देगी। मेरठ कांग्रेस के एक नेता पर आरोप लगा था कि 2012 के विधानसभा चुनाव में उसने चुनाव में पूरे पैसे खर्च नहीं किये जिससे वह हार गया। चुनाव हारने के कुछ दिन बाद ही उसने एक शानदार मकान खरीद लिया था।
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हार तय जान कर भी लड़ते हैं चुनाव !
प्रणब मुखर्जी अपने संस्मरण 'द प्रेसिडेंसियल ईयर्स' में लिखते हैं, '2014 में लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया समाप्त हो गयी थी। कांग्रेस के कई प्रमुख नेता और मंत्री मुझसे मिलने राष्ट्रपति भवन आये थे। हैरानी की बात ये थी कि उनमें से किसी को भी कांग्रेस की जीत का भरोसा नहीं था।" यानी कांग्रेस के नेता हार तय जान कर भी चुनाव लड़ते हैं। उन्हें सार्वजनिक मंच पर कांग्रेस को मजबूत बताना पड़ता है। लेकिन वे अंदरुनी हालात से वाकिफ होते हैं। कांग्रेस लगातार कमजोर होती जी रही है लेकिन उसके टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों की लाइन लगी रहती है। आखिर ऐसा क्यों है ? चुनाव के समय कई दलों पर टिकट बेचने का आरोप लगता है। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू ये है कि चुनाव लड़ने के लिए पार्टियां भी पैसा देती हैं। कई लोग पार्टी फंड का पैसा बचाने के लिए जानबूझ कर चुनाव हार जाते हैं। ऐसा इसलिए क्यों कि उन्हें मालूम होता है कि पूरा पैसा खर्च कर देने के बाद भी वे चुनाव नहीं जीतने वाले। आरोप लगाया जाता है कि अब चुनाव लड़ना और जीतना पूंजीनिवेश का खेल हो गया है।