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पुलवामा हमला: हमले के एक साल बाद कैसे हैं CRPF के परिवारवाले और उनसे किए गए नौकरी के वादे

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नई दिल्‍ली। ठीक एक साल पहले दोपहर करीब तीन बजे जम्‍मू कश्‍मीर के पुलवामा से दिल तोड़ने वाली खबर आई। जम्‍मू कश्‍मीर नेशनल हाइवे पर सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) के काफिले को दक्षिण कश्‍मीर के पुलवामा में निशाना बनाया गया। एक आत्‍मघाती हमला और 40 जवानों की शहादत की उस घटना ने दिल तोड़ दिया। एक साल बाद आज पूरा देश उन बहादुरों को नमन कर रहा है। शहीदों के परिवार में भी जो जगह एक साल से खाली है, वह आज रह-रहकर जख्‍मों को कुरेद रही है। कई वादे किए गए थे और कई तरह की बातें परिवार वालों से हुईं, मगर आज तक न तो उन परिवारों की कोई सुध लेने वाला है और न ही वादों की किसी को परवाह है।

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अभी तक नहीं पूरा हुआ वादा

अभी तक नहीं पूरा हुआ वादा

इस हमलें में देश के हर कोने से आने वाले जवान शहीद हुए थे, मगर सबसे ज्‍यादा उत्‍तर प्रदेश के रहने वाले थे। अंग्रेजी अखबार हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स ने उत्‍तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के तहत आने वाले गांव टुडीहार बादल का पुरवा में रह रहीं 24 साल की संजू देवी की कहानी बयां की है। संजू से जब-जब उनके पति शहीद महेश कुमार का जिक्र किया जाता है, तो उनके आंसू थमने का नाम नहीं लेते हैं। संजू देवी ने अखबार के साथ बातचीत में बताया है कि कई नेता उनके घर आए लेकिन अभी तक परिवार को उनसे कोई मदद मिली हो, ऐसा नहीं हो पाया। उन्‍होंने बताया, 'इस घटना ने मुझे तोड़कर रख दिया। मेरे दो बेटे छह साल का समर और पांच साल का साहिल स्‍कूल जाते हैं। हमें वादा किया गया था कि उनकी पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद दी जाएगी मगर अभी तक यह पूरा नहीं हुआ है। अब मुझे उनकी पढ़ाई के लिए खर्च निकालने एक छोटे स्‍कूल में पढ़ाने को मजबूर होना पड़ रहा है।'

पति के नाम पर नहीं बना कोई मेमोरियल

पति के नाम पर नहीं बना कोई मेमोरियल

देवी अपने ससुराल में ही रह रही हैं और उन्‍होंने बताया कि पति के नाम पर उनसे पक्‍की सड़क, एक पार्क और मेमोरियल का वादा किया गया था और अभी तक इनमें से एक भी वादा भी पूरा नहीं हुआ है। पाकिस्‍तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्‍मद ने हमले की जिम्‍मेदारी ली थी। इस हमले के बाद भारत और पाकिस्‍तान जंग की कगार पर पहुंच गए थे। संजू देवी ने आगे बताया कि हमले के बाद उनके पति की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए छोटा सा आयोजन हुआ था। मेमोरियल न होने पर संजू देवी ने पति की तस्‍वीर पर फूल-माला चढ़ाकर उन्‍हें श्रद्धांजलि दी। संजू देवी से अलग शहीद महेश कुमार की मां 43 साल की शांति देवी का दर्द भी बहुत गहरा है।

नौकरी और पेंशन का वादा भी अधूरा

नौकरी और पेंशन का वादा भी अधूरा

शांति देवी ने बताया कि छोटे बेटे अमरेश को सरकारी नौकरी का वादा किया गया था मगर अभी तक पूरा नहीं हुआ है। मां कहती हैं कि अमरेश ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर ली है और अभी तक बेरोजगार है। न तो उनके पति और न ही उन्‍हें अभी तक पेंशन मिली है। इसके अलावा महेश कुमार के सम्‍मान में 1.5 एकड़ की जमीन देने का जो वादा किया गया था, वह भी अधूरा है। इसी परिवार की तरह ऐसे कुछ और परिवार हैं जो अभी तक सरकारी नौकरी मिलने वाले वादे के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं। कई परिवार तो ऐसे हैं जिनमें शहीद जवान ही रोजी-रोटी का एकमात्र जरिया थे। इसी तरह का एक परिवार आगरा में है जहां पर शहीद जवान कौशल कुमार रावत का परिवार रहता है।

शहीद का नाम तक ठीक से नहीं लिखा

शहीद का नाम तक ठीक से नहीं लिखा

कौशल कुमार के परिवार को वादे के मुताबिक 25 लाख रुपए दिए गए। छोटे बेटे विकास को सरकारी नौकरी का दिया ऑफर रोक दिया गया क्‍योंकि उसे अभी तक ग्रेजुएट होना बाकी है। लेकिन परिवार निराश है। निराशा की वजह है स्‍थानीय स्‍तर जो मेमोरियल बनाया गया है उस पर छोटे साइज में शहीद कौशल कुमार का नाम लिखा है जिसकी स्‍पेलिंग गलत है। जबकि पंचायत के मुखिया और दूसरे नेताओं के नाम बड़े अक्षरों में है और वह भी सही है। कौशल कुमार की पत्‍नी ममता रावत का कहना है, 'स्‍थानीय नेताओं ने मेरे पति के नाम का अपमान किया है।'

सरकारी स्‍कूल का नाम बदलने का अधूरा वादा

सरकारी स्‍कूल का नाम बदलने का अधूरा वादा

इसी तरह से बिहार के भागलपुर में राम निरंजन ठाकुर जो शहीद रतन कुमार ठाकुर के पिता हैं, सरकारी रवैये से निराश हैं। उनका कहना है कि बेटे के सम्‍मान में जिस गेट का वादा किया गया था उसका पूरा होना अब सपने की तरह लग रहा है। परिवार को अभी तक वित्‍तीय मदद का इंतजार है। छोटे बेटे के पास पंचायती राज विभाग में नौकरी तो है मगर अभी तक अपार्टमेंट देने का वादा पूरा नहीं हो सका है। राजस्‍थान के भरतपुर में रहने वाले जीतराम गुर्जर के परिवार को राज्‍य सरकार और सीआरपीएफ से 25 लाख रुपए मिले थे। लेकिन सरकारी नौकरी का वादा अभी तक अधूरा है। पिता राधेश्‍याम ने बताया, ' राजस्‍थान सरकार से दो मंत्री घर आए थे और उन्‍होंने गांव में सरकारी स्‍कूल का नाम जीतराम के नाम पर करने का वादा किया था। मगर अभी तक यह वादा अधूरा है।'

कुछ परिवार मगर हैं खुश

कुछ परिवार मगर हैं खुश

हालांकि कुछ परिवार जो भी मदद मिली उससे खुश हैं। उत्‍तर प्रदेश के शामिल जिले में रहने वाले नवीन कुमार जो शहीद प्रदीप कुमार के भाई हैं, कहते हैं राज्‍य सरकार और सीआरपीएफ ने अपने हर वादे को पूरा किया है। उन्‍होंने बताया, 'राज्‍य सरकार की तरफ से 20 लाख रुपए की मदद मिली और हर तरह का बकाया सीआरपीएफ ने क्‍लीयर कर दिया।' प्रदीप कुमार का एक बेटा है और उसकी उम्र 18 साल है और वह कॉलेज में है। उसकी सरकारी नौकरी के लिए तीन साल का एक्‍सटेंशन मांगा गया है।

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English summary
Pulwama Attack: what happened to the martyrs families and what about the promises.
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