दादा का बनाया कानून पोते उमर अब्दुल्ला के लिए बना मुसीबत, जानें कितने महीने के लिए बिना ट्रायल जा सकते हैं जेल
Two former Chief Ministers of Jammu and Kashmir have been booked for the Public Safety Act. The PSA law was enacted in 1978 by former Chief Minister Sheikh Mohammed Abdullah, grandfather of Omar Abdullah.Three months can go to jail without trial, Learn what is this law,दादा के बनाया कानून पोते उमर
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बेंगलुरु। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता महबूबा मुफ्ती व अन्य के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत गुरुवार को मामला दर्ज कर लिया गया है। सरकार के इस फैसले के बाद दोनों नेताओं की नजरबंदी और बढ़ जाएगी। इस काूनन के तहत दोनों नेताओं को बिना ट्रायल तीन महीने तक जेल भेजा जा सकता हैं। इससे पहले जम्मू-कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला पर भी पीएसए लगा दिया गया था। क्योंकि उन्होंने अपने प्रिवेंटिव डिटेंशन को चैलेंज किया था।
दरअसल, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद से दोनों नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था। दोनों को ही हिरासत में लिए छह महीने हो गए थे। इसे बढ़ाने के लिए अब सरकार ने पीएसए एक्ट लगा दिया है। उमर अब्दुल्ला को हरि निवास और महबूबा मुफ्ती को श्रीनगर में एम ए रोड पर डिप्टी सीएम के निवास पर रखा जाएगा। जानें ये कानून कैसे इन दोंनों के लिए औ बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है।
उमर के दादा ने इसलिए लागू किया था ये काूनन
कश्मीर के इन नेताओं के लिए ये कानून भले ही अब सिरदर्द बन गया हो, लेकिन इस कानून को लाने वाले ही यहीं के नेता थे। वो भी कोई और नहीं उमर अब्दुल्ला के दादा और पीएसए को राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री स्व शेख मोहम्मद अब्दुल्ला। उन्होंने वर्ष 1978 में इस कानून को लागू किया था। दरअसल यह कानून शेख अब्दुल्ला ने जंगलों के अवैध कटान में तस्करों पर शिकंजा कसने के लिए बनाया था। लकड़ी के तस्करों से निपटने के लिए लाया गए इस कानून के तहत बिना मुकदमे दो तक जेल में रखने का प्रावधान था। बाद में इसे उन लोगों पर भी लागू किया जाने लगा था, जिन्हें कानून व्यवस्था के लिए संकट माना जाता है।
अलगाववादियों को इसी कानून के तहत बंदी बनाया जाता है
पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन विधेयक को लागू करने से पूर्व चार अगस्त की मध्यरात्रि को श्रीनगर के सांसद और जम्मू कश्मीर में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारुक अब्दुल्ला को उनके घर में प्रशासन ने एहतियात के तौर पर नजरबंद किया था। उनके पुत्र पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को भी उसी रात एहतियातन हिरासत में लिया गया था। अलगाववादियों को भी अक्सर इसी कानून के तहत बंदी बनाया जाता रहा है।
जानिए क्यों पड़ी इस कानून की जरुरत
जन सुरक्षा कानून 1970 के दशक में जम्मू-कश्मीर में लकड़ी की तस्करी एक बड़ी समस्या बनती जा रही थी। कड़ा कानून नहीं होने की वजह से अपराधी आसानी से छूट जाते थे। इसके समाधान के लिए शेख अब्दुल्ला इस कानून को लेकर आए। जिसके बाद 1978 में यह कानून लागू किया गया। इसके बाद कश्मीर में 1990 के दौरान उग्रवाद चरम पर पहुंच गया था। इसे रोकने के लिए पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए यह कानून एक अहम हथियार बना। इसी दौरान तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रदेश में विवादास्पद सशस्त्र बल
क्या दो सालों तक बिना मुकदमा चलाए भेजा जा सकता है जेल?
यह कानून सार्वजनिक सुरक्षा का हवाला देते हुए किसी भी व्यक्ति को दो साल तक बिना मुकदमे गिरफ्तारी या नजरबंदी की अनुमति देता है। अब बिना ट्रायल के दोनों नेताओं को तीन महीने तक जेल में रखा जा सकता है। इस कानून के तहत गिरफ्तार या नजरबंदी को लेकर एक समिति समय-समय पर समीक्षा करती है। इस कानून को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसके तहत 16 साल से ऊपर के किसी भी व्यक्ति को बिना केस गिरफ्तार किया जा सकता था। 2011 में न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया गया। इस कानून के तहत दो साल तक बिना किसी सुनवाई के जेल में रखा जा सकता था, लेकिन वर्ष 2010 में इसमें कुछ बदलाव किए गए। पहली बार के उल्लंघनकर्त्ताओं के लिए पीएसए के तहत हिरासत अथवा कैद की अवधि छह माह रखी गई और अगर उक्त व्यक्ति के व्यवहार में किसी तरह का सुधार नहीं होता है तो यह दो साल तक बढ़ाई जा सकती है। यही नहीं यदि राज्य सरकार को यह आभास हो कि किसी व्यक्ति के कृत्य से राज्य की सुरक्षा को खतरा है, तो उसे 2 वर्षों तक प्रशासनिक हिरासत में रखा जा सकता है।
ये कहता है पीएसए काूनन
यदि किसी व्यक्ति के कृत्य से सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने में कोई बाधा उत्पन्न होती है तो उसे एक वर्ष की प्रशासनिक हिरासत में लिया जा सकता है। इस कानून के तहत हिरासत के आदेश डिवीजनल कमिश्नर या डिप्टी कमिश्नर द्वारा जारी किये जा सकते हैं। अधिनियम की धारा-22 लोगों के हित में की गई कार्रवाई के लिये सुरक्षा प्रदान करती है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार हिरासत में लिये गए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई मुकदमा, अभियोजन या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती।
तो क्या अब रिहा कर दिए जाएंगे उमर अब्दुल्ला ?
उमर ने किया था खत्म करने का वादा
एमेनेस्टी इंटनेशनल की साल 2010 में आई रिपोर्ट के मुताबिक सन् 1978 में जब से इसे लागू किया तब से अब तक इस कानून के तहत करीब 20,000 लोगों को हिरासत में रखा जा चुका था। अप्रैल 2019 में जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम और शेख अब्दुल्ला के पोते उमर अब्दुल्ला ने राज्य के लोगों के वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी ने विधानसभा चुनाव जीता तो इस कानून को खत्म कर दिया जाएगा। उमर ने अनंतनाग के खानबल में हुई चुनावी रैली में कहा था , 'अगर खुदा ने चाहा तो सत्ता में आने के कुछ ही दिनों के अंदर इसे खत्म कर दिया जाएगा और इसके तहत दर्ज सभी केसेज को भी वापस ले लिया जाएगा।'
पत्थरबाजों के खिलाफ कारगर कानून
हालिया समय में इस कानून का इस्तेमाल आतंकियों, अलगाववादियों और पत्थरबाजों के खिलाफ किया जाता रहा है। 2016 में आतंकी बुरहान वानी की हत्या के बाद कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान पीएसए के तहत 550 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया था। इस कानून के तहत कई पत्थरबाजों पर केस दर्ज हो चुके हैं। आतंकी मर्सरत आलम को भी इसी केस के तहत जेल में रखा गया था।
पीएसए कानून के तहत कुल 389 फिलहाल हिरासत में
बता दें जम्मू कश्मीर में जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत कुल 389 लोगों को फिलहाल हिरासत में रखा गया हैं। गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने राज्यसभा को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी थ। उन्होंने बताया कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान हटाए जाने के बाद से जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा कानून के तहत 444 लोगों को हिरासत में लेने के आदेश जारी किए गए थे। रेड्डी ने बताया कि वर्तमान में पीएसए के तहत 389 लोग हिरासत में हैं।