लोकसभा चुनाव 2019: उस्मानाबाद लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: महाराष्ट्र की उस्मानाबाद लोक सभा सीट से मौजूदा सांसद शिवसेना के रविन्द्र गायकवाड़ सांसद हैं। जिन्होंने साल 2014 में इस सीट पर राकांपा के पद्मसिंह बाजीराव पाटिल को 234, 325 वोटों से हराया था, रविन्द्र गायकवाड़ को 607, 699 वोट मिले थे तो वहीं पद्मसिंह बाजीराव पाटिल को 373, 374 वोटों पर संतोष करना पड़ा था। साल 2014 के चुनाव में इस सीट पर नंबर 2 पर एनसीपी और नंबर 3 पर बसपा थी। उस साल यहां कुल मतदाताओं की संख्या 17,26,793 थी, जिसमें से मात्र 11,18,151 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया था, जिसमें से पुरूषों की संख्या 6,12,411 और महिलाओं की संख्या 5,05,740 थी। आपको बता दें कि साल 2014 का चुनाव भाजपा और शिवसेना ने साथ-साथ लड़ा था।
उस्मानाबाद
लोकसभा
सीट
का
इतिहास
6
विधानसभा
सीटों
वाले
इस
संसदीय
क्षेत्र
में
साल
1952
में
पहला
लोकसभा
चुनाव
हुआ
था
जिसे
की
कांग्रेस
ने
जीता
था
और
तब
से
लेकर
1991
तक
इस
सीट
पर
कांग्रेस
का
ही
राज
रहा
लेकिन
उसकी
विजयी
यात्रा
पर
विराम
लगाया
1996
में
शिवसेना
ने
और
शिवाजी
कांबली
यहां
के
सांसद
बने,
हालांकि
इसके
दो
साल
बाद
हुए
चुनाव
में
यहां
पर
कांग्रेस
की
वापसी
हुई
लेकिन
1999
के
चुनाव
में
यहां
एक
बार
फिर
से
शिवसेना
जीती
और
उसका
राज
साल
2004
में
भी
कायम
रहा,
हालांकि
2009
के
चुनाव
में
इस
सीट
पर
एनसीपी
की
जीत
हुई
और
पद्मसिन्हा
पाटील
यहां
से
सांसद
बने
लेकिन
साल
2014
का
चुनाव
फिर
से
शिवसेना
ने
जीता
और
रविन्द्र
गायकवाड़
यहां
से
जीतकर
लोकसभा
पहुंचे।
हाल
ही
में
उस्मानाबाद
,
नाम
बदलने
की
मांग
को
लेकर
काफी
सुर्खियों
में
रहा
था,
शिवसेना
ने
महाराष्ट्र
सरकार
से
इस
शहर
का
नाम
बदलने
की
मांग
की
थी।
वैसे
आपको
बता
दें
कि
उस्मानाबाद
का
नाम
निज़ाम
-
मीर
उस्मान
अली
खान
के
नाम
पर
आधारित
है।
देवी
तुलजा
भवानी
के
कारण
यह
स्थान
पूरे
देश
में
लोकप्रिय
है।
7550
वर्ग
किलोमीटर
में
फैले
इस
शहर
में
नलदुर्ग
क़िला,
तुलजापुर,
गरीब
बाबा
मठ
जैसे
प्रसिद्ध
दर्शनीय
स्थल
हैं,
जिन्हें
देखने
के
लिए
अक्सर
लोग
यहां
आते
हैं।
इस
शहर
की
जनसंख्या
24,00,698
है,
जिसमें
से
81
प्रतिशत
लोग
गांवों
में
और
18
प्रतिशत
लोग
शहरों
में
रहते
हैं,
यहां
15
प्रतिशत
लोग
SC
और
2
प्रतिशत
ST
वर्ग
के
हैं।
अपने विवादित बयान की वजह से हमेशा सुर्खियों में रहने वाले रविन्द्र गायकवाड़ उस्मानाबाद से ही दो बार विधायक रह चुके हैं, दिसंबर 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 सालों के दौरान लोकसभा में उपस्थिति 65 प्रतिशत रही है और इस दौरान इन्होंने 34 डिबेट में हिस्सा लिया है और 288 प्रश्न पूछे हैं। उस्मानाबाद कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, उसने यहां पर 57 लेकर 91 तक लंबा शासन किया है लेकिन आज वो यहां जीत के लिए तरस रही है, हालांकि साल 2009 के चुनाव में उसके सहयोगी दल को यहां विजय हासिल की थी लेकिन साल 2014 की मोदी लहर में ये सीट शिवसेना के पास चली गई जिसका अब इस क्षेत्र में प्रभुत्व बढ़ गया है, फिलहाल साल 2014 से साल 2019 आते-आते सियासी हालात बदल चुके हैं, ऐसे में क्या इस सीट पर एक बार फिर से शिवसेना का कब्जा होगा, ये एक बड़ा सवाल है, जिसका जवाब जानने के लिए हमें चुनावी नतीजों का इंतजार करना होगा, देखते हैं इस बार यहां का सरताज कौन बनता है।
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