लोकसभा चुनाव 2019: त्रिपुरा पूर्व लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: त्रिपुरा पूर्व लोकसभा सीट से CPI(M)नेता जितेंद्र चौधरी सांसद हैं। उन्होंने साल 2014 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस नेता सचित्रा देबबर्मा को (Sachitra Debbarma) 4,84,358 वोटों के अंतर से हराया था। इस सीट पर जितेंद्र चौधरी को 6,23,771 वोट मिले थे, तो वहीं सचित्रा देबबर्मा को मात्र 1,39,413 वोटों पर संतोष करना पड़ा था। इस सीट पर नंबर तीन पर तृणमूल कांग्रेस और नंबर चार पर भाजपा थी। तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी को जहां 77,028 वोट मिले थे, वहीं दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी को केवल 60,613 वोट ही हासिल हुए थे। आपको बता दें कि यह सीट ST वर्ग के लिए सुरक्षित है।
उत्तर-पूर्वी सीमा पर स्थित त्रिपुरा प्रांत का क्षेत्रफल मात्र 10,491 वर्ग किमी है और यह गोवा और सिक्किम के बाद भारत का तीसरा सबसे छोटा राज्य है। त्रिपुरा को 1 नवंबर 1957 को केंद्रशासित क्षेत्र बनाया गया और 21 जनवरी 1972 को राज्य का दर्जा दिया गया। त्रिपुरा की अर्थव्यवस्था प्राथमिक रूप से कृषि पर आधारित है। यहां मुख्यत: छोटे पैमाने पर निर्माण कार्य होता है, जिसमें बुनाई, बढ़ईगिरि, टोकरी और मिट्टी के बर्तन बनाने जैसे कई कुटीर उद्योग शामिल हैं। त्रिपुरा की स्थापना 14वीं शताब्दी में माणिक्य नामक इंडो-मंगोलियन आदिवासी मुखिया ने की थी, त्रिपुरा का आधे से अधिक भाग जंगलों से घिरा है, जो प्रकृति-प्रेमी पर्यटकों को आकर्षित करता है, कहते हैं कि स्थानीय देवी त्रिपुर सुन्दरी के नाम पर यहां का नाम त्रिपुरा पड़ा। यह हिन्दू धर्म के 51 शक्ति पीठों में से एक है।त्रिपुरा का उल्लेख महाभारत, पुराणों और अशोक के शिलालेखों में मिलता है।
दिसंबर 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक सांसद जितेंद्र चौधरी की लोकसभा में उपस्थिति 82 प्रतिशत रही है, इस दौरान उन्होंने 115 डिबेट में हिस्सा लिया है और 289 प्रश्न पूछे हैं। जितेंद्र चौधरी आदिवासी राष्ट्रीय मंच के संचालक भी हैं। साल 2014 के चुनाव में यहां पर कुल मतदाताओं की संख्या 11,40,269 थी, जिसमें से केवल 9,51,110 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग यहां पर किया था, जिसमें पुरुषों की संख्या 4,89,156 और महिलाओं की संख्या 4,61,954 थी।
देश के बाकी हिस्से से अलग-थलग रहने, पहाड़ी भूभाग और जनजातीय आबादी के कारण त्रिपुरा में भी भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों की समस्याएं मौजूद हैं, त्रिपुरा में उग्रवाद के साथ-साथ समग्र विकास अहम मुद्दों में शामिल हैं। यहां लंबे वक्त से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी राज कर रही है लेकिन आज भी त्रिपुरा बहुत सारी मूलभूत जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहा है। फिलहाल तो यहां पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को पराजित करना आसान नहीं है लेकिन फिर भी राजनीति के पटल पर कोई भी चीज स्थाई नहीं होती है देखते हैं कि इस बार भी यहां मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी कि माकपा का राज रहता है या फिर कुछ हैरान कर देने वाले नतीजे हमारे सामने आते हैं।
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