मजाक में कहा करते थे टीएन शेषन- 'मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं', निष्पक्ष चुनाव के लिए सरकार से ली थी टक्कर
नई दिल्ली। चुनाव नियमों को सख्ती से लागू करवाने के लिए मशहूर और वर्ष 1990 से 1996 के बीच मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर अपनी सेवाएं दे चुके तिरुनेलै नारायण अय्यर शेषन यानी टीएन शेषन का रविवार रात निधन हो गया। उनकी उम्र 86 साल थी। चेन्नई स्थित उनके घर पर उन्हें कार्डियक अरेस्ट आया जिसके बाद अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी समेत कई बड़े दिग्गजों ने दुख जताया। टीएन शेषन को उनके कड़े रुख के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव किसी को नहीं बख्शा। विस्तार से जानिए टीएन शेषन के बारे में सबकुछ
Recommended Video
केरल के ब्राह्मण कुल में पैदा हुए थे टीएम शेषन, रह चुके थे कैबिनेट सचिव
शेषन का जन्म 15 दिसंबर 1932 को केरल के पलक्कड़ जिले में केरल के ब्राह्मण कुल में हुआ था। वो अपने 6 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनके पिता पेशे से वकील थे। आईएएस की परीक्षा में टॉप करने वाले टीएन शेषन नौकरशाह के पद पर रहते हुए कैबिनेट सचिव के पद पर पहुंचे। आपको बता दें कि शेषन पहले APS की परीक्षा में टॉपर रहे, उसके बाद उन्हेंने अगले साल (1954 में) 21 साल की उम्र में IAS की परीक्षा में टॉपर रहे थे।
कई भाषाओं में दक्ष थे टीएन शेषन, रमन मैग्सेस अवॉर्ड से नवाजा गया था
टीएन शेषन तमिलनाडु कैडर से 1955 बैच के IAS अधिकारी थे। वो भारत के 10वें चुनाव आयुक्त बने थे। उन्होंने 2 दिसंबर 1990 से 11 दिसंबर 1996 तक भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यभार संभाला। वे हिंदी, अंग्रेजी के अलावा तमिल, मलयालम, संस्कृत, कन्नड़, मराठी, गुजराती में दक्ष थे। टीएन शेषन ने भारत के 18वें कैबिनेट सचिव के रूप में 27 मार्च 1989 से 23 दिसंबर 1989 तक सेवा दी। सरकारी सेवाओं के लिए उनको साल 1996 में रमन मैग्सेसे अवॉर्ड से भी नवाजा गया था।
जहां पढ़े वहीं लेक्चरर बन गए शेषन, इन-इन पदों पर दी सेवाएं
शेषन ने चेन्नई के क्रिश्चियन कॉलेज से ग्रेजुएट की पढ़ाई की थी और वहीं पर कुछ समय के लिए लेक्चरर भी रहे। शेषन ने ऊर्जा मंत्रालय के डायरेक्टर, अंतरिक्ष विभाग के संयुक्त सचिव, कृषि विभाग के सचिव, ओएनजीसी के सदस्य समेत अन्य पदों पर अपनी सेवाएं दी। भारतीय नौकरशाही के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर काम करने के बावजूद वो चेन्नई में यातायात आयुक्त के रूप में बिताए गए दो वर्षों को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय मानते थे।
राष्ट्रपति का चुनाव लड़े थे शेषन, नारायण से हार गए
साल 1997 में टीएन शेषन ने राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ा था, लेकिन उनको जीत नहीं मिली थी। टीएन शेषन को केआर नारायण के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। मुख्य चुनाव आयुक्त के पद से रिटायर होने के बाद टीएन शेषन देशभक्त ट्रस्ट की स्थापना की और समाज सुधार में सक्रिय भूमिका निभाते रहे।
Read Also- कुत्ते को कार के पीछे बांधकर घसीट रहा था बाबू खान, VIDEO वायरल होने के बाद हुआ गिरफ्तार
निष्पक्ष चुनाव के लिए सरकार से भिड़ गए थे टीएन शेषन
टीएन शेषन को भारत का सबसे प्रभावशाली मुख्य चुनाव आयुक्त माना जाता था। शेषन को चुनाव में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देने के लिए याद किया जाता है। मुख्य चुनाव आयुक्त रहने के दौरान टीएन शेषन का तत्कालीन सरकार और नेताओं के साथ कई बार टकराव हुआ। हालांकि चुनाव की पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए शेषन पीछे नहीं हटे और कानून का कड़ाई से पालन कराया। खास तौर पर पर साल 1995 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से उनकी तनातनी की खबरें आज भी लोगों के जेहन में जिंदा हैं। राजनीतिक दलों और नेताओं के विरोध, उनपर किए गए अपमानजनक टिप्पणियों के बावजूद उन्होंने चुनाव कार्यों में सुधार के कार्य को नहीं छोड़ा। यही कारण है कि देश में जब भी कभी चुनाव होते हैं तो टीएन शेषण की याद आ ही जाती है।
Read Also: अयोध्या फैसले पर उर्दू मीडिया में निराशा, इन बड़े अखबारों ने लिखी ये बातें
बिहार से ही की थी चुनाव सुधार की शुरुआत
शेषन ने चुनाव सुधार की शुरुआत 1995 में बिहार से की थी. तब प्रदेश में बूथ कैप्चरिंग का मुद्दा काफी बड़ा था। बूथ लूट रोकने और सुरक्षा के बंदोबस्त पुख्ता करने के लिए चुनाव आयोग ने पहली बार कई चरणों में चुनाव कराने का फैसला लिया। चार चरणों में कराए गए चुनाव के लिए कई बार चुनाव की तारीखों में बदलाव भी किया गया था। पारदर्शी चुनाव के लिए केंद्रीय पुलिस बल का इस्तेमाल किया गया था, जिस कारण लालू यादव ने उनकी काफी आलोचना की थी।
पहचान पत्र का इस्तेमाल शेषन की वजह से शुरू हुआ
चुनाव में पहचान पत्र का इस्तेमाल शेषन की वजह से ही शुरू हुआ। शुरुआत में जब नेताओं ने यह कहकर विरोध किया कि भारत में इतनी खर्चीली व्यवस्था संभव नहीं है तो शेषन ने कहा था- अगर मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाए, तो 1995 के बाद देश में कोई चुनाव नहीं होगा। कई राज्यों में तो उन्होंने चुनाव इसलिए स्थगित करवा दिए, क्योंकि पहचान पत्र तैयार नहीं हुए थे।
मजाक में कहा करते थे शेषन- मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं
शेषन पर कांग्रेसी होने का ठप्पा लगा था। पर कांग्रेस खुद उनके फैसलों से परेशान थी। शेषन अक्सर मजाक में कहते थे कि मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं। कैबिनेट सचिव रहते हुए शेषन ने एक बार राजीव गांधी के मुंह से यह कहते हुए बिस्किट खींच लिया कि प्रधानमंत्री को वो चीज नहीं खानी चाहिए, जिसका पहले परीक्षण न किया गया हो।