मिलिए चीन और परमाणु मामलों पर करीबी नजर रखने वाले देश के नए विदेश मंत्री एस जयशंकर से
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरी बार पीएमओ पहुंचने वाले गैर-कांग्रेसी राजनेता हैं। गुरुवार को उनकी कैबिनेट के मंत्रियों को भी शपथ दिलाई गई। लेकिन इन सभी कैबिनेट मिनिस्टर्स में एक नाम चौंकाने वाला था और वह नाम है पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर का। एस जयशंकर, पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के उत्तराधिकारी और देश के नए विदेश मंत्री हैं। जयशंकर ने सारे समीकरणों और सभी राजनीतिक पंडितों को हैरान करते हुए पीएम मोदी की कैबिनेट में एंट्री ली है। एस जयशंकर वही अधिकारी हैं जिन्होंने अमेरिका के साथ हुई परमाणु डील में अहम रोल अदा किया था। जानिए कौन हैं जयशंकर और क्यों पीएम मोदी ने उन्हें सुषमा स्वराज के विकल्प के तौर पर चुना।
चार दशकों का अनुभव
एस जयशंकर, के सुब्रह्मण्यम के बेटे हैं जिन्हें देश का एक अग्रणी रणनीतिकार माना जाता है। 15 जनवरी 1955 को जन्में जयशंकर की शादी एक जापानी मूल की महिला के साथ हुई। उनके बेटे ध्रुव जयशंकर जहां विदेश नीति के जानकार हैं तो छोटे बेटे अर्जुन भी न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं। बेटी मेधा प्रोड्यूसर है। जयशंकर इंग्लिश और हिंदी के अलावा रशियन, तमिल, मैनड्रिन, जापानी और हंगरियन भाषा के जानकार हैं। गुरुवार को सूत्रों की ओर से जैसे ही यह जानकारी मिली कि जयशंकर को देश का अगला विदेश मंत्री बनाया जा सकता है, हर कोई हैरान रह गया। लेकिन जब उनके पिछले रिकॉर्ड को खंगाला गया तो समझ में आ गया कि उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें यह पद सौंपा गया है। जयशंकर देश के अकेले ऐसे अधिकारी हैं जिनके पास विदेश मंत्रालय में बतौर विदेश सचिव सेवा करने का चार दशकों का अनुभव है। एस जयशंकर को इसी वर्ष मार्च में राष्ट्रपति की तरफ से पद्मश्री से नवाजा गया है। एस जयशंकर चीन और अमेरिका में भारत के राजदूत रह चुके हैं।
डोकलाम विवाद को सुलझाने में बड़ा रोल
जयशंकर को एक ऐसे अधिकारी के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने पीएम मोदी की विदेश नीति को एक सही आकार देने का काम किया। जनवरी 2015 में उन्हें विदेश सचिव नियुक्त किया गया और उस समय उनकी नियुक्ति ने विवाद भी पैदा किया। जयशंकर रिटायर होने वाले थे और उन्हें सुजाता सिंह की जगह विदेश सचिव बनाया गया था। एस जयशंकर को चीन से जुड़े मसलों का अच्छा-खासा अनुभव है। वह चीन में बतौर राजदूत रहे हैं और उनके कार्यकाल में ही लद्दाख के डेपसांग और फिर जून 2017 में डोकलाम विवाद हुआ था। जयशंकर ने बखूबी इन मसलों को सुलझाया था। कहते हैं कि जयशंकर ने ही चीन के साथ पर्दे के पीछे बातचीत को आगे बढ़ाया और विवाद को सुलझाया।
परमाणु डील के नायक
साल 2007 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो उनके कार्यकाल में अमेरिका के परमाणु डील हुई। इस डील की शुरुआत साल 2005 में हो गई थी लेकिन इसे अंजाम तक पहुंचने में काफी टाइम लग गया था। जब यह डील सील हुई तो इसे एक मील का पत्थर माना गया और इसका श्रेय जयशंकर को दिया गया। एस जयशंकर 1977 बैच के आईएफएस ऑफिसर हैं। कहा जाता है कि जब साल 2013 में बतौर विदेश सचिव रंजन मथाई रिटायर होना चाहते थे तो तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह के जयशंकर को नियुक्त करना चाहते थे। लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया और सुजाता सिंह को विदेश सचिव बनाया गया।
रिटायरमेंट के बाद जुड़े टाटा ग्रुप से
जयशंकर को मॉस्को के अलावा यूरोप के कई देशों नियुक्त किया जा चुका है। इसके अलावा वह टोक्यो में भी नियुक्त रहे हैं। एस जयशंकर ने बतौर प्रथम सचिव और भारतीय पीसकीपिंग मिशन के साथ एक राजनीतिक सलाहकार के तौर पर भी अपनी सेवाएं दी हैं। रिटायरमेंट के बाद वह सरल 2018 में वह टाटा ग्रुप के साथ जुड़ गए और यहां पर उन्हें ग्लोबर कॉरपोरेट अफेयर्स का जिम्मा सौंपा गया।