Profile of Ranjan Gogoi:चीफ जस्टिस के खिलाफ की थी पीसी, राम मंदिर पर दिया ऐतिहासिक फैसला
बेंगलुरु। उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। इसके साथ ही पूर्व जस्टिस रंजन गोगोई की सियायी पारी की शुरुआत होगी। राज्यसभा को नामित किए जाने के बाद एक बार फिर चर्चा में आए गोगोई अपने निष्पक्ष फैसले, कर्मठता और बेहतर कामकाज के लिए हमेशा जाने जाते रहे हैं।
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हालांकि सर्वप्रथम गोगोई चर्चा में 2018 में तब आए थे जब उन्होंने तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेस करके सवाल खड़े किए थे। इतना ही नहीं राम मंदिर जैसे ऐतिहासिक फैसले समेत अन्य कई चर्चित केसों में फैसला सुना चुके हैं। न्याययिक व्यवस्था के पूरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने सख्त तेवर और ईमानदार छवि वाले न्यायाधीश के रुप में खुद को स्थापित किया।
चीफ जस्टिस के खिलाफ की थी प्रेस कान्फ्रेंस, उठाए थे सवाल
बता दें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने देश के सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा बनाए रखने के लिए भी आवाज उठाई। 12 जनवरी 2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के कार्य प्रणाली से नाराज गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट के तीन अन्य जजों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब सुप्रीम कोर्ट के जज एक साथ न्यायालय के आंतरिक मामलों को लेकर मीडिया के सामने सार्वजनिक रूप से आए थे। बता दें तब रंजन गोगोई सहित सर्वोच्च न्यायालय के चार न्यायाधीशों ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस करके तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के तौर-तरीकों को लेकर सार्वजनिक तौर पर सवाल खड़े किए थे।
चीफ जस्टिस के शीर्ष पद पर पहुंचने वाले पूर्वोत्तर राज्य के पहले जज
रंजन गोगोई का जन्म 18 नवंबर 1954 को हुआ। वह असम के पूर्व मुख्यमंत्री केशव चंद्र गोगोई के पुत्र हैं। 1978 में वो बार काउंसिल से जुड़े और गुवाहाटी हाई कोर्ट से वकालत की शुरुआत की थी। 28 फरवरी 2001 को वह गुवाहाटी हाई कोर्ट में स्थायी जज नियुक्त हुए। 2010 में गोगोई पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज नियुक्त किए गए और 12 फरवरी 2011 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। 23 अप्रैल 2012 को वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने। 3 अक्टूबर 2018 को रंजन गोगोर्द ने बतौर सीजेआई का कार्यभार संभाला था और 17 नवंबर 2019 को इस पद से सेवानिवृत्त हुए। भारत के पूर्वोत्तर राज्य से इस शीर्ष पद पर पहुंचने वाले वह पहले जस्टिस थे।
रिटायरमेंट के पूर्व सुनाया राम मंदिर पर ऐतिहासिक फैसला
491 साल पुराना वो केस जिसका इंतजार हर कोई बड़ी बेसब्री से कर रहा था, हर किसी के जेहन में ये सवाल गूंज रहा था कि अयोध्या में उस विवादित जमीन पर क्या बनेगा। इसका जवाब देते हुए सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने राम मंदिर और बाबरी मस्जिद की विवादित जमीन के पर अंतिम फैसला 9 नवंबर 2019 सुनाया। यह गोगोई के करियर का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक फैसला रहा। रिटायरमेंट के 8 दिन पहले वर्षों पुराने अयोध्या विवाद पर राम मंदिर निर्माण का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया। शीर्ष कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन को रामलला विराजमान को देने और मुस्लिम पक्षकार (सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड) को अयोध्या में अलग से 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया।
पूर्व जस्टिस को कोर्ट में किया था तलब
गोगोई ने सीजेआई बनने से पहले एक ऐसा फैसला लिया जिसके तहत पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू को कोर्ट में तलब किया गया, ऐसा पहली बार हुआ था। दरअसल काटजू ने केरल के एक बलात्कार कांड में कोर्ट के फैसले की जबरदस्त तरीके से आलोचना की थी। जिसके बाद उनको नोटिस जारी कर पेश होने का आदेश दिया गया। ये फरमान गोगोई ने ही सुनाया था।
सबरीमाला मामले को बड़ी बेंच को सौंपा
जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई की। साथ ही मामले को सुप्रीम कोर्ट की 7 सदस्यीय बड़ी बेंच को भेज दिया। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश जारी रहेगा जैसा कि कोर्ट 2018 में दिए अपने फैसले में कह चुका है।
अंग्रेजी और हिंदी समेत 7 भाषाओं में फैसला
अंग्रेजी और हिंदी समेत 7 भाषाओं में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को प्रकाशित करने का फैसला चीफ जस्टिस रहते हुए रंजन गोगोई ने ही लिया था। इससे पहले तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले सिर्फ अंग्रेजी में ही प्रकाशित होते थे।
सरकारी विज्ञापन में नेताओं की तस्वीर पर पाबंदी
चीफ जस्टिस के तौर पर रंजन गोगोई और पी. सी. घोष की पीठ ने सरकारी विज्ञापनों में नेताओं की तस्वीर लगाने पर पाबंदी लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से सरकारी विज्ञापन में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस, संबंधित विभाग के केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, संबंधित विभाग के मंत्री के अलावा किसी भी नेता की सरकारी विज्ञापन पर तस्वीर प्रकाशित करने पर पाबंदी है।
चीफ जस्टिस के ऑफिस को बताया पब्लिक अथॉरिटी
जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने चीफ जस्टिस के ऑफिस को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के दायरे में आने को लेकर फैसला सुनाया था इसमें कोर्ट ने कहा कि चीफ जस्टिस का ऑफिस भी पब्लिक अथॉरिटी है। लिहाजा चीफ जस्टिस के ऑफिस से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी जा सकती है।