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Profile of Manoj Sinha: यूपी के सीएम के लिए थे दावेदार, मोदी की प्रचंड लहर में हारे 2019 का चुनाव

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नई दिल्ली- नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और 61 वर्षीय भाजपा के कद्दावर नेता मनोज सिन्हा को जम्मू और कश्मीर का दूसरा उपराज्यपाल नियुक्त किया है। यह फैसला इसलिए किया गया है, क्योंकि वहां के उपराज्यपाल गिरिश चंद्र मुर्मू ने अपने पद से बुधवार को इस्तीफा दे दिया था। मुर्मू और सिन्हा में एक आधारभूत अंतर है। मुर्मू 1985 बैच के गुजरात कैडर के आईएएस ऑफिसर हैं और सिन्हा मंजे हुए राजनेता। ऐसे में आइए एक नजर डाल लेते हैं मनोज सिन्हा के व्यक्तिगत, राजनीतिक, प्रशासनिक जीवन और उनके अबतक के अनुभव पर। यहां गौर करने वाली बात ये है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सिन्हा रेल और संचार जैसे मंत्रालयों में काम कर चुके हैं और वे पेशे से एक इंजीनियर भी हैं।

प्रशासनिक अनुभव

प्रशासनिक अनुभव

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मनोज सिन्हा को पहले रेल राज्यमंत्री की जिम्मेदारी दी गई थी। फिर 2016 में उन्हें संचार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) की भी जिम्मेदारी दी गई। यह वही वक्त था, जब स्पेक्ट्रम की बिक्री में सरकार को बहुत मुनाफा हुआ था। मनोज सिन्हा को कॉल ड्रॉप की समस्या से निजात दिलाने का भी श्रेय दिया जाता है। प्रशासन में इनकी छवि लो-प्रोफइल, लेकिन बेदाग प्रशासक वाली रही है। उन्होंने मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में उत्तर प्रदेश के पिछड़े इलाकों में जिस तरह के विकास और लोक कल्याण के कार्यों बढ़ाया है, उससे इन्हें क्षेत्र में 'विकास पुरुष' के नाम से बुलाया जाता है। जम्मू-कश्मीर जैसे संघ शासित प्रदेश में उनकी तैनाती की जा रही है तो उनकी इसी छवि और अनुभव को ध्यान में रखा गया है, जो एक प्रशासक की तुलना में आम लोगों से ज्यादा आसानी से जुड़ सकते हैं। क्योंकि, जम्मू-कश्मीर के प्रशासक के लिए राजनीतिज्ञ और प्रशासक दोनों के हुनर की आवश्यकता है।

संसदीय और राजनीतिक जीवन

संसदीय और राजनीतिक जीवन

राजनीति में उनकी एंट्री 1989 में हुई जब वो भाजपा के सदस्य बने और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय परिषद में शामिल हुए। उन्होंने पहला लोकसभा चुनाव 1996 में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से जीता और 1999 के चुनाव में भी अपनी सीट बरकरार रखी। लेकिन, 2004 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 10 साल के इंतजार के बाद 2014 में उन्हें फिर गाजीपुर सीट से ही मोदी लहर में कामयाबी मिली और वे जीतकर संसद पहुंच गए। संसद में इनकी गिनती बेहतर प्रदर्शन करने वाले सांसदों में रही है। संसद में उपस्थिति के मामले में भी इनको सराहा जाता रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि इंडिया टुडे मैगजीन ने इन्हे पिछली लोकसभा में 7 सबसे ईमानदार सांसदों की सूची में शामिल किया था। यही नहीं सांसद निधि के लोक कल्याण के कार्यों के लिए भरपूर उपयोग के मामले भी ये दूसरे सांसदों के सामने एक मिसाल पेश कर चुके हैं। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इन्हें न केवल स्टार प्रचारक बनाया था, बल्कि अंतिम वक्त तक मुख्यमंत्री पद के लिए इन्हें पीएम मोदी और अमित शाह का सबसे पसंदीदा माना जाता था। लेकिन, स्थानीय समीकरण से ये तब सीएम तो नहीं ही बन पाए, 2019 में मोदी के प्रचंड लहर और क्षेत्र में विकास के कई कामों के बावजूद उन्हें लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।

शिक्षा और छात्र राजनीति

शिक्षा और छात्र राजनीति

पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के तेज-तर्रार नेता मनोज सिन्हा ने 70 के दशक के मध्य में आईआईटी-बीएचयू (पहले आईटी-बीएचयू ) में सिविल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया था। उनका सियासी करियर तभी शुरू हो चुका था, जब वे बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान अखिल भारतीय परिषद के सदस्य बने थे। 1982 में वे बीएचयू छात्र संघ के अध्यक्ष भी चुने गए। उन्होंने वहीं से सिविल इंजीनियरिंग में बी. टेक और एम. टेक की पढ़ाई पूरी की।

व्यक्तिगत जीवन

व्यक्तिगत जीवन

मनोज सिन्हा पेशे से राजनेता हैं तो उनके दिल में हमेशा से किसानी रही है। गाजीपुर के मोहनपुरा के रहने वाले सिन्हा की शादी नीलम सिन्हा से हुई है और उनका ससुराल बिहार के भागलपुर जिले का सुलतानगंज है, जहां से बाबा बैद्यनाथ (झारखंड) को जल चढ़ाने के लिए कांवड़िए गंगा से जल भरते हैं। मनोज सिन्हा के एक बेटे और एक बेटी हैं। ये जाति से भुमिहार हैं, जिसका बिहार की राजनीति में बहुत ही ज्यादा दबदबा है और यूपी की सियासत में भी काफी प्रभाव माना जाता है।

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English summary
Profile of Manoj Sinha: The contenders for the CM of UP, lost the 2019 elections in the fierce wave of Modi
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