लोकसभा चुनाव 2019: बिष्णुपुर लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की बिष्णुपुर लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद तृणमूल कांग्रेस के नेता सौमित्र खान हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 38 वर्षीय सौमित्र ने सीपीएम की सुष्मिता बाउरी को 1 लाख 49 हजार वोटों से हराया था। बिष्णुपुर पर्यटन हब होने की वजह से यह बंगाल के कई जिलों से अच्छी तरह कनेक्टेड है। सौमित्र खान को चुनने वाली जनता की बात करें तो 2014 में 1,466,921 लोगों का नाम वोटर लिस्ट में था। इनमें से 759,317 पुरुष और 707,604 महिलाए शामिल थीं। 2014 में यहां से 87 फीसदी वोट पड़े। यह एक आरक्षित सीट है।
पहली बार संसद पहुंचे सौमित्र ने मई 2014 से लेकर दिसंबर 2018 के बीच मात्र 13 सवाल सदन में किये। जबकि सवाल पूछने का राष्ट्रीय औसत 273 प्रश्नों का है। डिबेट की बात करें तो राष्ट्रीय औसत जहां 63.8 था औरे राज्य का औसत जहां 32.2 था, वहीं सौमित्र ने मात्र 10 परिचर्चाओं में हिस्सा लिया। इस बीच सौमित्र खान ने पश्चिम बंगाल के नाम से पश्चिम हटा कर बंगाल करने की मांग की। साथ ही उन्होंने बिष्णुपुर को हेरिटेज सिटी घोषित करने की मांग भी की। 65 प्रतिशत उपस्थिति होने पांच सालों में ससंद में दर्ज की।
बिष्णुपुर लोकसभा सीट लोकसभा सीट का इतिहास
बिष्णुपुर का राजनीतिक इतिहास भी लगभग बंगाल के राजनीतिक इतिहास के जैसा रहा है। यह सीट 1962 में अस्तित्त में आयी। पहली बार इस सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। पांच साल बाद जीत दोहरायी, लेकिन उसके बाद फिर कभी कांग्रेस पार्टी यहां नहीं जीत पायी। यूं कहिये कि सीपीआईएम के अलावा एक भी पार्टी यहां से नहीं जीती। सीपीआईएम ने 1971 से लेकर 2009 तक 11 बार लगातार जीत दर्ज की। 1971 से 1989 तक सीपीएम के अमित कुमार साहा यहां सबसे लंबे समय तक सांसद रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में सौमित्र खान ने जब सीपीएम की जीत के इस रथ को रोका, तब सीपीएम के पास करीब 33 फीसदी वोट शेयर बचा। जबकि 2009 के चुनाव में सीपीएम का वोट शेयर 52 फीसदी था।
2014 में तृणमूल कांग्रेस का वोट शेयर 2009 के मुकाबले 22 प्रतिशत बढ़ कर 45 प्रतिशत हो गया। वहीं भाजपा के डा. जयंत मोंडल का वोट प्रशित 14 प्रतिशत रहा। कांग्रेस का 2 प्रशित और बाकी की सभी पार्टियों और स्वतंत्र पार्टियों का वोटशेयर 1 प्रतिशत से नीचे रहा। 2019 के चुनाव में तृणमूल के लिये बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि बिष्णुपुर के अंतर्गत आने वाली सात विधानसभा सीटों में से दो सीटें सीपीएम और एक कांग्रेस के पास है। और टीएमसी के ये वोट इन पार्टियों की ओर 2016 में गये यानी 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद। लिहाजां इस सीट पर सीपीएम और टीएमसी के बीच कड़ी टक्कर की संभावना है। हालांकि कांग्रेस भी अपने प्रत्याशी को जिताने के लिये यहां पूरा जोर लगायेगी।
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