लोकसभा चुनाव 2019- कुशीनगर लोकसभा सीट के बारे में जानिए
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की कुशीनगर लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के राजेश पांडे उर्फ गुड्डू सांसद हैं, साल 2014 में ये सीट उन्होंने कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह को 85540 वोटों से हराकर अपने नाम की थी। भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी की परिनिर्वाण भूमि 'कुशीनगर' का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन और गौरावशाली रहा है. यह क्षेत्र बुद्ध और गुप्तकाल के कई प्राचीन चीज़ों को खुद में समेटे हुए है। रामायण के अनुसार कुशी नगर भगवान श्रीराम के पुत्र कुश की राजधानी था और तब इसका नाम कुशावती था, कुशीनगर इसलिए भी ख़ास है क्योंकि यहीं पर उत्तर भारत का इकलौता सूर्य मंदिर है। यहां की कुल आबादी 35,64,544 लाख है जिनमें पुरुषों की संख्या 18,18,055 लाख पुरुष और महिलाओं की संख्या 17,46,489 लाख है, तो वहीं यहां अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 15.27% और अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्यां 2.25% है।
कुशीनगर लोकसभा सीट में उत्तर प्रदेश विधानसभा की पांच सीटें आती हैं, जिनके नाम हैं खड्डा, हाटा, पडरौना, रामकोला और कुशीनगर, जिसमें रामकोला की विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। कुशीनगर जिले में कुल 1,639 गांव, 8 शहर और चार तहसील पडरौना, हाटा, तमकुही राज और कास्यं आते हैं।
इस सीट पर पहली बार 2009 में आमचुनाव हुए जिनमे कांग्रेस के रंजीत प्रताप नारायण ने जीत दर्ज की और वो कुशीनगर के पहले सांसद बने, साल 2014 में यहां पर भारतीय जनता पार्टी विजयी हुई और राजेश पाण्डेय उर्फ़ गुड्डू सांसद बने। पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए राजेश पाण्डेय वर्तमान में लोकसभा की परिवहन, पर्यटन और संस्कृति सम्बन्धी स्थाई समिति के सदस्य भी है। पिछले 5 सालों के दौरान इनकी लोकसभा में उपस्थिति 93 प्रतिशत रही और इस दौरान इन्होंने 9 डिबेट में हिस्सा लिया और 139 प्रश्न पूछे हैं, जो कि आंकड़ों के हिसाब से अच्छा रिकार्ड नहीं कहा जा सकता है।
साल 2014 में यहां पर 1680992 मतदाताओं ने हिस्सा लिया, जिसमें 55 प्रतिशत पुरुष और 44 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं। उस साल यहां कांग्रेस दूसरे, BSP तीसरे और SP चौथे नंबर पर रही थी, डुमरियागंज में हिंदुओं की संख्या 82 प्रतिशत और मुस्लिमों की संख्या 17 प्रतिशत है, ये हिंदू बाहुल्य इलाका है, जिसका फायदा साल 2014 के चुनाव में भाजपा को मिला था और वो आगे भी इसका फायदा उठाना चाहेगी। कुशीनगर में आज भी गन्ना किसानों की स्थिति संतोषजनक नहीं है, यहां मूलभूत साधनों की भी कमी है, विकास की गति काफी धीमी है और आज भी यहां के युवागण शिक्षा और रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे हैं।