लोकसभा चुनाव 2019- गोरखपुर लोकसभा सीट के बारे में जानिए
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की गोरखपुर लोकसभा से समाजवादी पार्टी के प्रवीण निषाद सांसद हैं, उन्होंने 2018 में हुए यहां के उपचुनाव में जीत हासिल करके गोरक्षपीठ के सांसद निर्वाचित होने की परंपरा को तो तोड़ा ही, साथ में यूपी समेत पूरे देश में एक नए सियासी समीकरण को भी भाजपा के सामने खड़ा कर दिया। शिक्षा, संस्कृति और परंपरा को समेटे गोरखपुर की लोकसभा सीट हमेशा से ही राजनीति के लिए प्रासंगिक रही है। उत्तरप्रदेश के पूर्वाचल में बसा यह क्षेत्र गोरखनाथ मन्दिर की वजह से दुनिया भर में मशहूर है, यह वो क्षेत्र है जिसमे संत कबीर, मुंशी प्रेमचंद, फ़िराक गोरखपुरी जैसे विश्व प्रसिद्ध लोग हुए, जिनके जरिए भारत को एक अलग पहचान मिली। गोरखपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 64वें नंबर की सीट है, इस लोकसभा सीट में उत्तर प्रदेश विधानसभा की पांच सीटें आती हैं, जिनके नाम हैं गोरखपुर ग्रामीण, गोरखपुर शहरी, सजनवा, कैम्पियरगंज और पिपराइच। गोरखपुर की औसत साक्षरता दर 60.81% है।
1952 में अस्तित्त्व में आई यह लोकसभा सीट 1957 के आमचुनाव तक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, तीसरे आम चुनाव के वक़्त यह सीट सामान्य श्रेणी में आ गई। 1962 तक हुए सभी आमचुनावों में कांग्रेस ने लगातार जीत दर्ज की, चौथे आम-चुनावों में कांग्रेस का विजय रथ 1967 में गोरक्षपीठ के तत्कालीन महंत दिग्विजय नाथ ने रोका, वह इस सीट से निर्दलीय चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। 1971 में यहां कांग्रेस और 1977 में भारतीय लोकदल ने इस सीट पर कब्ज़ा किया, 1989 में गोरक्षपीठ के महंत अवैध नाथ हिन्दू महासभा की टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे थे, 1991 और 1996 के लोकसभा चुनाव में महंत अवैधनाथ ने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की, उनके बाद इस सीट से 1998 से 2014 तक लगातार पांच बार जीत कर यूपी के मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ ने सफलता का नया इतिहास लिखा।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ये सीट एक तरह से गोरक्षपीठ के लिए अघोषित रूप से आरक्षित हो गई थी लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ को यहां के सांसद पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा क्योंकि वो यूपी के सीएम बन गए थे, जिसके बाद 2018 में यहां उपचुनाव हुए जिसमें वो हुआ जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी, ये चुनाव कट्टर विरोधियों सपा और बसपा ने मिलकर लड़ा, जिसकी वजह से बसपा ने इस सीट पर सपा के उम्मीदवार को समर्थन दिया, जिसके बाद ये सीट समाजवादी पार्टी के प्रवीन निषाद ने जीत ली और इसके साथ ही उन्होंने गोरक्षपीठ के सांसद निर्वाचित होने की परंपरा को तोड़ दिया, ये हार भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका थी, जिसने पार्टी के अंदर खलबली पैदा कर दी।
गोरखपुर में हिंदुओं की आबादी 90 प्रतिशत और मुस्लिमों की 9 प्रतिशत है, यहां के जातिगत समीकरण को देखें तो गोरखपुर में बीजेपी उम्मीदवार उपेंद्र दत्त शुक्ल थे। जिन्हें केंद्रीय मंत्री शिवप्रताप शुक्ला का करीबी माना जाता है। वहीं सपा से प्रवीण निषाद की उम्मीदवारी थी। यहां बीजेपी उच्च जातियों के वोटो को लेकर निश्चिंत थी। गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में गैर यादव ओबीसी खासकर निषाद समुदाय के लोग ज्यादा हैं। इसलिए सपा ने यहां से प्रवीण निषाद को मैदान में उतारा था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी निषाद पार्टी के उम्मीदवारों को अच्छे वोट मिले थे लेकिन सपा-बसपा के साथ आने से बीजेपी के सारे गणित फेल हो गए और ये सीट उसके हाथ से निकल गई, यहां की हार ने सीधे तौर पर योगी आदित्यनाथ के एक साल के कार्यकाल पर भी सवालिया निशान लगा दिए।