जम्मू-कश्मीर में नवंबर से शुरू हो सकती है परिसीमन की प्रक्रिया, रिटायर्ड SC जज करेंगे अगुवाई
नई दिल्ली- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अगले 31 अक्टूबर से दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बन जाएंगे। इसके बाद जम्मू और कश्मीर में संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन का काम शुरू हो जाएगा। सरकार के एक बड़े अफसर के मुताबिक ऐसी जानकारी सामने आ रही है। जानकारी के मुताबिक जम्मू और कश्मीर परिसीमन आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के कोई रिटायर्ड जज करेंगे। गौरतलब है कि 31 अक्टूबर से ही यह राज्य औपचारिक तौर पर दो केंद्र शासित प्रदेशों की तरह काम करने लगेगा।
107 से 114 होगी विधानसभा की सीट
ईटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर प्रशासन से जुड़े एक बड़े अफसर ने कहा है कि नियमों के तहत जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज को ही करना है। अधिकारी के मुताबिक, "यह प्रक्रिया 31 अक्टूबर के बाद शुरू होगी और यह भारतीय निर्वाचन आयोग की निगरानी में किया जाएगा। पुनर्गठन कानून के तहत आयोग इस प्रक्रिया को 2011 की जनगणना के आधार पर करेगा।" बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक जम्मू की जनसंख्या 69,07,623 थी, जबकि कश्मीर की जनसंख्या 53,50,811 थी। यहां ये बताना भी जरूरी है कि जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन कानून के तहत केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सीटों की संख्या मौजूदा 107 से बढ़ाकर 114 की जानी है। इन 114 सीटों में से 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के लिए सुरक्षित रखी गई है।
आखिरी बार 1995-96 में हुआ था परिसीमन
अधिकारियों ने बताया कि दूसरे राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर में भारत के संविधान के अनुच्छेद 170 के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया पूरी नहीं की गई थी। 2002 में नेशनल कांफ्रेंस सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर जन-प्रतिनिधित्व कानून 1957 और जम्मू एवं कश्मीर के संविधान के सेक्शन 47(3) में संशोधन करते हुए राज्य में निर्वाचन क्षेत्र के परिसीमन पर रोक लगा दी थी। जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया आखिरी बार 1995-96 में पूरी की गई थी। अधिकारी के मुताबिक '5 अगस्त से पहले जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान था और परिसीमन का काम जम्मू एवं कश्मीर के संविधान के सेक्शन 47 और 141 के आधार पर किया जाता था। राज्य का संविधान अब निष्प्रभावी हो चुका है।' माना जा रहा है कि राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे। इस चुनाव से पहले राज्य में वोटर लिस्ट भी अपडेट होने की संभावना है। ऐसे में माना जा रहा है कि आर्टिकल 35ए के निष्प्रभावी होने से प्रदेश में वोटरों की संख्या करीब 10 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
नए लोगों को मिलेगा वोटर बनने का मौका
गौरतलब है कि नए वोटर लिस्ट में राज्य में वर्षों से रह रहे गोरखा, दलित और पश्चिम पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के शामिल होने के भी आसार हैं। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक ऐसे लोगों को वोटर लिस्ट में नाम जुड़ने के बाद प्रदेश में मतदाताओं की तादाद 7 से 15 लाख तक बढ़ सकती है। बता दें कि जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव 2014 से लेकर 2019 के बीच के पांच वर्षो में आठ प्रतिशत वोटर बढ़े हैं। 2014 लोकसभा के समय में जम्मू-कश्मीर में (लद्दाख को छोड़कर) कुल 71 लाख वोटर थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में वहां वोटरों की कुल संख्या बढ़कर लगभग 77 लाख हो गयी। जिसमें लद्दाख के वोटरों को हटाने के बाद 2014 की तुलना में 2019 के लोकसभा चुनाव में 6.40 लाख वोटर बढ़ गए।
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