Priyanka Goswami:कैसे बस कंडक्टर की बेटी की एक जिद ने तोड़ा नेशनल रिकॉर्ड, ओलंपिक का रास्ता साफ
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की 25 साल की एक एथलीट प्रियंका गोस्वामी ने 20 किलो मीटर की रेस का नेशनल रिकॉर्ड तोड़कर अपने लिए टोक्यो ओलंपिक का टिकट कटवा लिया है। प्रियंका की यह कामयाबी पूरे देश के लिए सम्मान की बात इसलिए है, क्योंकि वह बहुत ही साधारण परिवार से आती हैं। उनके पिता उत्तर प्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन में बस कंडक्टर हैं, लेकिन लंबे वक्त से निलंबित चल रहे हैं। प्रियंका ने घर की सारी आर्थिक तंगियों का सामना करते हुए अपने माता-पिता और गुरुओं के आशीर्वाद से यह मुकाम हासिल किया है। उनके घर की माली हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके छोटे भाई को बॉक्सर होते हुए भी आगे की ट्रेनिंग करने की जगह बहुत कम उम्र में ही रोजागार में जुट जाना पड़ा है।
प्रियंका जाट का रिकॉर्ड तोड़ा
ठीक 10 साल पहले ट्रैक पर जीत दर्ज करने का प्रियंका गोस्वामी ने एक निश्चय किया था, शनिवार को उन्होंने एक नेशनल रिकॉर्ड बनाकर और टोक्यो ओलंपिक के अलावा अमेरिका में ओरेगन के वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप का टिकट हासिल कर वह प्रण पूरा कर लिया है। उन्होंने झारखंड की राजधानी रांची में आयोजित 8वीं ओपन नेशनल और चौथी अंतरराष्ट्रीय रेस वॉकिंग चैंपियनशिप में 20 किलोमीटर की रेस का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया। उन्होंने यह दूरी सिर्फ 1:28:45 घंटे में पूरी कर ली। इस तरह से उन्होंने पिछले साल इसी चैंपियनशिप में भावना जाट के रिकॉर्ड 1:29:54 घंटे को तोड़ दिया। प्रियंका 2018 के मार्च से स्पोर्ट्स कोटा से रेलवे में क्लर्क की नौकरी कर रही हैं।
पिछले साल के इवेंट में 36 सेकंड से चूक गई थीं
प्रियंका को ये कामयाबी अचानक नहीं मिली है। इसके पीछे उनका लंबा संघर्ष और बहुत ही कठिन परिश्रम रहा है। 2017-2018 में वह राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में दो सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं। 2018 में ही वह अखिल भारतीय रेलवे प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल ले चुकी हैं और रोम (इटली) में वर्ल्ड वॉक चैंपियनशिप और जापान में एशियन वॉक चैंपियन में भी हिस्सा ले चुकी हैं। उन्होंने अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा है, 'मैंने पिछले साल ही मन बना लिया था, जब मैं प्रतियोगिता में 36 सेकंड के मामूली अंतर से पिछड़ गई थी। इसके बाद मैंने तय कर लिया था कि इस साल इंटरनेशनल मीट में इसे करके रहूंगी। सौभाग्य से, मैंने दो इवेंट के लिए क्वालिफाई कर लिया है (वर्ल्ड कप और ओलंपिक)।......मैं विश्वास नहीं कर पा रही हूं कि यह सच है,क्योंकि मैं भावनात्मक तौर पर बहुत ही ज्यादा उत्साहित हूं।'
पिता को वापस नौकरी में देखना चाहती हैं
इनके पिता मदन गोस्वामी यूपी स्टेट ट्रांसपोर्ट में बस कंडक्टर हैं, लेकिन फिलहाल निलंबित चल रहे हैं। इनका परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के सागड़ी गांव का रहने वाला है, लेकिन अभी मेरठ में रहता है। 22 साल के इनके छोटे भाई कपिल गोस्वामी बॉक्सर हैं, लेकिन पिता की नौकरी जाने के बाद 5 लोगों के परिवार को संभालने में बहन का हाथ बंटाने के लिए दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करते हैं। घर के मोर्चे पर प्रियंका का अभी सबसे बड़ा सपना यही है कि वह अपने पिता को वापस नौकरी पर देखना चाहती हैं।
एक छोटी सी जिद और लगन ने दिलाई बड़ी कामयाबी
प्रियंका फिलहाल दो बार के ओलंपिक खिलाड़ी गुरमीत सिंह से ट्रेनिंग ले रही हैं। उन्होंने बताया है कि कैसे उनकी एक जिद ने आज उनकी जिंदगी बदलने की आस जगा दी है। उनके मुताबिक, 'रेस वॉकिंग का मेरा सफर जिला-स्तरीय दौड़ में जीत की मेरी एक जिद से शुरू हुई, जो जनवरी, 2011 में मेरठ में आयोजित हुआ था। जब मैं कई श्रेणियों में बाहर हो गई, तब मेरे कोच बीके वाजपेयी और गौरव त्यागी ने मुझे रेस वॉकिंग करने पर जोर डाला, जो मैं जीत गई (तीसरी स्थान)। बाद में जूनियर नेशनल लेवल वॉक रेसिंग में मैंने मेरठ के लिए गोल्ड और सिल्वर जीता।'
माता-पिता और गुरुओं का हमेशा मिला आशीर्वाद
जिंदगी के इन 25 साल में प्रियंका ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। 8वीं क्लास तक उन्हें जिम्नास्ट की तरह तैयार किया गया। दो साल तक वो इन सब चीजों से बाहर हो गईं। 12 की उम्र से उन्होंने ट्रैक और फिल्ड का रुख किया। बचपन में वह कई बार नाकाम हुईं, लेकिन न उन्होंने हौसला छोड़ा और ना ही उनके माता-पिता और मेरठ के सेठ बीके माहेश्वरी इंटर कॉलेज की उनकी प्रिंसिपल उषा ने उनसे उम्मीद छोड़ी। प्रियंका ने ट्रेनिंग के दौरान ही पटियाला से बीए किया है। उन्हें हाई स्कूल में 72 फीसदी और इंटर में 58 फीसदी नंबर मिले थे। (तस्वीरें सौजन्य-प्रियंका के ट्विटर हैंडल और बाकी सोशल मीडिया से)