इंदिरा के नैन नक्श के दम पर BDM को वापस पाना प्रियंका के सामने बड़ी चुनौती?
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा, बीजेपी की तुलना में सबसे कमजोर आंकी जा रही कांग्रेस ने बुधवार को सबसे बड़ा दांव चलते हुए प्रियंका गांधी को मैदान में उतार दिया। उन्हें कांग्रेस पार्टी में महासचिव पद दिए जाने के साथ ही 2019 लोकसभा चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान भी सौंपी गई है। पूर्वी उत्तर प्रदेश दो दर्जन से ज्यादा लोकसभा सीटें हैं। कांग्रेस ने यह कदम यूपी में सपा-बसपा के बीच गठबंधन के बाद उठाया है। मायावती-अखिलेश यादव ने कांग्रेस के लिए सिर्फ दो सीटें छोड़ी थीं, जिसके बाद कांग्रेस ने अपने दम पर यूपी के रण में उतरने का फैसला लिया। यूपी में नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री थे। 1989 में नारायण दत्त तिवारी के सीएम दफ्तर में रहने तक ही कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता में रही। बीते 29 साल से कांग्रेस उत्तर प्रदेश में खोई जमीन वापस नहीं पा सकी है। कांग्रेसी नेता अक्सर कहा करते हैं- प्रियंका गांधी में उन्हें इंदिरा गांधी का अक्स नजर आता है। अब देखना होगा कि प्रियंका गांधी पूर्वी उत्तर प्रदेश में किस प्रकार से समीकरण कांग्रेस के पक्ष में मोड़ पाती हैं। वैसे, जहां मायावती और अखिलेश यादव के गठबंधन का प्रश्न है तो पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सपा के पास है, जबकि बसपा को पश्चिमी यूपी का किला फतह करने का लक्ष्य दिया गया। मतलब प्रियंका गांधी के सामने सपा और बीजेपी से लड़ने की चुनौती है।
क्या पारंपरिक वोट बैंक पर भरोसा करेंगी प्रियंका या नए समीकरण करेंगी ईजाद
यूपी के कार्यकर्ता लंबे समय से प्रियंका गांधी को राजनीति में लाने की मांग कर रहे थे, अब उनकी मांग पूरी हो गई है। प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में उतरने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर बूथ स्तर तक का कार्यकर्ता उत्साहित है, लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर प्रियंका गांधी की रणनीति क्या होगी? क्या वह यूपी में कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक- ब्राह्मणों, दलित, मुस्लिम (BDM) का विश्वास एक बार फिर से जीत पाएंगी? या वह कोई नया वोट बैंक 'ईजाद' करेंगी? पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सबसे बड़ी चुनौती किससे मिलेगी, बीजेपी या सपा-बसपा गठबंधन? यह सब सवाल अब प्रियंका गांधी के सामने खड़े हैं। सबसे पहले जान लेते हैं पूर्वी उत्तर प्रदेश की अहम लोकसभा सीटें: अमेठी, अंबेडकर नगर, आजमगढ़, बलिया, बलरामपुर, बहराइच, बस्ती, भधोई, चंदौली, देवरिया, गाजीपुर, गोरखपुर गोंडा, जौनपुर, कुशीनगर, महाराजगंज, मऊ, मिर्जापुर, संत कबीर नगर, सुल्तानपुर, सोनभद्र, वाराणसी, डुमरियागंज, श्रावस्ती।
प्रियंका गांधी के सामने जातिगत समीकरण साधने की चुनौती
पूर्वी उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो दर्जन से ज्यादा सीटें आती हैं, वहीं 150 विधानसभा सीटें इसी क्षेत्र में आती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों पर नजर डालें तो यहां मुस्लिम, दलित और ब्राह्मण वोट सबसे अहम फैक्टर है। पूर्वी यूपी में अलग-अलग सीटों पर 19 से 23 प्रतिशत दलित वोट बैंक है। इसी प्रकार से अलग-अलग सीटों पर 6 से 14 प्रतिशत ब्राह्मण मतदाता हैं। मुस्लिम वोटर भी 8 से 27 प्रतिशत हैं। इसी प्रकार से 13 से 14 प्रतिशत यादव मतदाता भी कई सीटों पर अहम हैं। कुर्मी, निषाद, सोनकर, राजपूत, राजभर भी कई सीटों पर निर्णायक हैं। अब प्रियंका गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के परंपरागत दलित, ब्राह्मण, मुस्लिम वोट बैंक को दोबारा हासिल करने की है। यूपी में मुस्लिमों का सबसे ज्यादा भरोसा सपा पर माना जाता है, यादव तो सपा का कोर वोटर है ही। दलित बसपा के नाम पर सपा को वोट दे सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस के सामने चुनौती बेहद कठिन है।
प्रियंका गांधी में दिखता है 'इंदिरा का अक्स', क्या चुनाव में दिखाई देगी चमक
बात
यूपी
विधानसभा
चुना
2017
की
है,
जब
कांग्रेस
ने
खोई
जमीन
वापस
पाने
के
लिए
प्रशांत
किशोर
को
रणनीतिकार
के
तौर
पर
नियुक्त
किया
था।
उस
वक्त
कांग्रेस
के
नेता
द्विजेंद्र
त्रिपाठी
ने
कहा
था,
'हमने
उन्हें
करीब
से
देखा
है...उनमें
इंदिराजी
का
अक्स
दिखाई
देता
है।
उनका
तेज
चलने
का
अंदाज,
हाजिरजवाबी,
लोगों
से
कनेक्शन
है,
सबकुछ
इंदिराजी
जैसा
है।
उनका
राजनीति
में
आना
कांग्रेस
के
लिए
वरदान
साबित
होगा।'
खुद
प्रशांत
किशोर
ने
भी
2017
विधानसभा
चुनाव
में
प्रियंका
गांधी
को
चुनाव
मैदान
में
उतारने
की
पुरजोर
कोशिश
की
थी।
अब
प्रशांत
किशोर
जेडीयू
में
हैं,
लेकिन
कांग्रेस
के
पास
प्रियंका
गांधी
जरूर
आ
गई
हैं।
इसमें
शक
नहीं
है
कि
प्रियंका
गांधी
की
अपील
कांग्रेस
के
किसी
भी
नेता
से
कहीं
ज्यादा
है।
इनमें
सोनिया
और
राहुल
गांधी
भी
शामिल
हैं।
कांग्रेस
शुरुआत
से
काडर
वाली
पार्टी
नहीं
रही
है,
जबकि
बीजेपी
मजबूत
काडर
वाला
दल
है।
इसका
मतलब
यह
नहीं
कि
कांग्रेस
को
कमतर
आंका
जाए,
कारण
यह
है
कि
कांग्रेस
शुरुआत
से
करिश्माई
नेतृत्व
के
सहारे
चुनाव
जीतती
आई
है।
चाहे
देश
के
पहले
पीएम
जवाहर
लाल
नेहरू
हों,
या
इंदिरा
गांधी,
राजीव
गांधी।
मतलब
गांधी
परिवार
का
करिश्मा,
वो
करिश्मा
कांग्रेस
कार्यकर्ता
प्रियंका
में
देखते
हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की सबसे बड़ी ताकत
अनुमान के मुताबिक, यूपी के कुल वोटरों में सवर्ण जाति के मतदाताओं की संख्या 19 से 24 फीसदी है। ब्राह्मणों की संख्या 13 फीसदी बताई जाती है। यूपी में सवर्ण समुदाय चुनाव के नजरिए से बिहार के मुकाबले कहीं ज्यादा असरदार हैं। 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस यूपी में केवल दो सीटें- रायबरेली और अमेठी जीत सकी थी, लेकिन 2009 में इसी उत्तर प्रदेश में पार्टी 21 लोकसभा सीटें जीत चुकी है। उस वक्त पार्टी को बड़ी संख्या में ब्राह्मणों का समर्थन मिला। पूर्वी उत्तर प्रदेश ने देश को कई प्रधानमंत्री दिए। मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी भी वाराणसी से सांसद हैं।
जिन 26 सीटों पर कांग्रेस का सबसे ज्यादा फोकस उनमें सबसे ज्यादा सीटें पूर्वी उत्तर प्रदेश की
यूपी में मुस्लिम वोटर की आबादी करीब 18.5 प्रतिशत है। दलित करीब 20.5 प्रतिशत और ब्राह्मण वोटर करीब 13 प्रतिशत है। सूत्रों के मुताबिक, 2019 लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस पार्टी का जिन 26 लोकसभा सीटों पर सबसे ज्यादा फोकस है, उनमें अमेठी, रायबरेली, प्रतापगढ़, कानपुर, उन्नाव, सुल्तानपुर, बाराबंकी, धौरहरा, कुशीनगर, बरेली, लखनऊ, वाराणसी, इलाहाबाद, फर्रुखाबाद, सहारनपुर, जौनपुर, मथुरा, फैजाबाद, फतेहपुर सीकरी आदि हैं। इन सीटों में सबसे ज्यादा पूर्वी उत्तर प्रदेश की ही हैं।