रेलवे का निजीकरणः क्या फ़ायदे का सौदा साबित हो पाएगा?
भारतीय रेलवे ने 109 रूटों पर ट्रेन चलाने के लिए निजी कंपनियों से आवेदन मांगे हैं.
भारतीय रेलवे ने 109 रूटों पर ट्रेन चलाने के लिए निजी कंपनियों से रिक्वेस्ट फ़ॉर क्वालीफ़िकेशन यानी आरएफ़क्यू आमंत्रित किया है. रेलवे बोर्ड के चेयरमैन का कहना है कि अप्रैल 2023 में निजी रेल सेवाएं शुरू हो जाएंगी.
रेलवे की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि इस प्रोजेक्ट के तहत रेलवे में निजी क्षेत्र के तीस हज़ार करोड़ रुपए निवेश होंगे. ये भारत के रेलवे नेटवर्क पर यात्री ट्रेनों के संचालन में निजी क्षेत्र के निवेश का पहला प्रयास है.
अपने बयान में रेलवे ने कहा है कि इस प्रोजेक्ट का मक़सद रेलवे में नई तकनीक लाना, मरम्मत ख़र्च कम करना, यात्रा समय कम करना, नौकरियों को बढ़ावा देना, सुरक्षा बढ़ाना और यात्रियों को विश्व स्तरीय सुविधाएं देना है.
निजीकरण के इस प्रयास के तहत रेलव के 109 रूटों पर 151 उन्नत रेलगाड़ियाँ (रेक) शुरू की जानी हैं. रेलवे के मुताबिक़ प्रत्येक ट्रेन में कम से कम 16 कोच होंगे.
अपने बयान में रेलवे ने कहा है कि इन सभी रेलगाड़ियों का उत्पादन भारत में ही होगा. निजी क्षेत्र की कंपनियां इनके वित्तपोषण, संचालन और रख रखाव के लिए ज़िम्मेदार होंगी. रेलवे का कहना है कि इस प्रोजेक्ट की अवधि 35 वर्ष होगी.
निर्धारित रूटों पर गाड़ियां शुरू करने वाली निजी कंपनी को रेलवे को तय हॉलेज चार्ज, ऊर्जा चार्ज और कुल आय में हिस्सा देना होगा. ये दरें टेंडर के ज़रिए तय की जाएंगी.
भारतीय रेलवे ने देश के रेल नेटवर्क को 12 क्लस्टर में बांटा हैं. इन क्लस्टर में 109 रूटों पर इतनी ही जोड़ी निजी रेल गाड़ियां चलाने का प्रस्ताव है.
रेलवे इन सेवाओं के लिए अपनी ओर से सिर्फ़ गार्ड और ड्राइवर देगा. बाक़ी सभी इंतज़ाम निजी कंपनियों को करना होगा.
Railways invites Request for Qualifications for private participation for passenger train operations on 109 pairs of routes through 151 modern trains.
This initiative will boost job creation, reduce transit time, provide enhanced safety & world-class facilities to passengers. pic.twitter.com/uG2dhdbG3b
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) July 1, 2020
विपक्ष ने उठाए सवाल
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर सरकार के इस फ़ैसले पर सवाल उठाया है.
एक ट्वीट में राहुल गांधी ने कहा, "रेल ग़रीबों की एकमात्र जीवनरेखा है और सरकार उनसे ये भी छीन रही है. जो छीनना है, छीनिए लेकिन याद रहे- देश की जनता इसका करारा जवाब देगी."
रेल ग़रीबों की एकमात्र जीवनरेखा है और सरकार उनसे ये भी छीन रही है।
जो छीनना है, छीनिये। लेकिन याद रहे- देश की जनता इसका करारा जवाब देगी।https://t.co/M6OQZ6xAz5
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 2, 2020
वहीं लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ट्वीट करके कहा, "109 जोड़ी ट्रेनों का निजीकरण करना आसान है, लेकिन किसके हित के लिए? राजस्व हासिल करने के लिए राष्ट्रीय संपदा रेलवे का इस तरीक़े से निजीकरण नहीं करना चाहिए. सरकार को अपने विसंगत फ़ैसलों पर फिर से विचार करना चाहिए."
It is easy to privatize the 109 pairs of trains but for whose interest? National asset rails should not be privatized in such an audacious manner to garner revenue. Govt. should reconsider it's ill timed illogical decisions.
— Adhir Chowdhury (@adhirrcinc) July 1, 2020
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चौधरी ने कहा, "अब सरकार हमारी सबसे बड़ी राष्ट्रीय संपदा के बड़े हिस्से को बेचने के लिए बेचैन है. निजीकरण रेलवे की दुर्दशा का रामबाण इलाज नहीं है, बल्कि रेलवे की अक्षमता ही है. जब देश पहले से ही गंभीर वित्तीय संकट से गुज़र रहा हो, 109 ट्रेनों का निजीकरण करना लोगों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने जैसा ही है."
आईआरसीटीसी पहले से ही चला रही है इस मॉडल पर ट्रेन
भारतीय रेलवे की केटरिंग कंपनी आईआरसीटीसी इसी मॉडल पर तीन रूटों पर एक्सप्रेस ट्रेन चला रही है.
दिल्ली-लखनऊ के बीच तेजस एक्सप्रेस, मुंबई-अहमदाबाद के बीच तेजस एक्सप्रेस और दिल्ली-वाराणसी के बीच महाकाल एक्सप्रेस का संचालन आईआरसीटीसी के हाथ में है.
तेजस एक्सप्रेस जब शुरू हुई थी तब इसे रेलवे का निजीकरण करने का प्रयोग कहा गया था. अब अन्य रूटों पर निजी कंपनियों को ट्रेन चलाने के लिए आमंत्रित करना रेलवे की निजीकरण की दिशा में एक और क़दम है.
दिल्ली से लखनऊ के बीच चलने वाली तेजस एक्सप्रेस का किराया इसी रूट पर चलने वाली राजधानी एक्सप्रेस से ज़्यादा है.
यात्रियों पर पड़ेगा भार
आईआरसीटीसी की कर्मचारी यूनियन से जुड़े सुरजीत श्यामला ने रेलवे के निजीकरण के प्रस्ताव पर कहा, "ये सिर्फ़ रेलवे कर्मचारियों ही नहीं बल्कि यात्रियों की जेब पर भी वार है. ट्रेन के किराए का 43 फ़ीसदी सब्सिडी यात्रियों को मिलती है. निजी कंपनियां तो ये रियायत यात्रियों को नहीं देंगी. ऐसे में ग़रीब और मध्यम वर्ग के यात्रियों की जेब पर भार बढ़ेगा."
सुरजीत कहते हैं, "अभी लोगों को लग रहा है जब निजीकरण होगा तो अच्छी सेवा मिलेगी लेकिन वास्तव में ऐसा होगा इस पर शक है. रेलवे में केटरिंग तो पहले से ही आईआरसीटीसी के हाथ में है, ये भी रेलवे की निजी कंपनी ही है, क्या केटरिंग से लोग संतुष्ट हैं?"
सुरजीत आरोप लगाते हैं कि इस प्रस्ताव से सरकार का मक़सद देश में कॉर्पोरेट को फ़ायदा पहुंचाना है. वो कहते हैं कि इससे कर्मचारियों के शोषण की व्यवस्था और मज़बूत होगी.
वो कहते हैं, "जब सरकार की कमाई होती है तो वो पैसा देश के विकास में लगता है. स्कूल खुलते हैं, स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होती हैं, लेकिन जब रेलवे की कमाई निजी हाथों में जाएगी तो ये पैसा जनहित में नहीं लगेगा."
क्या रेलवे के लिए फ़ायदे का सौदा होगा निजीकरण?
रेलवे को उम्मीद है कि निजीकरण के इस प्रस्ताव से रेलवे में तीस हज़ार करोड़ रुपए तक का निजी निवेश आएगा और यात्रियों को बेहतर रेल सेवाएं मिलेंगी. क्या ये रेलवे के लिए फ़ायदे का सौदा होगा?
रेलवे बोर्ड से रिटायर्ड अधिकारी श्रीप्रकाश को रेलवे के इस प्रस्ताव की कामयाबी पर ही शक है.
वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि रेलवे का ये प्रयोग कामयाब होगा. एक मुद्दा ये भी होगा कि निजी ट्रेन ऑपरेटर और रेलवे के बीच विवाद होगा तो उसे कौन सुलझाएगा, अभी विवाद सुलझाने का कोई मेकेनिज़्म नहीं है और ना ही रेलवे के पास कोई नियामक (रेग्यूलेटर) है. यदि रेलवे को निजीकरण करना ही है तो पहले रेग्यूलेटर नियुक्त करना होगा. जब तक विवाद निपटारे की व्यवस्था नहीं होगी तब तक निजीकरण का कोई प्रस्ताव कामयाब नहीं होगा."
रेलवे ने दावा किया है कि निजी रेलगाड़ियों में यात्रियों को विश्वस्तरीय सुविधाएं मिलेंगी.
श्री प्रकाश को बेहतर सुविधाएं मिलने पर भी शक है.
वो कहते हैं, "यात्री ट्रेन ऑपरेशन का निजीकरण करने का प्रयास रेलवे पहले भी कर चुका है. आईआरसीटीसी ने अपनी विशेष पर्यटन रेलगाड़ियों को निजी कंपनियों को देने की कोशिश की थी, वो प्रयास भी कामयाब नहीं हुआ था, महाराजा एक्सप्रेस निजी कंपनी को दी गई थी लेकिन बाद में रेलवे को ख़ुद ही उसे चलाना पड़ा. यदि कोई कंपनी आती है, पैसा लगाती भी है और अगर वो प्रयास कामयाब नहीं होता है फिर रेलवे को ही उसे टेकओवर करना होगा. निजीकरण को लेकर बहुत स्पष्टता अभी है नहीं."
श्रीप्रकाश कहते हैं, "अभी आईआरसीटीसी तेजस एक्सप्रेस चला रही है, उसमें भी यात्रियों को मिलने वाली छूट लागू नहीं है. जब निजी कंपनियां ट्रेन चलाएंगी तो यात्रियों को रियायत नहीं मिलेगी, बावजूद इसके निजी कंपनियां फ़ायदा कमा पाएंगी, इसे लेकर मुझे संदेह है."
श्रीप्रकाश का मानना है कि निजी रेलगाड़ियों को दूसरी यात्री गाड़ियों से भी प्रतिद्वंदिता मिलेगी, ऐसे में सवाल ये उठता है कि निजी रेलगाड़ियां यात्रियों को ऐसी क्या सुविधा दे देंगी जो मौजूदा गाड़ियों में नहीं मिल पा रही हैं.
निजीकरण के इस प्रस्ताव के तहत भी रेलवों की समयसारिणी निर्धारित करने का अधिकार भारतीय रेलवे के पास ही रहेगा.
श्रीप्रकाश कहते हैं, "रेल यात्रा का मुख्य मक़सद एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचना होता है. निजी ट्रेन जब आएंगी तो उन्हें उसी रूट पर दूसरी गाड़ियों से प्रतिद्वंदिता मिलेगी. और अगर उनका किराया बहुत ज़्यादा होगा तो हवाई सेवाओं से भी उन्हें प्रतिद्वंदिता मिलेगी. ऐसे में यही सवाल रह जाता है कि निजी ट्रेन ऐसी क्या नई तरह की सेवा देगी जिसके प्रति यात्री आकर्षित होंगे. मुझे नहीं लगता कि निजीकरण के इस प्रस्ताव से कोई वास्तविक फ़ायदा यात्रियों को होगा."
कर्मचारी संगठनों ने दी आंदोलन की चेतावनी
इसी बीच श्रम संगठनों ने सरकार के रेलवे के निजीकरण के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ आंदोलन करने की चेतावनी दी है.
श्रम संगठनों के संघ सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) ने सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन की धमकी देते हुए कहा कि वह मोदी सरकार के इस फ़ैसले का विरोध करते हैं. सीटू ने कहा है कि सरकार ने इस फ़ैसले के लिए लॉकडाउन का समय चुना है जो सरकार की सोच को दर्शाता है.