
राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को अपनों से ही मिल सकता है धोखा , JMM समेत ये कर सकते हैं द्रौपदी मुर्मू का समर्थन
नई दिल्ली, 23 जून: राष्ट्रपति चुनाव के लिए ममता बनर्जी ने खूब हाथ-पैर मारे थे, तब जाकर चौथे विकल्प के रूप में उन्हें अपनी ही पार्टी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को 17 विरोधी दलों का साझा उम्मीदवार बनवाने का मौका मिला था। लेकिन, बीजेपी के खिलाफ एकजुट विपक्ष का उम्मीदवार देने के आइडिया को सबसे पहले समर्थन देने वाला झारखंड मुक्ति मोर्चा ही अब विपक्ष के साथ डटा रहेगा, यह बात सवालों के घेरे में आ चुकी है। सिर्फ जेएमएम ही नहीं, विपक्ष में कई और कमजोर कड़ी हैं, जो यशवंत सिन्हा के राष्ट्रपति भवन पहुंचने के मंसूबे को तार-तार कर सकते हैं।

द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी से विपक्षी एकता पर ग्रहण
राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी तय करके बीजेपी ने विपक्ष की एकता का बैंड बजाने का रास्ता साफ कर दिया है। क्योंकि, मुर्मू की उम्मीदवारी से विपक्षी खेमे में विभाजन का संकेत साफ महसूस किया जाने लगा है। ऐसा करने वालों में झारखंड में सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा सबसे पहली संभावित है, जो देश के पहले आदिवासी राष्ट्रपति के लिए मुर्मू के पक्ष में वोट डाल सकता है। जेएमएम आदिवासी बहुल राज्य की पार्टी है, जहां उसका मुकाबला अब भाजपा से होता है। ऐसे में उसके लिए मुर्मू का विरोध कर पाना बहुत ही मुश्किल हो गया है।

विपक्ष के साझा उम्मीदवार का जेएमएम ने किया था समर्थन
झारखंड में जेएमएम का कांग्रेस और लालू यादव की पार्टी आरजेडी के साथ गठबंधन है। वह उन पहली पार्टियों में से है, जिसने राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ विपक्ष का साझा उम्मीदवार उतारने के टीएमसी सुप्रिमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और टीआरएस के प्रमुख और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव के अभियान का समर्थन किया था। लेकिन, आदिवासी नेता की उम्मीदवारी ने उसका राजनीतिक गणित बिगाड़ दिया है। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के लिए एक आदिवासी महिला के खिलाफ वोट करना अपने ही पैर में सियासी कुल्हाड़ी मारने के समान होगा।

मुर्मू को झुककर नमस्कार करते थे सोरेन
सिर्फ जेएमएम की बात नहीं है। विपक्षी खेमे को यह भी लगने लगा है कि उनके खेमे के बाकी आदिवासी सांसद भी मुर्मू के पक्ष में वोटिंग कर सकते हैं। ओडिशा में तो मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने खुद मुर्मू की अपील के बाद सभी दलों के सांसदों विधायकों से एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने की अपील की ही है। विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने अपनी पहचान नहीं जारी होने देने की गुजारिश कर ईटी से कहा, 'जेएमएम कैसे वोट करेगा यह सोरेन और राज भवन के संबंधों से देखा जा सकता है, जब मुर्मू गवर्नर थीं तब हमने बिरले ही कुछ सुना था, लेकिन अब वहां रमेश बैस हैं तो आप झगड़े देख सकते हैं। सोरेन ने मुर्मू को जो सम्मान दिया- लगभग आधा झुककर एक आदिवासी महिला को नमस्कार करते हुए, वह भी महत्वपूर्ण है कि वह कैसे वोट करेंगे।'

मुर्मू की जीता का अंतर बड़ा हो सकता है ?
बुधवार को जेएमएम ने मुर्मू को एक 'योग्य उम्मीदवार' कहा था। राष्ट्रपति चुनाव में इलेक्ट्रोल कॉलेज में जीत का आंकड़ा पार करने के लिए बीजेपी को ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की बीजेडी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी का सहयोग ही महत्वपूर्ण है। इसमें अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा और बाकी दलों के कुछ आदिवासी सांसदों और एमएलए का मत भी जुड़ गया तो मुर्मू की जीत और भी बड़ी हो सकती है।
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झारखंड से मुर्मू और सिन्हा दोनों का नाता
वैसे झारखंड से द्रौपदी मुर्मू और विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा दोनों का गहरा नाता है। मुर्मू प्रदेश की राज्यपाल रह चुकी हैं तो सिन्हा हजारीबाग से तीन बार लोकसभा सांसद चुने जा चुके हैं। उनके बेटे जयंत सिन्हा अभी भी यहां से लगातार दूसरी बार भाजपा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। बुधवार को यशवंत सिन्हा ने कहा था, 'यह व्यक्तियों की प्रतियोगिता नहीं है। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के लिए मुझे बहुत सम्मान है। इस चुनाव में मैं उनके लिए अच्छे की कामना करता हूं। हालांकि, यह दो विरोधी विचारधाराओं के बीच की लड़ाई है।'