तीन तलाक़ बिल को मिली राष्ट्रपति की मंजूरी
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार देर रात इस अध्यादेश पर अपने हस्ताक्षर कर दिए. अब ये अध्यादेश संसद का शीत सत्र शुरू होने के छह हफ़्तों तक मान्य होगा.
पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ को अवैध क़रार दे दिया था. इसके बाद सरकार तीन तलाक़ बिल संसद में लेकर आई, जहां इसे लोकसभा में पास कर दिया गया. लेकिन, ये बिल राज्यसभा में पास नहीं हो सका था.
तीन तलाक़ पर सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है.
इससे पहले बुधवार (19 सितंबर) को कैबिनेट ने अध्यादेश को मंजूरी दे दी थी.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुधवार देर रात इस अध्यादेश पर अपने हस्ताक्षर कर दिए. अब ये अध्यादेश संसद का शीत सत्र शुरू होने के छह हफ़्तों तक मान्य होगा.
पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ को अवैध क़रार दे दिया था. इसके बाद सरकार तीन तलाक़ बिल संसद में लेकर आई, जहां इसे लोकसभा में पास कर दिया गया. लेकिन, ये बिल राज्यसभा में पास नहीं हो सका था.
हालांकि कांग्रेस ने इस बिल में कुछ संशोधनों की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद तीन तलाक़ अवैध हो गया था अब इस बिल पर अध्यादेश आने के बाद सजा का प्रावधान भी हो गया है.
तीन तलाक़ बिल में अब क्या-क्या होगा?
तीन तलाक़ कानून में तीन साल जेल का प्रावधान किया गया है.
इसके तहत तीन तलाक़ गैरज़मानती होगा और अभियुक्त को ज़मानत थाने में नहीं दी जा सकती.
सुनवाई से पहले ज़मानत के लिए उसे मजिस्ट्रेट के पास जाना होगा. यहां पत्नी की सुनवाई के बाद ही पति को ज़मानत मिल सकेगी.
मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित करेंगे कि ज़मानत तभी दी जाए जब पति विधेयक के अनुसार पत्नी को मुआवज़ा देने पर सहमत हो. विधेयक के अनुसार मुआवज़े की राशि मजिस्ट्रेट द्वारा तय की जाएगी.
'इंस्टेट ट्रिपल तलाक़' क्या है?
तलाक़-ए-बिद्दत या इंस्टेंट तलाक़ दुनिया के बहुत कम देशों में चलन में है, भारत उन्हीं देशों में से एक है.
एक झटके में तीन बार तलाक़ कहकर शादी तोड़ने को तलाक़-ए-बिद्दत कहते हैं.
ट्रिपल तलाक़ लोग बोलकर, टेक्स्ट मैसेज के ज़रिए या व्हॉट्सऐप से भी देने लगे हैं.
एक झटके में तीन बार तलाक़ बोलकर शादी तोड़ने का चलन देश भर में सुन्नी मुसलमानों में है लेकिन सुन्नी मुसलमानों के तीन समुदायों ने तीन तलाक़ की मान्यता ख़त्म कर दी है.
हालांकि देवबंद के दारूल उलूम को मानने वाले मुसलमानों में तलाक़-ए-बिद्दत अब भी चलन में है और वे इसे सही मानते हैं.
इस तरीक़े से कितनी मुसलमान महिलाओं को तलाक़ दिया गया इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है.
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