असहिष्णुताः राष्ट्रपति की चिंता से कौन चिंतित?
आजकल देश के विश्वविद्यालय राजनीति का अखाड़ा बनते जा रहे हैं। जिससे शिक्षा व्यवस्था बुरे हालत में पहुंच चुकी है लेकिन जिम्मेदार लोग इससे केवल राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं!
नई दिल्ली। देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का कहना है कि भारत असहिष्णुता को बर्दाश्त नहीं कर सकता। अशांति की संस्कृति का प्रचार करने के बदले छात्रों और शिक्षकों को तार्किक चर्चा और बहस में शामिल होना चाहिए। यूनिवर्सिटी कैंपस में स्वतंत्र चिंतन होना चाहिए। छात्रों को अशांति और हिंसा के भंवर में फंसा देखना दुखद है। राष्ट्रपति की एक आख्यान के दौरान की गई यह टिप्पणी दिल्ली विश्वविद्यालय में आरएसएस से संबद्ध एबीवीपी और वाम समर्थित आइसा के बीच जारी गतिरोध और छात्रा गुरमेहर कौर के हालिया पोस्टों के बाद राष्ट्रवाद और स्वतंत्र अभिव्यक्ति को लेकर हो रही बहस के बाद आई है।
राष्ट्रपति पिछले साल भी देश के बिगड़ते माहौल के मद्देनजर असहिष्णुता पर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि राष्ट्रपति की चिंता से चिंतित होने के बजाय 'असहिष्णुता' का माहौल पैदा करने के लिए बहाने ढूंढे जा रहे हैं। चाहे मामला जेएनयू का हो, दिल्ली विवि का हो, गुरमेहर कौर का हो, बिहार के मंत्री जलील मस्तान का हो या हरियाणा के मंत्री अनिल विज का हो। हर मामले में बयानबाजियों के बहाने 'असहिष्णुता' पैदा करने की कोशिश की जा रही है। इन सबके बीच खास बात ये है कि जब-जब 'असहिष्णुता' की चर्चा हो रही है तब-तब केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा और उसके आनुषांगिक संगठन ही केन्द्र बिन्दू बन रहे हैं।
यह बेहद गंभीर विषय है। इस पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए। गौरतलब है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहे है। 8 मार्च को आखिरी चरण का मतदान होना है और 11 मार्च को यूपी समेत पांच राज्यों में हुए चुनावों के परिणाम घोषित होंगे। अपने-अपने चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं द्वारा भाषाई सीमाएं खूब लांघी गई हैं। इस मामले में कोई किसी से पीछे नहीं रहा है। कोई भी तारीफ के काबिल नहीं।
विभिन्न
मुद्दों
पर
अपनी
चुनावी
साभाओं
में
पीएम
नरेन्द्र
मोदी
ने
विपक्ष
को
ललकारा
तो
विपक्ष
ने
भी
उन्हीं
की
भाषा
में
जवाब
दिया।
स्वाभाविक
है,
ये
सबकुछ
चुनाव
में
वोटों
के
ध्रूवीकरण
के
लिए
किया
गया।
पिछले
साल
जेएनयू
की
घटना
से
लेकर
दिल्ली
विवि
व
गुरमेहर
प्रकरण
तक
में
वोटों
के
ध्रूवीकरण
का
ही
प्रयास
दिखा
है।
पर
अफसोस
कि
वोट
के
लिए
किए
जाने
वाले
प्रयत्नों
के
बीच
ही
पैदा
होती
'असहिष्णुता'
पर
किसी
की
नजर
क्यों
नहीं
गई।
देश
में
तनाव
बढ़ता
रहा।
दुर्भाग्य
ये
कि
सरकार
इसे
न
सिर्फ
देखती
रही
बल्कि
पीड़ित
पक्ष
को
ही
उत्पीड़ित
करती
रही।
इसी
बीच
बिहार
से
एक
बयानबाजी
हुई,
जो
यूपी
के
चुनावी
शोर
में
दबकर
रह
गई।
पिछले
दिनों
बिहार
के
नीतीश
कुमार
सरकार
के
एक
मंत्री
और
कांग्रेसी
नेता
अब्दुल
जलील
मस्तान
ने
पीएम
नरेन्द्र
मोदी
के
बारे
में
कहा
कि
वो
पीएम
नहीं
है,
वो
नक्सलाइट
है,
उग्रवादी
है,
डकैत
है
और
लोगोंको
तरह-तरह
से
सताने
वाले
व्यक्ति
हैं।
मस्तान
के
इस
बयान
पर
बवाल
होना
था,
सो
न
सिर्फ
हुआ,
बल्कि
अब
भी
हो
रहा
है।
पीएम
को
डकैत
और
नक्सली
कहने
वाले
बिहार
के
मंत्री
खिलाफ
केस
दर्ज
हो
गया
है।
बावजूद
इसके
बिहार
की
राजनीति
में
मचा
बवाल
थमता
नहीं
दिख
रहा।
जलील
के
इस
बयान
को
लेकर
सत्ता
पक्ष
से
लेकर
विपक्ष
तक
की
तीखी
प्रतिक्रिया
है।
ताजा
घटना
में
बीजेपी
के
एक
विधायक
ने
मंत्री
के
खिलाफ
केस
दर्ज
कराया
है।
हालांकि मंत्री ने सफाई देते हुए कहा है कि उन्होंने कोई गलतबयानी नहीं की है। इतना ही नहीं, इस मुद्दे पर बिहार विधानसभा में हंगामे के बीच मस्तान ने कहा कि अगर किसी को उनके बयान से ठेस पहुंची है तो वह माफी मांगते हैं। मतलब, ये सियासी मामला है तो इसे खत्म हो जाना चाहिए, पर नहीं। भाजपा के लोग मंत्री को बर्खास्त करने और जेल भिजवाने तक की मांग करते हुए लगातार विधानसभा को ठप करा रहे हैं। बेशक, मस्तान ने पीएम मोदी के लिए जो बातें कहीं है, उसे कतई मर्यादित नहीं ठहराया जा सकता।
राजद
प्रमुख
लालू
प्रसाद
यादव
ने
भी
उक्त
बयान
की
निन्दा
की
है।
चलो,
यहां
तक
तो
ठीक
है।
विषय
यह
है
कि
मस्तान
कांग्रेसी
नेता
हैं
और
उन्होंने
पीएम
के
बारे
में
अपशब्द
कहकर
बड़ा
गुनाह
कर
दिया
है।
जबकि
हर
रोज
भाजपा
व
उसके
आनुषांगिक
संगठनों
से
जुड़े
लोग
गैर
भाजपाइयों
को
पाकिस्तान
भेज
देने
की
धमकी
देते
रहते
हैं,
पता
नहीं
केन्द्र
में
बैठी
भाजपा
सरकार
उन
बयानों
को
किस
श्रेणी
में
रखती
है।
दिल्ली
विवि
की
छात्रा
गुरमेहर
कौर
को
एबीवीपी
द्वारा
रेप
करने
तक
की
धमकी
दी
गई।
हरियाणा
के
एक
मंत्री
अनिल
विज
हैं,
वे
कह
रहे
हैं
जो
भी
गुरमेहर
का
समर्थक
है,
वह
पाकिस्तान
चला
जाए।
केन्द्रीय
गृह
राज्य
मंत्री
किरण
रिजिजू
छात्रा
गुरमेहर
कौर
को
राजनीतिक
रूप
से
गुमराह
बता
रहे
हैं।
भाजपा
और
सरकार
से
जुड़े
इन
नेताओं
की
बातें
क्या
'असहिष्णुता'
पैदा
नहीं
कर
रही
हैं।
क्या
राष्ट्रपति
की
बातों
का
इन
पर
असर
नहीं
होना
चाहिए।
दिलचस्प
ये
है
कि
विवादों
को
हवा
देने
के
बाद
उससे
जो
चिंगारी
निकल
रही
है,
उस
पर
ही
ये
प्रतिक्रियावादी
सियासतदां
राजनीति
की
रोटियां
सेंक
रहे
हैं।
वरना, पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले बिहार सरकार के मंत्री अब्दुल जलील मस्तान द्वारा सदन में माफी मांगने, खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा खेद प्रकट करने के बाद विपक्षी भाजपा को बिहार विधानसभा चलने देना चाहिए। पर, रोज-रोज हंगामा किया जा रहा है। मंत्री की बर्खास्तगी की मांग को लेकर विपक्ष द्वारा राजभवन मार्च तक किया गया। इसका क्या अर्थ लगाया जाए? विवाद को खत्म करना या उसे बढ़ाना? लगातार बिगड़ते हालात के मद्देनजर बिहार के लोग अब विपक्ष को ही जिम्मेदार ठहराने लगे हैं।
बिहार की राजनीतिक गलियारों की अच्छी-खासी समझ रखने वाले पत्रकार संजय वर्मा कहते हैं- 'विपक्ष का रवैया लोकतांत्रिक परम्परा का उल्लंघन जैसा प्रतीत हो रहा है। यदि किसी ने कोई गलती की और सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली, फिर उसके बाद क्या बचता है?'
उधर,
विपक्ष
के
रूप
को
देख
मंत्री
अब्दुल
जलील
मस्तान
ने
भी
अब
अपने
तेवर
कड़े
कर
लिए
हैं।
इससे
बिहार
में
टकराव
की
स्थिति
बन
रही
है।
इसके
लिए
सीधे-सीधे
विपक्ष
को
ही
जिम्मेदार
माना
जा
रहा
है।
विपक्ष
के
विरोध
और
लगातार
कार्रवाई
की
मांग
पर
अपनी
प्रतिक्रिया
में
मंत्री
ने
कहा-
'मैंने
जो
कहा
है,
उसके
लिये
माफी
मांग
ली
है।
अब
विपक्ष
कह
रहा
है
कि
बर्खास्त
करो,
वह
लोग
कहेंगे
कि
फांसी
दे
दो
तो
क्या
फांसी
दे
दी
जायेगी'।
मस्तान
ने
बीजेपी
नेता
गिरिराज
सिंह
पर
हमला
करते
हुए
कहा
कि
वह
कितना
कुछ
बोलते
रहते
हैं,
उसपर
कार्रवाई
क्यों
नहीं
होती।
ज्ञात हो कि पिछले कुछ समय से बेतुकी बयानबाजियों का सिलसिला चल निकला है जो केवल किसी खास व्यक्ति के मान-अपमान तक सीमित नहीं है। ताजा मामला अब्दुल जलील मस्तान का ही है, जिन्हें नोटबंदी के मसले पर आम जनता के बीच केंद्र सरकार व पीएम की आलोचना करते हुए ध्यान रखना जरूरी नहीं लगा कि उनके उकसावे पर लोगों के बीच कैसी प्रतिक्रिया हो सकती है। यह सही है कि पीएम ने नोटबंदी से पैदा होने वाली समस्याओं के बाद कहा था कि पचास दिनों के भीतर सब ठीक हो जाएगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे सजा भुगतने को तैयार हैं। अब इस मुद्दे पर बिहार में भाजपा ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है।
मगर कांग्रेस ने भी इस मामले में भाजपा का रिकॉर्ड ज्यादा खराब बताते हुए मस्तान की बर्खास्तगी की मांग को बेतुका बता दिया है। कुछ हद तक सही भी है कि अतीत में भाजपा के नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और दूसरे कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजियां की हैं। बिहार में विपक्षी भाजपा द्वारा मस्तान की बातों पर आपत्ति जताते हुए जिस तरह उन्हें 'बांग्लादेशी' और 'देशद्रोही' कहा गया उससे लगता है कि भाजपा जिसके लिए मस्तान को कठघरे में खड़ा कर रही थी, वही काम वह खुद कर रही है। दूसरी पार्टियों के कुछ नेता भी इस मामले में पीछे नहीं हैं।
सवाल है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जिस असहिष्णुता की बात कर रहे हैं, क्या उसकी चिंता बिहार से लेकर दिल्ली तक के भाजपा नेताओं को नहीं होनी चाहिए। किसी भी मामले को तूल देकर विवाद बढ़ाना और समाज में तनाव पैदा करना समस्या का हल नहीं है। बहरहाल, देखते हैं कि देश में रफ्तार पकड़ रही असहिष्णुता रूपी गाड़ी कहां जाकर विराम लेती है?
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