RSS मॉडल की बुराई करते-करते उसी की राह पर क्यों चल पड़ी कांग्रेस ?
नई दिल्ली- कहा जाता है भारतीय जनता पार्टी को देशभर में जो कामयाबी मिल रही है, उसकी जमीन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ही तैयार की है। संघ की ही जमीन पर जनसंघ बना और उसी की बोई हुई फसल काटने का मौका बीजेपी को मिल रहा है। यह भी तथ्य है कि कांग्रेस ने आरएसएस और बीजेपी की विचारधारा का हमेशा विरोध किया है। लेकिन, जब लगातार दो-दो बार लोकसभा चुनाव में पार्टी की हालत पतली हुई है तो कांग्रेस के भीतर से ही आरएसएस से सीखने की नसीहत मिलनी शुरू हो गई थी। इसलिए लगता है कि कांग्रेस ने संगठन के स्तर पर संघ की तर्ज पर ही अपने विशेष प्रशिक्षित लोगों को कार्यकर्ताओं को एकजुट करने और जनता तक सीधी पैठ बनाने के लिए नियुक्त करने का मन बना लिया है। जानकारी के मुताबिक पार्टी आरएसएस मॉडल पर ही प्रचारकों की तरह 'प्रेरकों' की नियुक्ति करने की तैयारियों में जुट गई है।
संघ प्रचारकों की तरह कांग्रेस में होगी 'प्रेरकों' की नियुक्ति
जानकारी के मुताबिक कांग्रेस पार्टी ने संभाग स्तर पर 3 प्रेरकों या मोटिवेटर्स की नियुक्ति की योजना बनाई है। एक संभाग में चार से पांच जिले शामिल होते हैं। लेकिन, हिंदुस्तान टाइम्स की खबरों के मुताबिक इन प्रेरकों की नियुक्ति तभी होगी जब वे तीन महीनों तक जमीनी स्तर पर काम कर लेंगे। यानि आने वाले दिनों में कांग्रेस के पास पूरे देश में प्रेरकों की पूरी फौज तैयार होगी जो कार्यकर्ताओं को खास ट्रेनिंग देंगे और उन्हें बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में बेहतर परिणाम देने लायक बना सकेंगे। ये प्रेरक जन संपर्क अभियानों के जरिए कार्यकर्ताओं का कौशल बढ़ाएंगे ताकि वे जमीनी स्तर पर जनता से पार्टी को जोड़ सकें। पार्टी पदाधिकारियों के मुताबिक ये प्रेरक कार्यकर्ताओं को कांग्रेस की विचारधारा और उसके इतिहास से भी रूबरू कराएंगे और पार्टी की नीतियों के बारे में भी उन्हें लगातार जागरूक करते रहेंगे।
कहां से मिला आइडिया
बता दें कि चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सबसे पहले पार्टी को जन संपर्क बढ़ाने के लिए आरएएस मॉडल अपनाने की सलाह दी थी। शायद उसी का असर हुआ है कि पिछले तीन सितंबर को दिल्ली में आयोजित एक दिवसीय पार्टी की वर्कशॉप में यह विचार औपचारिक तौर पर सामने आया है। इस वर्कशॉप के बाद एक नोट तैयार किया गया है जिसमें इस बात को प्रमुखता दी गई है कि पार्टी कार्यकर्ताओं को हर स्तर पर लगातार प्रशिक्षित करना किसी भी राजनीतिक संगठन की आधारभूत आवश्यकता है। इसलिए अगर सांगठनिक तौर पर प्रेरकों की बहाली की जाएगी तो वे इन जरूरतों को बिना रुकावट पूरा कर सकेंगे। जानकारी के मुताबिक पार्टी की ओर से प्रदेश इकाइयों से कहा गया है कि वे संभावित प्रेरकों की जल्द से जल्द पहचान करें और सितंबर के अंत तक पार्टी को एक लिस्ट सौंप दें।
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इस मामले में प्रचारकों से अलग होंगे प्रेरक
आरएसएस के प्रचारक पूर्णकालिक वॉलंटियर्स होते हैं, जिनकी जिम्मेदारी संघ की विचारधारा को आम लोगों के बीच रहकर आमलोगों तक पहुंचाने की रहती है। वह इस तरह से प्रशिक्षित होते हैं कि समाज में जनता के बीच आसानी से घुलमिल जाते हैं और उनके बीच ही जीवन भी गुजारते हैं। वे बाल स्वयंसेवकों से लेकर बुजुर्गों तक को शाखा से जोड़ते हैं और उनके साथ सामाजिक कार्यो में भी सहभागी बनते हैं। लेकिन, सैद्धांतिक तौर पर उन्हें खुद चुनावी राजनीति से दूर रहना होता है। लेकिन, कांग्रेस के 'प्रेरकों' के लिए ऐसी कोई मनाही नहीं है। इसका मतलब वे खुद भी चुनाव लड़ सकते हैं।
प्रेरकों के लिए ये जरूरी होगा
वैसे कांग्रेस के नोट में इस बात का जिक्र है कि प्रेरकों को संगठन का अनुभव होना चाहिए, ताकि वे कार्यकर्ताओं को पार्टी के प्रति बिना कोई सवाल उठाए कमिटमेंट और सम्मान की भावना पैदा कर सकें। कांग्रेस के नोट के मुताबिक, 'उनमें प्रशिक्षण की आइडिया के प्रति गहरा विश्वास और कमिटमेंट जरूर होनी चाहिए और इस प्रक्रिया के लिए समय और ऊर्जा देने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। उनमें सबका विश्वास और सम्मान जीतने की क्षमता होनी चाहिए और उन्हें गुटबाजी से दूर और कार्यकर्ताओं के प्रति सम्मान रखने वाला होना चाहिए।' प्रेरकों की यह भी जिम्मेदारी होगी कि वह अपने स्तर पर एक्सपर्ट और संसाधनों की तलाश करें, जो स्थानीय स्तर के मुद्दों पर कंटेंट तैयार करने में उनकी मदद कर सकें और उसी आधार पर ट्रेनिंग कैलेंडर भी तैयार किया जा सके।
प्रचारकों और प्रेरकों की ट्रेनिंग में अंतर
कांग्रेस ने जिस संभाग स्तर पर तीन प्रेरकों की नियुक्ति करने की योजना बनाई है, आरएसएस में उस स्तर पर 'विभाग प्रचारक' जिम्मा संभालते हैं। कांग्रेस की योजना के मुताबिक पार्टी प्रेरकों के लिए तीन महीने तक जमीनी स्तर पर काम करना जरूरी होगा। लेकिन, संघ में आमतौर पर किसी भी स्तर पर प्रचारकों की तैनाती तीन वर्षों के प्रशिक्षण के बाद ही होती है। यही नहीं उसमें पहले नगर, जिला, विभाग, प्रांत और तब क्षेत्र प्रचारकों की नियुक्ति की परंपरा चली आ रही है। यानि आमतौर पर विभाग प्रचारों के पास जनता और स्वयंसेवकों के बीच काम करने का बहुत ही लंबा अनुभव होता है। जबकि, कांग्रेस के नोट में कहा गया है कि 'हर प्रेरक को ज्ञान और विश्वास बहाल करने के लिए 5-7 दिन का प्रशिक्षण लेना होगा...' इसके बाद जब वे तीन महीने फिल्ड में काम कर लेंगे तब उनकी नियुक्ति कर दी जाएगी। खुद प्रशिक्षण लेने के बाद कांग्रेस के प्रेरक जिलास्तर पर पार्टी ऑफिस में महीनें में एक बार 'संगठन संवाद' आयोजित करेंगे, जिसमें प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर की मौजूदा राजनीति पर चर्चा की जाएगी।
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