JDU से निकाले जाने के बाद प्रशांत किशोर का नीतीश कुमार पर पहला बड़ा हमला- लगाए ये 5 गंभीर आरोप
पटना। जेडीयू से निकाले जाने के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पार्टी मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोला है। बिहार की राजधानी पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर प्रशांत किशोर ने कहा कि नीतीश कुमार जी ने बिहार में साइकिल और पोशाक बांटीं, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता नहीं सुधार पाए। बिहार बिजली के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर नहीं हो सका, और मानव विकास सूचकांक में भी बिहार काफी पिछड़ा हुआ है।"
बिहार की स्थिति वैसी की वैसी
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सुशासन बाबू वाली छवि पर बोलते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि बीजेपी के साथ नीतीश कुमार के रहने से बिहार का विकास हुआ। 15 साल में बिहार में खूब विकास हुआ है, लेकिन विकास की गति धीमी है। 2005 में जो बिहार की स्थिति थी, आज भी वही स्थिति है। कैपिटल इनकम में बिहार 2005 में भी 22वें नंबर पर था, आज भी उसी नंबर पर है।
Recommended Video
नीतीश कुमार पिछलग्गू नेता
प्रशांत किशोर ने कहा "हम वह नेता चाहते हैं, जो सशक्त हो, जो बिहार के लिए अपनी बात कहने में किसी का पिछलग्गू न बने। प्रशांत किशोर ने कहा 'पिछले 1.5 साल से मैं हर प्लेटफॉर्म पर कहता रहा हूं कि मैं ऐसे यंग लोगों को जोड़ना चाहता हूं जो बिहार को आगे ले जाएं। इस 20 तारीख से मैं नया कार्यक्रम शुरू कर रहा हूं- बात बिहार की। इसके तहत बिहार के 8 हजार से ज्यादा गांवों से लोगों को चुना जाएगा जो यह सोचते हों कि अगले 10 साल में बिहार अग्रणी 10 राज्यों में शामिल हो।'
|
नीतीश जी से मेरा संबंध विशुद्ध राजनीतिक नहीं रहा
प्रशांत ने कहा कि नीतीश जी से मेरा संबंध विशुद्ध राजनीतिक नहीं रहा। दिल्ली में मैं और नीतीश जी पहली बार मिले थे। जब मैं जदयू में नहीं था तब भी और इसमें शामिल होने के बाद भी उन्होंने मुझे बेटे जैसे रखा। जिन्होंने देखा है मेरे-उनके संबंध को, वे यह बात कन्फर्म कर देंगे। मेरे लिए वे पिता तुल्य हैं। उन्होंने मुझे शामिल करने और बाहर करने का जो फैसला किया, वो उनका एकाधिकार था। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करुंगा। इस बात के लिए उनका सम्मान है। यह आदर आगे भी रहेगा। मेरा जब उनसे अच्छा संबंध रहा है, तो सवाल है कि मतभेद किस बात का है।
गांधी और गोडसे की विचारधारा साथ नहीं चल सकती
विचारधारा को लेकर, क्योंकि जितना मैं उन्हें जानता हूं, उसे लेकर नीतीश जी कहते रहे हैं कि गांधी, जेपी और लोहिया की बातें हम नहीं छोड़ सकते। वे लोगों को गांधी और लोहिया के विचार पढ़ा रहे हैं। क्या ऐसे में वे गोडसे की विचारधारा वालों के साथ खड़े हो सकते हैं। वे भाजपा के साथ खड़े होना चाहते हैं, वह ठीक है, लेकिन गांधी और गोडसे की विचारधारा साथ नहीं चल सकती है।
Read Also- शिमला मिर्च की सब्जी बनाने वाला था कपल, काटा तो अंदर से निकला जिंदा मेंढक और...
इतने कॉम्प्रोमाइज के बाद इतनी तरक्की हो जाए कि बिहार का भला हो जाए
जदयू की पोजिशनिंग को लेकर। सब जानते हैं कि भाजपा और जदयू का 15 साल से संबंध हैं। जिस भाजपा के साथ नीतीश जी 2004 के बाद से रहे, उसमें काफी फर्क है। 2014 में 2 सांसद के साथ चुनाव हारे हुए नीतीश का मेरे मन में ज्यादा सम्मान है, न कि 16 सांसद वाले नीतीश का। वे कोई मैनेजर नहीं हैं। यह अधिकार और एकाधिकार बिहार की जनता का है कि हम ऐसा नेता चाहते हैं जो किसी का पिछलग्गू न हो, स्वतंत्र विचार रखे। जो चाहते हैं कि हम भाजपा के साथ इन्हीं शर्तों पर बने रहें। वे कहते हैं कि बिहार के विकास के लिए इन मूल बातों पर समझौता करना पड़े तो कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। लेकिन मूल बात अगर बिहार का विकास है, तो आपको देखना चाहिए कि क्या इस गठबंधन से बिहार का विकास हो रहा है। अगर हो रहा है, तो आप झुक जाएं तो भी मुझे आपत्ति नहीं है। लेकिन, इतने कॉम्प्रोमाइज के बाद इतनी तरक्की हो जाए कि बिहार का भला हो जाए।
'प्यार' की तलाश में मादा भेड़िये ने पैदल किया 14000 KM का सफर, पहुंची कैलिफोर्निया और मिली मौत