प्रशांत भूषण: भारत के ‘जनहित याचिका वकील नंबर वन’ या विवादित शख़्सियत
प्रशांत भूषण ने बीबीसी से फ़ैसले की घड़ी के कुछ घंटों पहले कहा कि वो किसी तरह के 'तनाव से मुक्त हैं, बेहतर निर्णय की आशा कर रहे हैं लेकिन किसी भी तरह की स्थिति के लिए तैयार हैं."
बात कुछ पुरानी है. शायद कोई चालीस-इक्तालीस साल पहले की. अमरीका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में 23 साल का एक नौजवान एक 'साइंस फ़िक्शन' (विज्ञान से जुड़ा उपन्यास) लिखने की कोशिश कर रहा था, लेकिन 'ब्रह्माण्ड में धरती के अलावा भी दुनिया है' की थीम पर लिखा गया ये नॉवेल प्रकाशित नहीं हो पाया.
हालांकि उस युवक ने बाद में कई और क़िताबें लिखीं लेकिन दुनिया आज उस नौजवान, प्रशांत भूषण को एक लेखक के तौर पर नहीं बल्कि एक वकील के रूप में जानती है, एक ऐसे वकील के रूप में जिसने 500 से ज़्यादा केस लड़े हैं.
इनमें अधिकतर पर्यावरण, मानवाधिकार और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से जुड़े मुक़दमे बिना किसी फ़ीस के लड़े गए.
अंग्रेज़ी पत्रिका इंडिया टुडे ने अपने एक लेख में उन्हें भारत का 'जनहित याचिका वकील नंबर वन' कहा था.
प्रशांत भूषण के इन कृत्यों को हालांकि कुछ लोग 'चर्चित होने के लिए किया गया' बताते हैं जिसके वो 'माहिर कलाकार' हैं. कुछ के मुताबिक़ वो एक 'अराजकतावादी' हैं.
भारत की सबसे ऊंची अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने तो उन्हें अदालत की गरिमा कम करने की कोशिश करने का दोषी क़रार दिया है. मगर जाने-माने वकील का अदालत की अवमानना का ये पहला मामला नहीं.
63 साल के प्रशांत भूषण के कुछ और परिचय भी हैं: वे एक पति हैं, पिता, राजनीतिज्ञ और आर्ट कलेक्टर भी.
पिता शांति भूषण के वक़ालत से जुड़े और सफल वकील होने के बावजूद प्रशांत भूषण का इस व्यवसाय में जाने का शायद कोई इरादा नहीं था, कम से कम शुरुआत में तो बिल्कुल नहीं.
विज्ञान की क़िताबों का शौक
पहले वो इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए आईआईटी यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी मद्रास गये, लेकिन उसे उन्होंने एक सेमेस्टर के बाद ही छोड़ दिया क्योंकि उनके शब्दों में 'दो साल की छोटी बहन जिससे उन्हें बेहद लगाव था, उसे वो बेहद मिस कर रहे थे.'
क़ानून की पढ़ाई करने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय वो प्रिंसटन से होते हुए आये थे जहाँ उन्होंने साइंस ऑफ़ फ़िलॉसोफ़ी का कोर्स किया था.
इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ चुनावी धोखाधड़ी का मुक़दमा शांति भूषण ने ही लड़ा था जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री हार गई थीं और देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था जो 21 माह तक चला.
इमरजेंसी हटने के बाद हुए चुनाव के बाद केंद्र में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की सरकार में शांति भूषण 1977-79 तक क़ानून मंत्री रहे.
इंदिरा गांधी के विरूद्ध इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनावी धोखाधड़ी का मामला समाजवादी नेता राज नारायण ने दाख़िल करवाया था.
प्रशांत भूषण दो साल तक चले मुक़दमे की सुनवाई में मौजूद रहे थे जिसके बाद उन्होंने 'द केस दैट शुक इंडिया' क़िताब लिखी. उनकी दूसरी क़िताब, 'बोफ़ोर्स, द सेलिंग ऑफ़ ए नेशन' प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार के वक़्त हुए कथित तोप घोटाले से संबंधित है.
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के दिनों के उनके साथी प्रोफ़ेसर हरजिंदर सिंह कहते हैं कि 'प्रशांत का शौक विज्ञान की क़िताबों में अभी भी बना हुआ है.'
हरजिंदर कहते हैं, 'कोई दो माह पहले उन्होंने मुझसे रसायन के परीक्षण से संबंधित एक पुस्तक के बारे में पूछा था.'
जनहित के मामलों का भंवर
तब कांग्रेस(ओ) के सदस्य शांति भूषण ने अपने संस्मरण - 'कोर्टिंग डेस्टिनी: ए मेमोएर' में लिखा है कि 1976 में बंबई (तब वो यही कहलाती थी) में जयप्रकाश नारायण ने जो बैठक बुलाई थी उसमें वो शामिल थे और वहीं दो दिनों की बैठक के बाद तय किया गया कि अगर इंदिरा गांधी को हराना है तो कांग्रेस(ओ), जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय लोकदल का विलय करना होगा.
शांति भूषण भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक और 1986 तक इसके कोषाध्यक्ष थे.
शांति भूषण और प्रशांत भूषण लोकपाल बिल की जॉइंट ड्राफ़्टिंग कमेटी के सदस्य भी थे.
आईआईटी और प्रिंसटन के बाद प्रशांत भूषण का विज्ञान से भले ही सीधे तौर पर नाता ना रहा हो, लेकिन वही वो वजह बनी जब 1983 में दून वैली में चूना पत्थर की खुदाई की वजह से पर्यावरण को होने वाले नुक़सान का केस उनके पास आया.
देहरादून से बीबीसी से फ़ोन पर बात करते हुए जानी-मानी पर्यावरणविद वंदना शिवा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले में एक 'ऐमिकस क्यूरी' (अदालत का दोस्त वकील) नियुक्त किया था, लेकिन वो पर्यावरण से जुड़ी बातों को समझ नहीं पा रहे थे, तभी किसी ने मुझे प्रशांत भूषण का नाम सुझाया.
उस मुक़दमे में सुप्रीम कोर्ट ने जीवन और निजी स्वतंत्रता (संविधान की धारा-21) के तहत फ़ैसला सुनाया था जो वंदना शिवा के मुताबिक़ एक 'ऐतिहासिक निर्णय' था.
इसके बाद अंतरराष्ट्रीय खाद-बीज कंपनी मोन्सैंटो, 1984 का सिख-विरोधी दंगा, भोपाल गैस कांड, नर्मदा बांध और दूसरे जनहित के केस एक के बाद एक प्रशांत भूषण के पास पहुँचने लगे और उनके अपने शब्दों में 'वे इस भंवर में खिंचते चले गये.'
भूषण पर हमला
शांति भूषण और कुमुद भूषण की चार संतानों में सबसे बड़े प्रशांत भूषण पिता के साथ ही दिल्ली से सटे नोएडा में रहते हैं, जहाँ तीन साल पहले कुछ लोगों ने उनके घर के पास उपद्रव मचाया था और उनके घर पर रंग फेंक दिया था.
ख़बरों के मुताबिक़ उनके घर के सामने ये प्रदर्शन प्रशांत भूषण के उस ट्वीट की वजह से हुआ था जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के रोमियो-स्क्वायड के बारे में कुछ कहते हुए 'हिंदू देवता कृष्ण' का हवाला दिया था जिससे कुछ लोगों की 'धार्मिक भावनाएं' आहत हो गई थीं.
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने समाचार एजेंसी एएनआई को दिये एक बयान में कहा था, "प्रशांत भूषण जी ने भगवान कृष्ण के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया है, उससे करोड़ों भारतीयों की भावनाओं को ठेस पहुँची है. आप भगवान की वही छवि देख पाएंगे जिस तरह की आपकी मानसिकता है."
हालांकि प्रशांत भूषण का कहना था कि 'उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है.'
अक्टूबर 2011 में मशहूर वकील और तब अन्ना हज़ारे की टीम के सदस्य रहे भूषण पर सुप्रीम कोर्ट के सामने स्थित उनके कार्यालय में हमला किया गया था, जहाँ हमला करने वालों में से एक-दो लोग जय श्री राम के नारे लगा रहे थे और उन्होंने प्रशांत भूषण को थप्पड़ मारा और उन्हें धक्का देकर ज़मीन पर गिरा दिया.
तब केंद्र और दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी. तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम ने प्रशांत भूषण पर हमले की निंदा की थी.
हमलावरों में से एक तेजिंदर सिंह बग्गा, जो उस समय ख़ुद को 'भगत सिंह क्रांति सेना' का बताते थे, बाद में भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता नियुक्त किये गए थे.
हमले के संदर्भ में प्रशांत भूषण के हवाले से कहा गया था कि 'उन्होंने कश्मीर में जनमत संग्रह करवाये जाने का समर्थन किया था.'
इंडिया अगेंस्ट करप्शन की शुरुआत
भारत में विलय के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के एक प्रस्ताव के मुताबिक़, एक जनमत संग्रह करवाकर यह पता किया जाना था कि 'जम्मू-कश्मीर के लोग भारत के साथ रहना चाहते हैं या आज़ादी.'
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील अमिताभ सिन्हा कहते हैं, "कश्मीर को लेकर इस तरह के बयान देने का मतलब है कि आप पाकिस्तान के साथ खड़े हैं, ये देश तोड़ने की बात है, और देश नहीं बचेगा तो कोई नहीं बचेगा." अमिताभ सिन्हा बीजेपी के सदस्य हैं.
एक वरिष्ठ वकील पर लॉयर्स चैंबर्स में हुए हमले के बावजूद, सामान्यत: हर मामले पर मुखर रहने वाले वकीलों के संगठनों का प्रतिरोध दबा-दबा सा रहा जिस पर कुछ लोगों ने आश्चर्य ज़रूर जताया, लेकिन प्रशांत भूषण ने इंडिया टुडे से कहा, "मैं बहुत ही अलग-थलग हूँ और क़ानूनी बिरादरी में मेरे चंद ही अच्छे दोस्त हैं. मैंने अलग-अलग क्षेत्रों के बहुत सारे लोगों का भांडाफोड़ किया है. कारपोरेट जगत भी मेरे ख़िलाफ़ है."
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दूसरे कार्यकाल में प्रशांत भूषण ने नीरा राडिया टेप कांड, कोयला और 2-जी स्प्रेक्टम घोटाले जैसे मामले उठाये थे जिसके नतीजे में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री को ना केवल इस्तीफ़ा देना पड़ा, बल्कि उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पेक्ट्रम और कोल ब्लॉक के आवंटन रद्द कर दिये थे. इन मामलों में सीबीआई जाँच का हुक्म सुनाया गया था जिससे टेलीकॉम कंपनियों को भारी नुक़सान भी उठाना पड़ा था.
गोवा में अवैध लौह अयस्क खनन पर उनकी याचिका के बाद अदालत ने वहाँ खनन पर रोक लगा दी थी.
ऐसे मामले उठने के बाद ही मुल्क़ में बनी फ़िज़ा के बीच 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' मुहिम की शुरुआत हुई जिसके बाद आम आदमी पार्टी एक राजनीतिक दल के तौर पर उभरी और प्रशांत भूषण इसके संस्थापक-सदस्यों में से एक थे.
लेकिन बाद में पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल से हुए मतभेद की वजह से उन्हें इससे अलग होना पड़ा जिसके बाद राजनीतिक सहयात्री और आप के एक अन्य सदस्य और जाने-माने चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव के साथ मिलकर उन्होंने 'स्वराज इंडिया' पार्टी बनाई.
अदालत की अवमानना
'आप' के दिनों के उनके पुराने साथी आशीष खेतान कहते हैं, "प्रशांत जी ने आप के लिए एक माँ जैसी भूमिका निभाई थी और पार्टी के प्रति उनके मन में स्नेह और बेहद प्यार था." आशीष खेतान भी आप से अलग होकर इन दिनों मुंबई में वकालत कर रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों के एक वर्ग का मानना है कि प्रशांत भूषण के कोयला और 2-जी स्प्रेक्ट्रम घोटाला, नीरा राडिया टेप कांड जैसे मामले उठाने के बाद देश में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जो हवा तैयार हुई उसने बीजेपी को 2014 में केंद्र में सत्ता में लाने में एक अहम रोल अदा किया.
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भी प्रशांत भूषण ने राफ़ेल लड़ाकू विमान के सौदे में कथित घोटाला, कोविड लॉकडाउन के कारण उभरे प्रवासी मज़दूरों की समस्या, पीएम केयर्स फंड की 'अपारदर्शिता' जैसे मामलों को उठाना जारी रखा है.
हालांकि इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने जो फ़ैसले दिये वो 'सरकार के पक्ष में गये' समझे जाते हैं.
अमिताभ सिन्हा कहते हैं कि जब आप हमेशा शिक़ायत करते हैं तो लोगों को लग जाता है, चूंकि आप ख़ुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं तो आप बार-बार ख़फ़ा हो रहे हैं और प्रशांत भूषण ने अदालत की अवमानना के मामले में 'वही किया है जैसा मुर्ख कालिदास ने किया था कि जिस डाली पर बैठे हैं उसे ही काट रहे हैं.'
वे कहते हैं, "सत्ता विरोधी रहते-रहते अब प्रशांत भूषण अराजकतावादी हो गए हैं और देश में अब तक जिन दो संस्थाओं- न्यायपालिका और फ़ौज, जिनमें लोगों का यक़ीन है, उनके भी बदनाम करने लगे हैं जिसकी इजाज़त किसी को नहीं दी जानी चाहिए."
'गैंग का हिस्सा'
प्रशांत भूषण के कुछ क़रीबी लोग, जो नाम ज़ाहिर नहीं करना चाहते, वो कहते हैं कि उनकी ईमानदारी और जज़्बे पर किसी तरह का शक़ नहीं किया जा सकता, लेकिन कभी-कभी वो भावनाओं को तौल नहीं पाते और 'जो भी असहमत होता है, वो उसके ख़िलाफ़ हो जाते हैं.'
कुछ लोग तो अवमानना पर फ़ैसला आने के बाद उन्हें 'गैंग का हिस्सा' बुलाने लगे हैं.
योगेंद्र यादव ने बीबीसी के एक सवाल के जवाब में कहा, "किसी को खांचे में डालने की कोशिश एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा होती है, लेकिन प्रशांत भूषण को किस तरह किसी बॉक्स में डाला जा सकता है? वो कम से कम पिछले चार दशक से जनता के हित के लिए लड़ते रहे हैं, चाहे सरकार किसी की हो."
पिछले रविवार यानी 16 अगस्त को योगेंद्र यादव अपने परिवार के साथ लंच पर प्रशांत भूषण के घर पर थे.
योगेंद्र यादव कहते हैं, "प्रशांत बिल्कुल शांत और किसी तरह की चिंता से दूर दिख रहे थे, घर का माहौल भी बिल्कुल नॉर्मल था, बल्कि शांति भूषण जी ने मज़ाक़ में कहा कि आज लंच साथ कर लो मालूम नहीं प्रशांत को अगले सप्ताह कहाँ भोजन करना पड़े."
योगेंद्र यादव ने आगे कहा कि लंच के बाद वो मुझे अपने घर के उस हिस्से में ले गए जहाँ उनके पेंटिग्स की कलेक्शन है और फिर आगे की बात उसी पर होती रही.
प्रशांत भूषण तरह-तरह की पेंटिग्स इकट्ठा करने के शौकीन हैं और उनके पास मिनियेचर, कंपनी और दूसरे स्कूल की पेंटिग्स का बढ़िया कलेक्शन है.
इस बीच अदालत की अवमानना मामले में प्रशांत भूषण ने बुधवार को सज़ा सुनाये जाने पर रोक लगाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल की है.
Today, #prashantbhushan must be a happy man. SC has upheld his values. pic.twitter.com/IWL7UB3WJo
— Abhijit Majumder (@abhijitmajumder) August 14, 2020
'ही कैन अफ़ोर्ड टू डू डैट'
14 अगस्त को दो पुराने ट्वीट की वजह से सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का दोषी ठहराये जाने के बाद कुछ लोग कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व जज सीएस करनन पर प्रशांत भूषण के पुराने ट्वीट को री-ट्वीट करने लगे जिसमें प्रशांत भूषण ने पूर्व जज के खिलाफ़ अवमानना मामले में लिये गए फ़ैसले को सही ठहराया था.
सोशल मीडिया पर कुछ कमेंट तो ऐसे भी आये कि प्रशांत भूषण ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि जस्टिस करनन दलित थे.
2017 के इस मामले में पूर्व जज ने चीफ़ जस्टिस जेएस केहर समेत सात जजों के ख़िलाफ़ ग़ैर-ज़मानती वारंट जारी कर दिया था.
क़ानून के कई जानकारों का कहना है कि प्रशांत भूषण और न्यायाधीश सीएस करनन वाले मामले में समानता ढूंढना ग़लत है.
प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना का ये पहला मामला नहीं है, इससे पहले उनके ख़िलाफ़ ये मामला तब भी उठा था जब उन्होंने आरोप लगाया था कि 'पिछले 16-17 जजों में से आधे भ्रष्ट थे.'
उनके एक पुराने दोस्त कहते हैं, 'ही कैन अफ़ोर्ड टू डू डैट' (वो ऐसा ख़तरा लेने का जोखिम उठा सकते हैं) क्योंकि उनके पास इसकी क्षमता है.
एक जाने-माने वकील और पूर्व राजनीतिज्ञ के बेटे प्रशांत भूषण के एक और भाई जयंत भूषण सुप्रीम कोर्ट में सफल वकील हैं, जबकि पत्नी दीपा भूषण भी पहले वकील रह चुकी हैं और उनके तीनों बेटों ने दिल्ली विश्वविद्यालय से क़ानून की शिक्षा ली है.