Pranab Mukherjee:'महामहिम' कहलाने से रोकने के लिए हमेशा याद किए जाएंगे पूर्व राष्ट्रपति
नई दिल्ली पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ऑपनिवेशिक काल के दो आदरसूचक शब्दों 'हिज एक्सीलेंसी' और 'महामहिम' शब्दों के प्रचलन को रोकने के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। उन्होंने पहले खुद के लिए इन सम्मानजनक शब्दों को कहने से लोगों को रोका फिर औपचारिक रूप से एक नया प्रोटोकॉल तैयार करके दे दिया। उनके निर्देश पर जारी नए प्रोटोकॉल में बाकायदा उन शब्दों का जिक्र किया गया, जिसे 'राष्ट्रपति' और 'राज्यपालों' के लिए इस्तेमाल होना चाहिए। यही नहीं उन्होंने यह भी निर्देश दिए थे कि दिल्ली में आयोजित होने वाले किसी कार्यक्रम में अगर उन्हें शामिल होना है और वह राष्ट्रपति भवन में भी करवाया जा सकता है तो ऐसा ही इंतजाम होना चाहिए, ताकि आम लोगों को उनकी वजह से कोई परेशानी ना हो।
जब प्रणब मुखर्जी ने लगाई थी 'महामहिम' कहने पर रोक
9 अक्टूबर, 2012 की बात है जब देश के राष्ट्रपति रहते हुए प्रणब मुखर्जी ने औपनिवेशिक काल से चली आ रही राष्ट्रपति और राज्यपालों के अभिवादन के लिए प्रोटोकॉल के तहत प्रचलित दो शब्दों के इस्तेमाल पर औपचारिक तौर पर रोक लगा दी थी। इसके तहत प्रणब मुखर्जी ने गणमान्य व्यक्तियों के साथ मुलाकात के दौरान खुद के लिए (राष्ट्रपति) देश के अंदर या देश के बाहर इस्तेमाल करने के लिए नए प्रोटोकॉल को मंजूरी दी। उससे पहले राष्ट्रपति के लिए अंग्रेजी में 'हिज एक्सीलेंसी' और हिंदी में 'महामहिम' जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता था। लेकिन, प्रणब मुखर्जी ने निजी पहल करते हुए अंग्रेजों के जमान की इस प्रथा पर रोक लगा दी और उसके लिए नए शब्दों के इस्तेमाल को मंजूरी दी थी।
'राष्ट्रपति महोदय' या 'माननीय राष्ट्रपति' कहने की परंपरा शुरू की
तत्कालीन राष्ट्रपति मुखर्जी की ओर से इस संबंध में आधिकारिक तौर पर जो निर्देश जारी किया गया उसके बारे में राष्ट्रपति भवन के प्रवक्ता की ओर से बताया गया था कि, 'राष्ट्रपति के साथ देश के अंदर किसी भी कार्यक्रम में भारतीय गणमान्य लोगों से मुलाकात के दौरान 'हिज एक्सीलेंसी' शब्द का इस्तेमाल रोक दिया जाएगा। ......ऐसे अवसरों पर हिंदी में 'महामहिम' की जगह 'राष्ट्रपति महोदय' का उपयोग होना चाहिए। ' मुखर्जी ने तब जारी प्रोटोकॉल प्रथाओं की समीक्षा करते हुए ये भी निर्देश दिया था कि 'प्रेसिडेंट' या 'गवर्नर' के लिए उससे पहले 'ऑनरेवल' या 'माननीय' शब्दों का इस्तेमाल किया जाएगा। यही नहीं उन्होंने यह भी निर्देश दिए थे कि अगर नाम लिया जा रहा है तो उससे पहले परंपरागत भारतीय अभिवादन श्री या श्रीमती का उपयोग किया जाना चाहिए। इसमें साफ तौर पर कहा गया था कि क्योंकि ऐसा प्रोटोकॉल अंतरराष्ट्रीय प्रचलन में रहा है, इसीलिए 'एक्सीलेंसी' का इस्तेमाल सिर्फ विदेशी गणमान्य लोगों से औपचारिक मुलाकात के दौरान ही किया जाएगा।
मिथिला यूनिवर्सिटी में पहली बार संबोधित हुआ 'माननीय राष्ट्रपति'
इस फैसले के ठीक पहले यानी 3 अक्टूबर, 2012 को तत्कालीन राष्ट्रपति मुखर्जी बिहार के दरभंगा स्थित ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी में आयोजित चौथे दीक्षांत समारोह में शामिल होने पहुंचे थे, जहां उनके लिए 'महामहिम' की जगह 'माननीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी' शब्द का पहली बार उपयोग हुआ था। यानी अनौपचारिक तौर पर उन्होंने नई प्रथा की शुरुआत पहले से ही कर दी थी। जब मुखर्जी ने इस संबंध में आधिकारिक निर्देश जारी किए तब यह भी फैसला किया गया कि राष्ट्रपति सचिवालय के फाइलों की आधिकारिक नोटिंग्स में 'महामहिम' जगह 'राष्ट्रपतिजी' लिखा जाएगा।
राष्ट्रपति भवन में ही कार्यक्रम करवाने के सुझाव दिए
इतना ही नहीं प्रणब मुखर्जी ने इसी फैसले के साथ एक और बड़ा कदम उठाया था। उन्होंने निर्देश किया था कि राजधानी दिल्ली में अगर किसी कार्यक्रम में उन्हें शिरकत करने जाना होता है तो आम जनता को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और पुलिस और दूसरी एजेंसियों को भी काफी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। इसलिए उन्होंने कहा कि यथासंभव जितने भी कार्यक्रम हों उन्हें राष्ट्रपति भवन में ही करवाया जाय, ताकि जनता, पुलिस और तमाम एजेंसियों को उनकी वजह से किसी तरह की असुविधा का सामना ना करना पड़े। बाद में मौजूदा उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी साफ कर दिया कि, 'कोई सदस्य या कोई अन्य यदि उपराष्ट्रपति के लिए महामहिम शब्द का उपयोग करता है तो उन्हें अक्सर शर्म महसूस होती है। ऐसे शब्दों के भविष्य में इस्तेमाल की कोई जरूरत नहीं है।' उन्होंने सुझाव दिए कि 'आदरणीय सभापति' और उपराष्ट्रपति जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
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