इस शख्स की वजह से असम में लागू हुआ NRC, 10 साल पहले उठाया था मुद्दा
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गुवाहाटी: असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर(एनआरसी) की अंतिम सूची शनिवार को जारी कर दी गई। इस लिस्ट में करीब 19 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं है। हालांकि इन लोगों को अभी एक अंतिम मौका और मिलेगा। उन्हें फॉरेन ट्रिब्यूनल जाकर ये अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। गौरतलब है कि एनआरसी मोदी सरकार के प्रमुख मुद्दो में से एक रहा है। इस मुद्दे को लेकर असम में काफी समय से बहस चल रही है। इस मुद्दे को सबसे पहले उठाने वाले शख्स प्रदीप कुमार भुयन है, जो अब गुवाहाटी में गुमनाम जिंदगी जी रहे हैं।
इस शख्स ने सबसे पहले उठाया मुद्दा
असम में एनआरसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुख्य याचिकाकर्ता अभिजीत शर्मा के मुताबिक इस मुद्दे को सबसे पहले उठाने वाले शख्स का नाम प्रदीप कुमार भुयन है। बुर्जुग हो चुके प्रदीप भुयन एक सरकारी अधिकारी थी। उन्होंने 10 साल पहले साल 2009 में में इस दिशा में पहल की थी। उन्होंने ही एनआरसी को लेकर एक याचिका तैयार की थी और स्वयंसेवी संगठन असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्लयू) के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा को मनाया था। इसके बाद ये मुद्दा पूरे देश में बहस का विषय बना।
एनआरसी के लिए मोटी रकम खर्च की
अभिजीत ने बताया कि प्रदीप कुमार भुयन, उनकी पत्नी बांती भुयन और सरकारी अफसर नबा कुमार डेका की वजह से ही एनआरसी का मसौदा बन पाया। प्रदीप कुमार भुयन ने एनआरसी के मसले पर कानूनी लड़ाई लड़ने के बड़ी रकम खर्च की। गौरतलब है कि प्रदीप कुमार भुयन साल 1958 बैच के आईआईटी खड़गपुर से पास आउट हैं। भुयन शिक्षाविद रहे हैं और 70 के दशक में उन्होंने गुवाहाटी में अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की शुरुआत की थी।
मीडिया से बनाई दूरी
एनआरसी का मुद्दा मीडिया में आने के बाद प्रदीप कुमार ने मीडिया से दूरी बना ली। उन्होंने इसे लेकर ना किसी से बात की और ना ही किसी को इंटरव्यू दिया। एनआरसी की पहली लिस्ट आने के बाद उन्होंन कुछ मीडियाकर्मियों से इस बारे में बात की। असम के लोगों का मानना है कि अगर भुयन न होते तो असम में एनआरसी लागू नहीं हो पाता। 84 साल के प्रदीप भुयन ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में एनआरसी के मुद्दे पर बात की। ने बताया कि पहली बार साल 2009 में एनजीओ चलाने वाले अभिजीत शर्मा उनके पास आए। अभिजीत का मानना था कि बाहरी घुसपैठिए असम को बर्बाद कर रहे हैं और एनआरसी का मुद्दा ठंडे बस्ते में पड़ा है। अभिजीत ने ही उन्हें एनआरसी का मसौदा बनाने के लिए तैयार किया।
चुनाव आयोग के डॉटा लिया
प्रदीप कुमार भुयन बताते हैं कि एनआरसी का मसौदा बनाना आसान नहीं था। इसके लिए असम में रह रहे लोगों के डॉटा की जरूरत थी। इसके लिए उन्होंने चुनाव आयोग के डॉटा का सहारा लिया और साल 1971 का डॉटा हासिल किया। डॉटा हासिल करने के बाद हर चुनाव क्षेत्र के वोटर्स और उसके चुनाव नतीजों की गहराई से पड़तासल की। इस पर काफी होमवर्क करने के बाद उन्होंने जुलाई 2009 में सुप्रीट कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने इसे मंजूर कर लिया।
'राजनीति की वजह से लटकाया गया'
प्रदीप कुमार भुयन ने एनआरसी को लेकर हुए आंदोलन में हिस्सा लिया है। उनका मानना है कि सिर्फ राजनीति की वजह से इस मुद्दे को लटकाया जा रहा था। वोटबैंक की पॉलिटिक्स असम को बर्बाद कर रही थी। बाहरी घुसपैठिए राजनीतिक ताकत हासिल कर रहे थे। इसके बावजूद असम के अपने ही लोग सबकुछ देखते हुए कुछ नहीं कर पा रहे थे। एनआरसी की वजह से लोगों की हुई दिक्कत पर उनका कहना है कि एनआरसी की प्रक्रिया इतनी लंबी और मशक्कत वाली है कि इसका असर होना ही था। एक फीसदी की गड़बड़ी भी लाखों लोगों को प्रभावित कर सकती है। सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि आखिर 1985 से इस मसले को क्यों लटका कर रखा गया?
'देश से बाहर निकालना ठीक नहीं'
प्रदीप कुमार ने कहा कि बाहर से आए लोगों को देश से निकालना ठीक नहीं है। उनका कहना है कि सरकार को सबसे पहले लिस्ट से बाहर रहे लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने चाहिए। उसके बाद इन लोगों को वर्क परमिट देकर काम धंधे में लगाया जा सकता है। लेकिन ऐसे लोगों को बाहरी मानना पड़ेगा। बाहरी घुसपैठ ही असम के लिए सबसे बड़ा खतरा है और इसने राज्य की डेमोग्राफी से लेकर संस्कृति और भाषा पर भी इसने हमले किए हैं उन्होंने एनआरसी को दशकों की समस्या का समाधान बताया।
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