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ग़रीबी ऐसी कि मां को बेटे का देहदान करना पड़ा!

छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक आदिवासी मां ने अपने जवान बेटे का शव इसलिए मेडिकल कॉलेज को दान में दे दिया क्योंकि उनके पास शव को घर तक ले जाने और उसका अंतिम संस्कार करने के लिए भी पैसे नहीं थे.

हालांकि मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक इस बात से ख़ुश हैं कि उन्हें पहली बार बच्चों के 'प्रैक्टिकल' के लिये कोई 'बॉडी' मिली है.

 

By BBC News हिन्दी
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छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक आदिवासी मां ने अपने जवान बेटे का शव इसलिए मेडिकल कॉलेज को दान में दे दिया क्योंकि उनके पास शव को घर तक ले जाने और उसका अंतिम संस्कार करने के लिए भी पैसे नहीं थे.

हालांकि मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक इस बात से ख़ुश हैं कि उन्हें पहली बार बच्चों के 'प्रैक्टिकल' के लिये कोई 'बॉडी' मिली है.

यह मामला ऐसे समय सामने आया है, जब पिछले ही सप्ताह राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राज्य में प्रति व्यक्ति आय में भारी बढ़ोत्तरी की घोषणा करते हुये दावा किया था कि राज्य में औसत आय 92,035 रुपये सालाना हो गई है.

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ऐसे में विपक्षी दल ने भी सरकार को घेरते हुए गंभीर आरोप लगाये हैं.

पुलिस के अनुसार बस्तर के बड़े आरापुर गांव के 21 साल के बामन अपने भाई-भाभी के साथ रहते थे और एक निजी ट्रैवल कंपनी में कंडक्टर का काम करते थे.

घनघोर ग़रीबी और एक मां की पीड़ा

सोमवार को एक अज्ञात वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी, जिसके बाद उन्हें गंभीर स्थिति में बस्तर के ज़िला मुख्यालय जगदलपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था. जहां गुरुवार को उनकी मौत हो गई.

परिजनों का कहना है कि मृतक के पिता की पहले ही मौत हो चुकी है.

मां सुधरी बाई की हालत ये थी कि वह इस बात के लिए तैयार हो गईं कि बेटे का शव कहीं रास्ते में छोड़ दिया जाये क्योंकि उनके पास अंतिम संस्कार के भी पैसे नहीं थे.

मृतक की मां सुधरी बाई का कहना था कि गरीबी के कारण उनकी स्थिति ऐसी नहीं है कि वे शव को अपने गांव भी ले जा सकें. इसके बाद फिर अंतिम संस्कार करना तो संभव ही नहीं था.

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मेडिकल कॉलेज ने किया धन्यवाद

मृतक की भाभी प्रेमवती का कहना है, "हम लोग बहुत गरीब हैं और शव ले जाकर भी कुछ नहीं कर पायेंगे. समाज के लोग कोई आये नहीं. मैं सबको बुला-बुलाकर थक गई. इसके बाद हमें एक व्यक्ति ने बताया कि अगर वे चाहें तो शव को यहीं मेडिकल कॉलेज में दान दे सकते हैं."

मेडिकल कॉलेज के शवघर के प्रभारी मंगल सिंह तोमरे ने भी दावा किया कि मृतक के परिजन शव को घर ले जाने और उसका अंतिम संस्कार करने में असमर्थ थे.

मंगल सिंह कहते हैं, "मैंने इन्हें इनकी भाषा में समझाया कि अगर आप लोग शव को अपने घर ले जाने में असमर्थ हैं तो इसे मेडिकल कॉलेज को दान दे सकते हैं. जिसके बाद वे खुशी-खुशी और स्वेच्छा से इसके लिये तैयार हो गये."

मेडिकल कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डॉ. मोहम्मद अशरफ ने इस बात पर खुशी जताई कि बस्तर में पहली बार मेडिकल कॉलेज़ को कोई शव दान में मिला है.

उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "यहां के समाज के द्वारा ये बहुत बड़ा और उत्कृष्ट योगदान है. बस्तर के आदिवासी समाज से पहली बार कोई देहदान किया गया है. मिस्टर बामन और उनके परिवार को हम सह्रदय धन्यवाद देते हैं."

मेडिकल कॉलेज मृतक के परिजनों को सम्मानित करने की भी योजना बना रहा है.

छत्तीसढ़, बस्तर, स्वास्थ्य व्यवस्था
CG KHABAR/BBC
छत्तीसढ़, बस्तर, स्वास्थ्य व्यवस्था

विपक्ष ने किया विरोध

विपक्षी दल कांग्रेस इसके लिये सरकार को घेरने की तैयारी कर रही है. कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता शैलेष नितिन त्रिवेदी का कहना है कि अगर कोई अपनी इच्छा से शवदान करता है तो यह स्वागत योग्य है लेकिन बस्तर के मामले में ऐसा नहीं है.

त्रिवेदी ने कहा, "मुख्यमंत्री 92 हजार से अधिक प्रति व्यक्ति आय का दावा करते हैं. स्वास्थ्य के लिये चार हजार करोड़ के बजट की भी बात की जाती है लेकिन अगर अंतिम संस्कार के लिये भी पैसे नहीं होने की मजबूरी में किसी को अपने बेटे का शव दान करना पड़ता हो तो इससे अमानवीय कुछ नहीं हो सकता है."

हालांकि भाजपा के प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव का कहना है कि मामले में कहीं संवादहीनता की स्थिति हो सकती है. उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा, "अगर वास्तव में ऐसा हुआ है तो यह गंभीर और संवेदनशील मामला है. इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिये."

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English summary
Poverty is such that the mother had to give birth to son
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