गरीबी सूचकांक: बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश सबसे गरीब राज्य, इन प्रदेशों में सबसे कम गरीबी
नई दिल्ली, 26 नवंबर: नीति आयोग के मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (एमपीआई) के मुताबिक बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और मेघालय देश के सबसे गरीब राज्य हैं। बिहार की तो आधा से ज्यादा आबादी को बहुयामी गरीब बताया गया है। यह इंडेक्स नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य के आधार पर तय किए हैं, जिसमें परिवार की स्थिति का हर तरह से आकलन करने की कोशिश की गई है। सबसे बड़ी विडंबना ये है कि जहां देश के कई बड़े राज्यों के लोग जहां बहुत ही ज्यादा गरीब हैं, वहीं कुछ राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ही कम है।
बिहार की 51.9% जनसंख्या गरीब
नीति आयोग की ओर से हाल ही में जारी मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स के मुताबिक बिहार की 51.9% जनसंख्या गरीब है। इसके बाद खनीजों के मामले में देश का सबसे अमीर राज्य झारखंड का नंबर है, जिसकी 42.16% आबादी गरीब है। इसी तरह यूपी की 37.79%, मध्य प्रदेश की 36.65% और मेघालय और असम में से प्रत्येक की 32.67% जनसंख्या गरीब है। नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुयामी गरीबी सूचकांक नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के आधार पर तैयार की गई है, जिसके मुताबिक नीतियां तैयार करने में मदद मिलेगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि 'कोई भी पीछे ना छूट जाए।'
भारत के ये राज्य सबसे कम गरीब
इस बहुयामी गरीबी सूचकांक के मुताबिक भारत में गरीबी की श्रेणी में केरल, गोवा, सिक्किम, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्य निचले पायदान पर हैं। केरल में सिर्फ 0.71% लोग गरीब हैं। इसके बाद गोवा में 3.76%, सिक्किम में 3.82%, तमिलनाडु में 4.89% और पंजाब में 5.59% लोग ही गरीब हैं। इसी तरह कम आबादी वाले केंद्र शासित प्रदेशों का भी प्रदर्शन अच्छा रहा है। जैसे पुडुचेरी में 1.72%, लक्षद्वीप में 1.82%, अंडमान और निकोबार द्वीप में 4.30% और चंडीगढ़ में 5.97% लोग गरीब बताए गए हैं। सतत विकास लक्ष्य के तहत भारत सभी उम्र के पुरुष, महिला और बच्चों में से कम से कम आधे की गरीबी घटाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है।
किस आधार पर तय हुई गरीबी ?
रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय इंडेक्स को तैयार करते समय ग्लोबल एमपीआई के 10 इंडीकेटरों को भी शामिल किया गया है, ताकि वैश्विक कार्यप्रणाली और रैंकिंग के साथ तालमेल रखा जा सके। रिपोर्ट के अनुसार यह सूचकांक परिवारों की ओर से सामना किए जाने वाले अभावों को शामिल करता है। भारतीय एमपीआई के तीन समान आयाम-स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर है। इसकी पहचान 12 संकेतकों से की गई है- पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, प्रसवपूर्व देखभाल, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते।
इस सूचकांक से क्या होगा ?
नीति आयोग के मुताबिक राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (नेशनल एमपीआई) गरीबी के विभिन्न पहलुओं का बेहतर अंदाजा देता है और समय के साथ इसमें बदलाव का पता चलता है। इससे देश में गरीबी की एक पूरी तस्वीर मिल जाती है और यह भी पता चलता है कि किस राज्य और किस जिले या किस क्षेत्र में जैसे कि स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा या जीवन स्तर पर काम करना है। 2015 में 193 देशों ने सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के ढांचे को अपनाया था, जिसके तहत दुनिया भर में विकास की नीतियों, सरकारी प्राथमिकताओं और विकास की प्रक्रिया मापने के मैट्रिक्स को फिर से परिभाषित किया गया है। इसके तहत 17 वैश्विक लक्ष्य और 169 टारगेट रखे गए हैं। हालांकि, अभी जो एमपीआई जारी किया गया है, वह पांच साल पीछे के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आधार पर है और इन 5-6 वर्षों में इन क्षेत्रों में हुई प्रगति को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता।