भारतीय जेल से निकलने के लिए हाथ पैर मार रहा है डॉन अबू सलेम, वकील से की ढाई घंटे तक बातचीत
नई दिल्ली। मुंबई बम धमाकों में उम्रकैद की सजा काट रहा अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम अब भारत की जेलों से बाहर निकलने के लिए हाथ-पैर मार रहा है। मंगलवार को सलेम से मिलने उसकी वकील सबा कुरेशी नवी मुंबई स्थित तलोजा जेल आई थीं। शबा के साथ भारत में पुर्तगाली मिशन की उप प्रमुख सोफिया बटाला और अन्य पुर्तगाली राजनयिक भी थे। अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक अबू सलेम ने पुर्तगाली अधिकारियों से जेल में मिलने वाली सुविधाओं के बारे में शिकायत की है। खबर के मुताबिक उसने कहा है कि उसे अंधेरी कोठरी में अकेले रखा जाता है। इतना ही नहीं उससे कोई बात करने तक नहीं आता और खराब क्वालिटी का खाना दिया जाता है। विस्तार से जानिए सबकुछ
ढाई घंटे तक हुई अबू सलेम और उसके वकील के बीच बातचीत
जानकारी के मुताबिक सलेम ने अपनी वकील से करीब ढाई घंटे बातचीत की। अब ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि वह भारत से पुर्तगाल जाने के लिए जरूरी कानूनी प्रक्रिया की जानकारी ले रहा था। बता दें कि भारत ने पुर्तगाल से संधि के आधार पर ही 11 नवंबर, 2005 को अबू सलेम का प्रत्यर्पण हासिल किया है। सूत्रों के अनुसार, 31 मई को अबू सलेम की ओर से उसकी पुर्तगाली वकील फरेरा ने पुर्तगाल में लिस्बन कोर्ट में याचिका दायर की थी कि सलेम को भारतीय जेल में जान का खतरा है।
पुर्तगाली टीम अलग-अलग मामलों में आए फैसलों की जांच करेगी
पुतर्गाल टीम इस दौरान अबू सलेम से मुलाकात करेगी. इस दौरान टीम अबू सलेम पर चल रहे अलग-अलग मामलों में आए फैसलों के बारे में भी जांच करेगी। इसके लिए टीम महाराष्ट्र, लखनऊ, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में जाएगी और अबू सलेम से जुड़ी अन्य जानकारी भी हासिल करेगी।
इन मामलों में अबू सलेम को हो चुकी है सजा
- 1993: मुंबई सिलसिलेबार बम धमाका मामले में विशेष टाडा अदालत ने उम्र कैद की सजा और 2 लाख रुपये का जुर्माना।
- 1995: बिल्डर प्रदीप जैन हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा।
- 2002: दक्षिण दिल्ली के ग्रेटर कैलाश निवासी कारोबारी अशोक गुप्ता से 5 करोड़ रुपये की रंगदारी मांगने के मामले में सलेम को 7 साल की कठोर कारावास।
भारत नहीं दे सकता अबू सलेम को सजा ए मौत
सलेम के मामले में भारत और पुर्तगाल के बीच हुए समझौते और प्रत्यर्पण संधि की अहम भूमिका रही है। इसकी कहानी आज से करीब 13 साल पहले शुरू हुई थी। भारत ने तीन साल जारी रही कानूनी लड़ाई के बाद अबू सलेम और मोनिका बेदी को लिस्बन से भारत लाने में कामयाबी हासिल की थी। लिस्बन पुलिस ने सितंबर 2002 में फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों पर सफ़र करने की वजह से सलेम और मोनिका बेदी को गिरफ़्तार कर लिया था। लेकिन भारत और पुर्तगाल के बीच उस वक़्त कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं थी, इस वजह से भारत को सलेम को लाने के लिए नवंबर 2005 तक का इंतज़ार करना पड़ा। सलेम और मोनिका को भेजने के वक़्त पुर्तगाल ने ये शर्त रखी कि जिस व्यक्ति को वहां से भारत भेजा जाएगा, उसे सज़ा-ए-मौत या फिर 25 साल से ज़्यादा कैद की सज़ा नहीं सुनाई जा सकती। साल 2007 में भारत और पुर्तगाल के बीच आख़िरकार प्रत्यर्पण संधि हुई। भारत की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पुर्तगाल के राष्ट्रपति अनिबल कवाचो सिल्वा ने इस पर दस्तख़त किए। भारत ने पुर्तगाल की ये शर्त स्वीकार की कि दोषी को सज़ा-ए-मौत या 25 साल से ज़्यादा क़ैद की सज़ा नहीं दी जा सकती, इसके बाद ही दोनों मुल्क़ों के बीच ये संधि हुई थी।