दक्षिण भारत की वो 129 सीटें, जो 2019 में तय करेंगी दिल्ली की कुर्सी
नई दिल्ली। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने एक बयान में कहा था कि देश में कांग्रेस एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर तंज कसते हुए कहा था कि भाजपा पूर्वी भारत के अलावा कही नहीं है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वोत्तर के राज्य असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा में सरकार बनाई, साथ ही कर्नाटक में मुख्य विपक्षी दल तो आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु में अपनी उपस्थिति को दर्ज कराया है। ऐसे में हिंदी भाषी राज्यों के अलावा भाजपा ने पश्चिम भारत, पूर्वी भारत, पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण भारत में भी अपनी मजबूत स्थिति को दर्ज कराकर खुद को एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर स्थापित किया है।
दक्षिण भारत का सियासी चक्रव्यूह
जिस तरह से हाल ही में पांच राज्यों के चुनाव संपन्न हुए उसमे से तीन अहम हिंदी भाषी रज्यों को में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा और एक बार फिर से कांग्रेस ने यहां जबरदस्त वापसी की है। लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में हिंदी भाषी राज्यों के अलावा इस बार दक्षिण भारत की राजनीति काफी अहम भूमिका निभाने वाली है। दक्षिण भारत की राजनीति में पिछले कुछ समय में काफी बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। तमिलनाडु में में जिस तरह से मुख्य क्षेत्रीय दल डीएमके और एआईएडीएमके के दिग्गज नेता एम करुणानिधि और जयललिता का निधन हुआ उसके बाद यहां एक मजबूत नेता की जगह को भरने की लगातार कवायद चल रही है।
दक्षिण भारत के पांच राज्यों में लोकसभा की स्थिति
कर्नाटक
कुल
लोकसभा
सीटें-
28
भाजपा-
17
कांग्रेस-
9
जेडीएस-
2
आंध्र
प्रदेश
कुल
लोकसभा
सीटें-
42
टीडीपी-
16
कांग्रेस-
2
वाईएसआर-
9
टीआरएस-
11
भाजपा-
3
एआईएमआईएम
1
तमिलनाडु
कुल
लोकसभा
सीटें-
39
एआईएडीएमके-37
एनडीए-
(पीएमके
1
भाजपा
1
)
केरल
में
कुल
लोकसभा
सीटें-
20
कांग्रेस
यूडीएफ
12
सीपीआई
एलडीएफ
8
रजनीकांत-कमल हसन की चुनौती
दक्षिण भारत के सभी पांच राज्य आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल की बात करें तो यहां कुल 129 लोकसभा सीटें हैं, ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत दिल्ली में सरकार गठन में काफी अहम भूमिका निभा सकता है। दक्षिण भारत में एक चरफ जहां सिनेमा जगत के दो बड़े दिग्गज रजनीकांत, कमल हासन ने राजनीति में आने का ऐलान किया है। हालांकि दोनों ही नेताओं पर आने वाले समय में नजर रहेगी कि क्या वह भाजपा या कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ते हैं या फिर अलग-अलग अपनी चुनौती पेश करते हैं। दूसरी तरफ यहां के क्षेत्रीय नेता दिल्ली की कुर्सी तक पहुंचने की लगातार कोशिश में जुटे हैं। एक तरफ जहां स्टालिन अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ एआएडीएमके के भीतर नेताओं के बीच की तनातनी सियासी माहौल को किसी भी वक्त बदल सकती हैं।
केसीआर की चुनौती
आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद तेलंगाना में केसीआर ने लगातार दूसरी बार जबरदस्त जीत दर्ज करते हुए दिल्ली की राजनीति में अपनी अहम मौजूदगी दर्ज कराई है। जिस तरह से उन्होंने समय से पहले विधानसभा को भंग कर के फिर से हुए विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुत से भी अधिक सीटें हासिल की है उसके बाद उनके हौसले बुलंद हैं। उन्होंने इस बात के साफ संकेत दे दिए हैं प्रदेश की राजनीति में सफलता के बाद वह दिल्ली की राजनीति में ध्यान देंगे। सूत्रों की मानें तो उन्होंने एक निजी विमान भी किराए पर लिया है और तमाम राज्यों के नेताओं से मुलाकात करने की तैयारी कर रहे हैं। माना जा रहा है कि वह कांग्रेस की अगुवाई वाली महागठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगे।
कर्नाटक का मुश्किल चक्रव्यूह
वहीं कर्नाटक की बात करें तो यहां विधानसभा की कुल 225 सीटें हैं और भारतीय जनता पार्टी यहां सबसे बड़ा दल है। उसके खाते में 104 सीटें है, लेकिन कांग्रेस ने अपनी 80 सीटों के साथ जेडीएस के साथ गठबंधन किया है जिसके पास महज 37 सीटें हैं। प्रदेश में कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन की सरकार है। लेकिन जिस तरह से भाजपा यहां की सबसे बड़ी पार्टी है माना जा रहा है कि लोकसभा के चुनाव में मुकाबला काफी दिलचस्प होगा। यह देखने वाली भी बात होगी कि आगामी आम चुनाव में कांग्रेस और जेडीएस के बीच सीटों का बंटवारा किस आधार पर होता है। आपको बता दें किा कर्नाटक में कुल 28 लोकसभा सीटें हैं, जिसमे से 17 सीटें भाजपा, 9 कांग्रेस और 2 जेडीएस के पास हैं।
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