राहुल गांधी: कैम्ब्रिज से अमेठी तक राजनीतिक सफर
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नई दिल्ली। चुनाव आयोग की तारीखों के ऐलान के बाद गुजरात में चुनावी सरगर्मियां बढ़ चुकी हैं। चुनावों के चलते खुद प्रधानमंत्री अक्टूबर में कई बार गुजरात जा चुके हैं। वहीं विपक्षी पार्टी भी गुजरात चुनावों में किसी भी तरह की ढ़ील नहीं देना चाह रही है। इसलिए कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी पिछले महीने से लगातार गुजरात दौरे पर हैं। राहुल गांधी लगातार भाजपा पर हमला बोल रहे हैं। राहुल गांधी के आक्रमक तेवरों के चलते भाजपा के खेमें में हलचल मची हुई है। आम तौर पर शांत दिखने वाले राहुल गांधी इन दिनों खासे आक्रमक नजर आ रहे हैं। वह किसी भी मुद्दे पर भाजपा सरकार को छोड़ना नहीं चाह रहे हैं।
पिछले 22 सालों से गुजरात में बीजेपी का राज चल रहा है और ऐसा पहली बार है कि नरेंद्र मोदी इस राज्य और इसकी राजनीति में पूरी तरह शामिल नहीं हैं। जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को हो सकता है। कांग्रेस इस चुनाव में किसी भी तरह की चूक नहीं करना चाहती है। इसके लिए राहुल गांधी नेतत्व हर संभव कोशिशें कर रहा है। यह चुनाव कहीं ना कहीं 2019 के लोकसभा चुनावों पर अपना असर छोड़ेगा औऱ राहुल गांधी के राजनीति का भी भविष्य तय करेगा। आइए जानते है राहुल गांधी के अब तक राजनीतिक सफर के बारे में...
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का प्रोफाइल राहुल की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के सेंट कोलम्बा स्कूल में हुई। उसके बाद उन्होंने दून विद्यालय से पढ़ाई की। सन 1981-83 तक सुरक्षा कारणों के चलते राहुल को अपनी पढ़ाई घर से ही करनी पड़ी। राहुल ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के रोलिंस कॉलेज फ्लोरिडा से सन 1994 में अपनी कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की। सन 1995 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज से एम.फिल. की डिग्री हासिल की।
राजनीतिक करियर
2003 से वह सार्वजनिक समारोहों और कांग्रेस की बैठकों, रैलियों में अपनी माँ सोनिया के साथ दिखाई देने लगे। जनवरी 2004 में एक सभा के दौरान मीडिया के एक सवाल पर राहुल ने कहा "मैं राजनीति के विरुद्ध नहीं हूँ। मैंने यह तय नहीं किया है की मैं राजनीति में कब प्रवेश करूँगा और वास्तव में, करूँगा भी कि नहीं।" मार्च 2004 में उन्होंने राजनीति में आने का ऐलान किया और चुनाव लड़ने का ऐलान किया। 2007 में राहुल पार्टी के महासचिव बने। 2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए एक उच्च स्तरीय कांग्रेस अभियान में उन्होंने प्रमुख भूमिका अदा की। हालाँकि कांग्रेस ने 8.53% मतदान के साथ केवल 22 सीटें ही जीतीं। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को बहुमत मिला, जो पिछड़ी जाति के भारतीयों का प्रतिनिधित्व करती है।
लोकसभा चुनाव और राहुल
लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की भूमिका इसलिये अहम मानी जा रही है, क्योंकि कांग्रेस को हर तरफ से आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। नरेंद्र मोदी का फैक्टर भले ही भाजपा को मजबूत कर रहा है, लेकिन ऐसे में हमें 2009 के परिणामों को भूल नहीं सकते, जब भाजपा की लहर होते हुए भी कांग्रेस बाजी मार ले गई थी। राहुल गांधी की युवा शक्ति कब करिश्मा दिखा दे यह कोई नहीं जानता है। देश का मुस्लिम और दलित वोट कहीं न कहीं कांग्रेस के पक्ष में आता दिख रहा है।
2009 के लोकसभा चुनावों में, उन्होंने उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 3,33,000 वोटों के अन्तर से पराजित करके अपना अमेठी निर्वाचक क्षेत्र बनाए रखा। इन चुनावों में कांग्रेस ने कुल 80 लोकसभा सीटों में से 21 जीतकर उत्तर प्रदेश में खुद को पुनर्जीवित किया और इस बदलाव का श्रेय भी राहुल गांधी को ही दिया गया है।
फर्जी नाम रखा
राहुल ने मैनेजमेंट कोर्स करने के बाद नकली नाम "रॉल विंसी" रखा। इसी नाम से उन्होंने गुरु माइकल पोर्टर की प्रबंधन परामर्श कंपनी मॉनीटर ग्रुप में 3 साल काम किया। खास बात यह है कि जब वो उस कंपनी में कार्यरत थे, तब वहां के लोग नहीं जानते थे कि वो देश के पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे हैं।
आईटी कंपनी के निदेशक बने
राहुल सन 2002 के अंत में राहुल गांधी मुंबई में स्थित एक अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी से संबंधित आउटसोर्सिंग कंपनी बैकअप्स सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मंडल में शामिल हो गये।
राहुल का पहला चुनाव
राहुल गांधी ने अपना पहला चुनाव 1,00,000 के बड़े मार्जिन के साथ जीता।
राहुल की ताकत
जब मायावती ने रोका राहुल को मायावती ने जब राहुल गांधी को चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करने के लिए सभागार का उपयोग करने से रोका दिया तब उनकी शक्ति का पता चला। राज्यपाल श्री टी.वी.राजेश्वर ने विश्वविद्यालय के कुलपति वी.के.सूरी को सेवा से बाहर कर दिया।