दिल्ली की हवा में जहर है, तो 5 साल में केजरीवाल ने क्यों कुछ नहीं किया?
बेंगलुरू। वर्ष 2015 में एक दो नहीं, बल्कि 70 वादों के पुलिंदों के साथ दिल्ली प्रदेश के शीर्ष पर पहुंचे पूर्व एक्टिविस्ट और अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आजकल दिल्ली की प्रदूषित हवा से बचाने के लिए बच्चों को मॉस्क बांट रहे हैं। यह मॉस्क निशानी है एक बेकार प्रशासक की, जो पिछले पांच वर्ष के लंबे शासनकाल में दिल्ली की हवा को शुद्ध करने के लिए कोई माकूल योजना नहीं तैयार कर सका। दिल्ली को पेरिस बनाने के सपने दिखाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री भी उन सपने बेचने वाले नेताओं में शुमार हो गए हैं, जो वादों और इरादों के बीच की नैतिकता को भुला चुके है।
एक्टिविस्ट से राजनेता बनने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सत्ता में काबिज होने के बाद जनता से वादा किया था कि वो एक नई तरह की राजनीति लेकर आए हैं, लेकिन उनकी नई तरह की राजनीति को दिल्ली करीब चार साल दीमक लगा रहा, क्योंकि केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी राज्य विस्तार मोड पर आ गई थी, उन्होंने सिकंदर की भांति पूरे भारत में अश्वमेध का घोड़ा छोड़ रखा था, यह अलग बात है कि वह घोड़ा पकड़ में नहीं आया।
वर्ष 2015 में 70 में से 67 सीट जीतकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल पूरे चार साल दिल्ली की जनता से किया गया वादा ही नहीं भूल गए थे, बल्कि वो राजनीतिक में शुचिता लाने का किया गया वह वादा भी भूल गए, जिसकी उम्मीद में दिल्ली की जनता ने शीर्ष पर बिठा दिया था और अब जब दिल्ली की हवा दूषित हो गई है तो पंजाब और हरियाणा सरकार को दोषी ठहरा कर पारंपरिक राजनीति करने लगे हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य विस्तार की रथ पर सवार हुए अरविंद केजरीवाल महज तीन कदम में पूरे ब्रह्मांड को नापने की दिशा में आगे बढ़ चले थे, लेकिन जब कदम ठिठके और लुढ़के तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी के दिल्ली में 4 साल खत्म हो चुके थे। इस दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने देश का कोई भी ऐसा कोना नहीं छोड़ा जहां पार्टी का कार्यालय खोलकर अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की टीम ने ना तैयार कर ली हो।
पड़ोसी राज्य हरियाणा, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा और बिहार ही नहीं, अंडमान में आम आदमी पार्टी का कार्यालय खोल चुके केजरीवाल को तब तक दिल्ली की याद नहीं आई और जब उन्हें लगा कि अब और देर किया तो दिल्ली की सत्ता भी हाथ से छूट जाएगी, तो दिल्ली की जनता को मुफ्त की रेवड़िया बांटने लगे, जिससे एक बार उन्होंने सत्ता का स्वाद चख लिया था।
उल्लेखनीय है दिल्ली और एनसीआर हर साल दिवाली त्योहार के आसपास घने और काले कुहरे में लिपटी धुंध से लिपट जाती है, लेकिन प्रदूषण के गहरे परतों वाली हवाओं में जीने को मजूबर दिल्लीवासियों की समस्या से वाकिफ मुख्यमंत्री केजरीवाल ने पिछले पांच वर्षो के अपने कार्यकाल में ऐसी कोई पहल नहीं की है, जो दिल्ली के वायु प्रदूषण से निपटने की दिशा में किया गया हो।
हाल ही में दिल्ली के बच्चों को दिल्ली के खतरनाक प्रदूषण से सुरक्षित करने किए अपने हाथों से मॉस्क पहनाने के बाद केजरीवाल एक राजनीतिक पार्टी के नेता की तरह चुटकी लेते हुए कहते हैं कि हरियाणा और पंजाब सरकार को पराली जलाने से हो रही प्रदूषण को रोकने के लिए आधुनिक मशीनों का उपयोग करना चाहिए। परोक्ष रूप से केजरीवाल पंजाब और हरियाणा सरकार को दिल्ली के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन खुद क्या किया उन्होंने यह नहीं बताया।
दिल्ली के प्रदूषण के लिए परोक्ष रूप से हरियाणा और पंजाब सरकार को कोसने वाले केजरीवाल भूल गए कि उन्होंने पिछले पांच वर्षों में दिल्ली की हवा को प्रदूषण से सुरक्षित रखने के लिए क्या योजना बनाई और कितने एओयू पर पंजाब और हरियाणा सरकारों से हस्ताक्षर करवाए ताकि पराली जलाने की परंपरा को आधुनिक मशीनों के उपयोग से खत्म किया जा सके। दरअसल,केजरीवाल के पास दिल्ली की जनता को खतरनाक वायु प्रदूषण से बचाने के लिए कोई योजना ही है। ऐसा लगता है कि यह उनके एजेंडे में ही नहीं था।
गौरतलब है पिछले पांच वर्षों में 4 वर्ष पार्टी विस्तार में लगे दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने दिल्ली और दिल्ली की जनता चिंता डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के हाथ में सौंप रखी थी। चार वर्ष तक पार्टी विस्तार करने अंडमान निकोबार द्वीप समूह तक पहुंच चुके केजरीवाल को यह एहसास में होने में 4 वर्ष लग गए थे कि उनकी पार्टी के लिए दिल्ली की सत्ता अभी भी बहुत दूर है।
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनने चले केजरीवाल ने दिल्ली सीएम का पद छोड़कर वाराणसी निकल गए थे। वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़कर कुंद हुए केजरीवाल दिल्ली वापस लौट आए। दिल्ली की जनता ने उन्हें माफ ही नहीं किया बल्कि 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा की 67 सीटों पर जितवाकर उन्हें अपने सिर पर भी बिठा लिया।
दिल्ली का ताज मिलते ही फिर आम आदमी पार्टी के विस्तार के काम में जुट गए केजरीवाल गोवा, बिहार, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में हाथ आजमाया। पंजाब में आंशिक सफलता को छोड़कर पार्टी को कहीं भी सफलता मिली। अधिकांश राज्यों में तो पार्टी के 95 फीसदी उम्मीदवारों के जमानत तक जब्त हो गए।
वर्ष 2019 लोकसभा में आम आदमी पार्टी ने 100 से अधकि उम्मीदवार पूरे देश में उतारे थे, लेकिन पंजाब के संगूरर लोकसभा सीट को छोड़कर कहीं भी पार्टी को जनता ने वोट नहीं दिया। कई जगह तो केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से अधिक वोट नोटा को मिला।
2019 लोकसभा चुनाव में चारों तरफ से लुटे-पिटे केजरीवाल को दिल्ली की फिर याद आई। करीब 2 माह तक दिल्ली में कोप भवन में बैठे विपस्ना कर रहे केजरीवाल को अंततः एहसास हो गया था कि अब नहीं चेते तो सब बर्बाद हो जाएगा। अब नहीं जागे तो आम आदमी पार्टी का वजूद मिट जाएगा।
फिर क्या था, दिल्ली पर पूरी तरह से केंद्रित ने सीएम केजरीवाल दिल्ली की जनता से किए उन 70 वादों के पुलिंदों वाली फाइल मंगवाई, खुलवाई और जुलाई से अक्टूबर माह के बीच 70 में 70 वादों को एक साथ पूरे करने में जुटे केजरीवाल यह साबित करने में जुट गए है कि दिल्ली अब पेरिस बनने से चंद कदम दूर बाकी रह गई है, जो अगला कार्यकाल मिलते हुए पूरी हो जाएगी।
वर्तमान में दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी घोषित हैं। देश के भविष्य यानी बच्चों को मॉस्क पहनाने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 5 नवंबर तक स्कूलों को बंद रखने का आदेश दे दिया है। सोल्यूशन के नाम पर उनके पास अभी पुरानी ऑड-इवेन फार्मूला है, जो पिछली बार ही बुरी तरह से फेल हो चुकी थी।
5 नवंबर से शुरू हो रहे ऑड-इवेन नियम ट्रैफिक समस्याओं से थोड़ी निजात लोगों को जरूर दिला सकती है, लेकिन वायु प्रदूषण के लिए माकूल हल के लिए सरकार ने क्या इंतजाम किए हैं, इसकी कोई सूचना नहीं है, क्योंकि निर्माणाधीन इमारतों के कामों में क्षणिक रोक से दिल्ली की प्रदूषित हो चुकी हवा शुद्ध होने से रही।
जरूरत है कि बीमारी के जड़ को काटकर फेंकने की, लेकिन दिल्ली की केजरीवाल सरकार के पास अभी तक कोई ऐसी योजना नहीं है, जिससे वह ऐसा कुछ करती दिख रही है। ऑड-इवेन नियम ठीक वैसा ही है पानी प्यास लगी है तो कुुएं खुदवाने का आदेश देना। एक महीने तक लागू होने वाले ऑड-इवेन ट्रैफिक नियम से कितना दिल्ली का भला होगा, यह सबको पता है।
अभी फिलहाल, केजरीवाल सरकार का एजेंडा है कि किसी तरह से दिल्ली की सत्ता पर वापिस कब्जा पाया जाए और पूरी दिल्ली सरकार अभी उसी मिशन पर चल रही है। मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त मेट्रो, मुफ्त बस यात्रा की योजनाओं से दिल्ली लहालोट है, और अगर केजरीवाल के पक्ष में हवा लहरा गई तो दिल्ली की शुद्ध हवा की राजनीति आगे भी होती रहेगी?
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