प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार, जनता के भरोसे को तोड़ नहीं सकता
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के एक साल पूरे होने के मौके पर सरकार की उपलब्धियों को गिनाया। मोदी ने पीटीआई को दिये साक्षात्कार में सरकार के एक साल का पूरा लेखा-जोखा दिया है। पीएम ने अपने साक्षात्कार को ट्विटर पर भी साझा किया है।
आपकी
सरकार
का
एक
साल
पूरा
हो
गया,
संक्षेप
में
अपना
अनुभव
बतायें।
जब
मैंने
अपना
कार्यभार
संभाला
था
प्रशासनिक
अधिकारी
फैसले
लेने
में
काफी
डरते
थे।
वहीं
कैबिनेट
व्यवस्था
भी
बेहाल
हो
चुकी
थी,
अतिरिक्त
संवैधानिक
संस्थायें
सरकार
के
बाहर
होने
के
बाद
भी
सरकार
पर
हावी
थी।
राज्य और केंद्र के बीच तनातनी का माहौल था, विदेशियों सहित देश के लोगों का भी देश की सरकार से भरोसा उठ गया था। ऐसे में इस माहौल को बदलना मेरे लिए बड़ी चुनौती थी और लोगों में एक बार फिर से भरोसा और आशा लाने का मैंने पूरा प्रयास किया है।
आप जब पीएम बने थे तो आपने कहा था कि मैं दिल्ली में नया हूं और इसे समझने की कोशिश कर रहा हूं, क्या आप दिल्ली को समझ गये हैं।
जब मैंने दिल्ली कहा था तो मेरा तात्पर्य था केंद्र सरकार, मेरा मानना है कि दिल्ली उसी तरह से काम करती है जैसे यहां के नेता चाहते हैं। मेरी सरकार ने दिल्ली में काम का माहौल बनाया है और सरकार कहीं ज्यादा सक्रिय और प्रोफेशनल है अब।
जब मैंने कार्यभार संभाला था तो सत्ता के गलियारे लॉबिंग की गिरफ्त में थे और ऐसे में मेरा मकसद इस गलियारे को साफ करना था। यह प्रक्रिया थोड़ा समय जरूर लेगी लेकिन इसका फायदा लोगों को लंबे समय तक होगा।
और
आप
समझे
क्या।
मुझे यह अभी भी नहीं समझ आया कि जो पार्टियां पहले राज्यों में भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन की पक्षधर थी वो दिल्ली में बैठने के बाद अचानक इसके विरोधी कैसे हो गयी।
पिछले एक साल के बाद क्या आपको ऐसा लगता है कि आपने जो किया उससे बेहतर या अलग कर सकते थे।
मेरे पास दो विकल्प हैं, एक तो यह कि क्रमबद्ध तरीके से मैं सरकारी तंत्र को सही करता जिससे कि देश के लोगों को लंबे समय तक इसका लाभ हो। जबकि दूसरा विकल्प यह था कि मैं सरकार को मिले प्रचंड बहुमत के बाद लोकलुभावनी योजनायें शुरु कर जनता को बेवकूफ बना मीडिया की सुर्खियों में बना रहता।
दूसरा विकल्प काफी आसान था और जनता इसकी आदि हो चुकी थी लेकिन मैंने पहले विकल्प को चुना और सरकारी तंत्र को दुरुस्त और मजबूत करने का काम शुरु किया। लेकिन अगर मैंने लोकलुभावन वाला रास्ता चुना होता तो मैंने निसंदेह जनता का भरोसा तोड़ा होता।