वीर सावरकर की फोटो के सामने आंख बंदकर बैठे पीएम मोदी, देखें सेलुलर जेल के दौरे की तस्वीरें
नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी रविवार को पहली बार अंडमान-निकोबार पहुंचे थे, जहां उन्होंने सी-वॉल समेत कई परियोजनाओं की नींव रखी। मोदी ने रॉस आइलैंड, नील आइलैंड और हैवलॉक आइलैंड के नाम बदलने का ऐलान किया। इन्हें क्रमश: नेताजी सुभाष चंद्र बोस, शहीद और स्वराज नाम दिया गया। इसके अलावा पीएम मोदी उस जगह भी गए जिसका नाम सुनकर लोगों की रूह कांप जाया करती थी।
वीर सावरकर की फोटो के सामने आंख बंदकर बैठे पीएम मोदी
प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित की और फिर कारागार पहुंचे। पीएम मोदी उस जेल को देखने पहुंचे जिसे कालापानी के नाम से जाना जाता था। यहीं नहीं, पीएम मोदी उस कोठरी में भी गए जहां वीर सावरकर को रखा गया था। इस दौरान पीएम मोदी कोठरी में वीर सावरकर की फोटो के सामने आंख बंदकर बैठे रहे। ब्रिटिश काल में इस जेल में राजनीतिक कैदियों को रखा जाता था।
सभी कैदियों को एक-दूसरे से अलग रखा जाता था
कैदियों के साथ इस जेल में अमानवीय बर्ताव किया जाता था। पोर्ट ब्लेयर की इस सेलुलर जेल में भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को रखा जाता था और उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी जाती थीं। यहां सभी कैदियों को एक-दूसरे से अलग रखा जाता था और उनको यातनाएं दी जाती थी।
क्रांतिकारियों से कोल्हू से तेल निकलवाने का काम भी कराया जाता था
चूंकि ये इलाका भारत की मुख्यभूमि से हजारों किलोमीटर दूर था और जेल के चारों तरफ का इलाका पानी से घिरा था। इसलिए इसे 'कालापानी की सजा' भी कहा जाता था। उस वक्त इस जेल में 696 सेल बनाई गई थी। इस जेल से कोई भी कैदी चाहकर भी भाग नहीं सकता था। यहां क्रांतिकारियों से कोल्हू से तेल निकलवाने का काम भी कराया जाता था, उनपर कोड़े बरसाए जाते थे।
कालापानी का सजा, जिसके नाम से कांप जाती थी रूह
जबकि कोठरी में एक लकड़ी का बिस्तर, कंबल और मिट्टा का बर्तन रखने की ही अनुमति होती थी। यहां शौचालय इस्तेमाल करने का भी एक समय निश्चित होता था और उसी दौरान कैदी शौचालय जा सकते थे।
नेताजी ने पहली बार फहराया था तिंरगा
आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेज बहुत से नेताओं को अंडमान की इस जेल में कैद करके रखते थे। पोर्ट ब्लेयर में ही 30 दिसंबर 1943 को नेताजी ने दूसरे विश्व युद्ध में जापानियों द्वारा इन द्वीपों पर कब्जा किए जाने के बाद यहां पहली बार तिरंगा फहराया था।