अनुच्छेद 370 पर पीएम मोदी की पार्टी के नेताओं को सलाह, अभी सीना मत ठोकिए, आगे लंबी लड़ाई है
नई दिल्ली: सोमवार को जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 को हटाने और राज्य का विशेष दर्जा वापस लिए जाने वाले प्रस्ताव को सोमवार को पास करा लिया। वो इसे राज्यसभा में पास कराने में सफल रही। बीजेपी की इसे लेकर पुरानी वैचारिक प्रतिबद्धता रहा है, जिसका सम्मान करते हुए मोदी सरकार ने ये फैसला लिया। लेकिन इस फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सहयोगी मंत्रियों को सलाह देते हुए कहा कि अभी सीना ठोकने की जरूरत नहीं है। उन्होंने उन्हें याद दिलाया कि इसे लेकर अभी लंबी लड़ाई बची है।
'सीना मत ठोकिए, आगे लंबी लड़ाई है'
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार उसे सूत्रों ने बताया कि पीएम मोदी ने अपने सहयोगी मंत्रियों को ये सलाह दी। एक सूत्र ने बताया कि 5 अगस्त को गृह मंत्री अमित शाह के जम्मू और कश्मीर से विशेष दर्जा वापस लेने और राज्य के विभाजन को प्रस्ताव देते हुए पीएम मोदी ने कहा कि ये देश के लिए बड़ा दिन है। हमें इस पर सभी को साथ लेकर चलने के लिए दूरदर्शिता और राज्य कौशल का प्रदर्शन करना चाहिए। इस प्रस्ताव के पेश होने के बाद मंजूरी मिलने पर सभी ने ताली बजाई और एक दूसरे को बधाई दी।
'एतिहासिक भूल सुधार के रुप में लेना चाहिए'
बैठक में मौजूद एक अन्य सूत्र ने बताया कि बीजेपी और ज्यादातर आरएसएस की पृष्ठभूमि से आने वाले मंत्रियों के लिए ये खुशी और संतुष्टि का क्षण था। मंत्रियों का इसे व्यक्त करना स्वाभाविक था। लेकिन संदेश ये है कि इसे विजय के तौर पर चित्रित नहीं किया जाना चाहिए, इसे एक एतिहासिक भूल के सुधार के तौर पर देखना चाहिए। इस सूत्र ने बताया कि पीएम ने अपने सहयोगियों को याद दिलाया कि सत्तारुढ़ पार्टी होने के नाते बीजेपी के नेताओं को इस तरह के फैसले के नतीजों और इसके प्रभाव के बारे में पता होना चाहिए। पार्टी इसे नजरअंदाज नहीं कर सकती। पार्टी को ना केवल सभी को साथ लेकर चलना है, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों को भी स्थिति को नियंत्रित करने में मदद करनी है।
मोदी- शाह ने क्या अपनाई रणनाति
मोदी-शाह ने राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को भरोसे में लिया। गौरतलब है कि नायडू का एबीवीपी से संबंध रहा है। इसके अलावा उन्होंने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद हटाने को लेकर आयोजित कई कार्यक्रमों में भाग ले लिया है। नायडू को विश्वास में लेने के बाद सरकार ने लोकसभा के बजाय पहले राज्यसभा में कानून लाने का फैसला किया। यहां बहुमत से पास हो गया। पार्टी के एक नेता ने बताया कि पहले लोकसभा में पेश करने पर ये आसानी से पास हो जाता लेकिन विपक्ष को रणनीति बनाने का मौका मिल जाता। इसके बारे में एक अन्य सूत्र ने बताया कि 3-4 अगस्त को पार्टी के सांसदों का दो दिवसीय प्रशिक्षण सत्र राष्ट्रीय राजधानी में इसलिए आयोजित कराया गया था ताकि 5 और 6 अगस्त को वो दिल्ली में रह सकें।
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