पाकिस्तान के भड़काऊ बयानों के बावजूद, 27 सितंबर तक मोदी की चुप्पी के पीछे का क्या है राज?
नई दिल्ली- 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत सरकार की ओर से उठाए गए कदम से सबसे ज्यादा परेशान पाकिस्तान और वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान हैं। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी तक इमरान खान को उन्हीं की भाषा में जवाब देने से परहेज किया है। अब खबरें आ रही हैं कि प्रधानमंत्री मोदी कम से कम 27 सितंबर तक पाकिस्तान के साथ कश्मीर मुद्दे पर किसी जुबानी टकराव से परहेज ही करने की कोशिश करेंगे। 27 सितंबर इसलिए क्योंकि उस दिन प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित कर सकते हैं। ये भी तय है कि जब पाकिस्तानी पीएम इमरान खान को महासभा में बोलने का मौका मिलेगा तो वे वहां कश्मीर का राग अलापे बिना चुप नहीं बैठेंगे।
कश्मीर पर अभी टकराव नहीं चाहते पीएम
इंडियन एक्प्रेस ने सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट दी है कि जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान जिस तरह से बवाल काट रहा है इसको देखते हुए पीएम मोदी ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहते जिससे 27 सितंबर से पहले दुनिया को कुछ कहने का मौका मिल जाए। सरकार ये भी चाहती है कि ऐसी कोई स्थिति न पैदा हो, जिससे पाकिस्तान को कश्मीर की जमीनी हालात को बिगाड़ने में कोई मदद मिले। सूत्र के मुताबिक, 'सरकार ये चाहती है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री के भाग लेने से पहले जमीनी परिस्थितियां बिना किसी बड़ी घटनाओं के सामान्य होते दिखाई दे।' सामान्य परिस्थितियों में राजनीतिक नेताओं पर से पाबंदियां कम होना भी शामिल है, लेकिन 'अभी इसके लिए बहुत कम समय हुआ है।' सरकार को लगता है अगर महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला जैसे नेता ज्यादा दिन तक नजरबंद रहते हैं तो इससे यह पक्ष कमजोर पड़ सकता है कि उसने राज्य में शासन-व्यवस्था को ठीक करने के लिए इतना बड़ा कदम उठाया है।
कश्मीर पर भारत अपना पक्ष कर रहा है साफ
खबर
के
मुताबिक
सरकार
ने
पिछले
कुछ
दिनों
में
जम्मू-कश्मीर
से
संबंधित
जो
कुछ
कदम
उठाए
हैं,
उससे
उसके
मूड
का
अंदाजा
लगाया
जा
सकता
है।
मसलन
जैसे
16
अगस्त
को
जम्मू-कश्मीर
सरकार
की
ओर
से
कुछ
पाबंदियों
में
राहत
की
घोषणा
की
गई
थी।
तब
संयुक्त
राष्ट्र
सुरक्षा
परिषद
में
बंद
दरवाजे
के
भीतर
चीन
और
पाकिस्तान
की
सलाह
पर
होने
वाली
अनौपचारिक
बैठक
से
कुछ
घंटे
पहले
ही
जम्मू-कश्मीर
के
मुख्य
सचिव
बीवीआर
सुब्रमण्यम
ने
घाटी
पाबंदियों
में
रियायत
की
घोषणा
की
थी।
उन्होंने
कहा
था
कि
संचार
व्यवस्था
धीरे-धीरे
बहाल
की
जाएगी।
खबर
के
मुताबिक
जी-7
सम्मेलन
से
पहले
पीएम
मोदी
के
यूएई
दौरे
को
भी
उसी
से
जोड़कर
देखा
जा
रहा
है,
जिसमें
वह
भारत
का
पक्ष
साफ
कर
सकते
हैं।
इससे
पहले
विदेश
मंत्री
पहले
चीन
और
फिर
ढाका
का
दौरा
करके
भारत
की
स्थिति
को
साफ
करके
आ
चुके
हैं।
सूत्र
के
अनुसार,
'इन
सभी
बैठकों
के
जरिए
संयुक्त
राष्ट्र
महासभा
की
पीएम
मोदी
की
यात्रा
से
पहले
का
आधार
तैयार
होगा,
जहां
पाकिस्तान
की
ओर
से
कश्मीर
मुद्दे
को
जोर-शोर
से
उठाने
की
संभावना
है।'
बता
दें
कि
प्रधानमंत्री
मोदी
अगले
27
सितंबर
को
संयुक्त
राष्ट्र
महासभा
को
संबोधित
कर
सकते
हैं।
जबकि,
इमरान
खान
जब
वहां
भाषण
देने
पहुंचेंगे
तो
कश्मीर
का
मुद्दा
उठाए
बिना
रहने
वाले
नहीं
हैं।
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घाटी के लोगों को विश्वास में लेने की कोशिश
सूत्रों ने ये भी बताया है कि सरकार और भारतीय जनता पार्टी सितंबर के मध्य तक कश्मीर की स्थिति बेहतर होने को लेकर आशावादी नजर आ रहे हैं। बीजेपी का मानना है कि वहां की स्थिति इतनी खराब नहीं है, जितनी की आशंका थी। हालांकि, वे ये भी मानते हैं कि अभी मोबाइल फोन बंद हैं, कई सारी पाबंदियां बरकरार हैं और इसी कारण से विरोध ने कोई विस्फोटक रूप नहीं लिया है। लेकिन, जब मोबाइल फोन चालू हो जाएंगे तो यही स्थिति बनी रहेगी कहना मुश्किल है। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि 'पार्टी ने बहुत सारी तैयारियां की हैं जिसमें घाटी के सभी छोटे-छोटे समुदायों और समूहों को विश्वास में लेना शामिल है।' इसको लेकर बीजेपी नेतृत्व और खुद प्रधानमंत्री भी घाटी के कई लोगों से मुलाकात कर चुके हैं।
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