प्रतीकों से इबारत लिख चुके हैं कई लीडर, यही तो कर रहे हैं PM मोदी!
बेंगलुरू। वर्ष 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में बीजेपी की पुनर्वापसी कराने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि वर्तमान में विश्व के बड़े नेता के रूप में शुमार है। स्वच्छ भारत अभियान जैसे अभियान को सफल बनाने और उसे घर-घर तक पहुंचाने के लिए नरेंद्र मोदी झाड़ू लेकर सड़कों पर उतरने से भी गुरेज नहीं किया। प्रधानमंत्री मोदी झाड़ू लगाने के लिए झाड़ू नहीं लगा रहे थे, वो झाड़ू लगाकर प्रतीकात्मक संदेश दे रहे थे।
स्वच्छ भारत अभियान की सफलता का कहानी देश और विदेश में यूं ही नहीं चर्चा की केंद्र नहीं बन गई थी। प्रतीकों से ही संस्कार विकसित किए जाते रहे हैं, जिसकी बानगी सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री ली कुआन यू में मिलती है जब ब्रिटिश गुलामी से वर्ष 1965 में आजाद हुए सिंगापुर को ली कुआन यू ने महज प्रतीकों के सहारे की सिर्फ तीन दशक में विश्व के विकसित देशों की कतार में खड़ा कर दिया।
अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी तमिलनाडु के महाबलीपुरम के समुद्रीय तटीय इलाकों पर प्लास्टिक बोतल उठाते हुए दिखाई दिए थे। प्रधानमंत्री मोदी मॉर्निंग वॉक पर निकले थे और मॉर्निग वॉक के दौरान समुद्र तट पर इधर-इधर पड़े प्लास्टिक बोतलों को इकट्ठा करके पीएम मोदी ने फर्स्ट यूज प्लास्टिक खिलाफ संदेश देने की कोशिश की।
यह ठीक वैसा ही था जैसा सिंगापुर के पूर्व प्रधानमंत्री ली कुआन यू ने सिंगापुर में शहरों की स्वच्छता और सफाई को आंदोलन का रूप देने के लिए खुद सड़कों पर उतरकर झाड़ू लगाने लगे थे। वर्तमान में सिंगापुर की गिनती न केवल विश्व के सबसे क्लीन सिटी के रूप में शुमार है बल्कि सिंगापुर की गिनती विकसित देशों हैं। प्रति व्यक्ति आय के मामले में सिंगापुर जर्मनी, जापान, फ्रांस और इंग्लैंड के बाद 10वें नंबर पर है।
प्रधानमंत्री मोदी महाबलीपुरम भारतीय मेहमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय वार्ता के लिए पहुंचे थे। जम्मू-कश्मीर राज्य से विशेष राज्य के दर्जे को हटाकर साहसिक निर्णय लेने के बाद पाकिस्तान के मित्र राष्ट्रों में शुमार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात भारत के लिए अहम थी। प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग से आधिकारिक मुलाकात की और चीन को भारत के स्टैंड से अवगत भी कराया।
दूसरी सुबह पीएम नरेंद्र मोदी समुद्री तटों की सफाई करते हुए नजर आए। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद ही समुद्री तटों से प्लास्टिक बोतल उठाने के वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया। इसका सीधा सा मकसद था फर्स्ट यूज प्लास्टिक के खिलाफ मुहिम छेड़ना, जो सोशल मीडिया पर खूब सराही भी गई।
ब्रिटिश हुकूमत से भारत को आजादी मिले 72 वर्ष से अधिक हो चुके हैं, लेकिन अभी तक किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री को सड़कों और समुद्र तटों पर कूड़ा हटाते और प्लास्टिक बोतले चुनते नहीं देखा गया था। आजादी के बाद भारत के प्रधानमत्री बने पंडित जवाहर लाल नेहरू के कितने किस्से मशहूर हैं, जो अपने कपड़े तक लंदन में धुलवाने के लिए मशहूर थे।
कम से कम पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और गांधी परिवार से प्रतीकों के जरिए संदेश देने की उम्मीद नहीं की जा सकती। करीब 70 वर्ष तक देश पर परोक्ष और परोक्ष शासन करने वाली गांधी फेमिली अब तक कुल चार-चार प्रधानमंत्री हुए हैं, लेकिन कोई ऐसा उदाहरण मौजूद नहीं है, जो देश को प्रतीकों के जरिए ही सही इबारत लिखने की कोशिश की हो। यही कारण था कि भारत आजादी के 70 वर्ष बाद भी विकासशील देशों की श्रेणी से बाहर नहीं निकल पाया।
प्रतीकों का बड़ा महत्व होता है। प्रतीकों का उदाहरण एक परिवार में ढूंढा जा सकता है, जहां पुत्र पिता के प्रतीकों के आधार पर संस्कार सीखता है और पिता के कुसंस्कार पुत्र की परवरिश तक को भी बिगाड़ने के लिए काफी होती है। देश का सर्वसर्वा हो या परिवार का सर्वेसर्वा, प्रतीकात्मक संदेशों के जरिए ही समाज और देश में बदलाव ला सकता है और बदलाव के लिए उसमें खुद भी शामिल होना होता है, क्योंकि भाषणबाजी सत्ता परिवर्तन में भले सहायक हो सकते हैं, लेकिन देश और समाज में बदलाव के लिए खुद को प्रतीक बनाना पड़ता है।
वर्ष 1965 तक ब्रिटिश हुकुमत का गुलाम रहे सिंगापुर को भारत से करीब 18 साल बाद मुक्ति मिली। आजादी के समय सिंगापुर की हालत भारत जैसी ही था, लेकिन सिंगापुर ने महज 30-40 सालों में तरक्की की उन ऊंचाईयों को छू लिया, जहां पहुंचने में दूसरों देशों को सदियों लग जाते हैं। भारत का उदाहरण यहां काफी है, जहां आज भी एक चौथाई आबादी गरीबी रेखा के नीचे हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मूल जरूरतों के लिए भी भारतीयों को शहर की ओर आज भी कूच करना पड़ता है। सिंगापुर में क्रांतिकारी परिवर्तन में सिंगापुर के पहले प्रधानमंत्री ली कुआन यू का हाथ था, लेकिन उससे बड़ा हाथ उनके प्रतीकों का था, जिससे प्रेरित होकर पूरा देश उनके सपनों को पूरा करने में जुट गया था और बंजर सा जैसा दिखने वाला गरीब और पिछडा टापू आधुनिक देशों को मुंह चिढ़ाने लगा।
उल्लेखनीय है वर्ष 1959 में ली कुआन यू ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान सिंगापुर के प्रधानमंत्री बने थे और वर्ष 1965 ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिलने के बाद करीब तीन दशक तक सिंगापुर के प्रधानमंत्री चुने गए। वर्ष 1990 के बाद ली कुआन यू ने राजनीतिक पारी को विराम दिया। कई लोग ली कुआन यू को तानाशाह भी पुकारते हैं, लेकिन सिंगापुर को उनके प्रधानमंत्रित्व काल के 30 सालों में मिली तरक्की ने उन्हें सिंगापुर में अमर कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी एक स्वीकार कर चुके हैं कि वो सिंगापुर के पहले राष्ट्रपति ली कुआन यू से प्रेरित हैं और उनकी कार्यशैली में उनकी झलक भी दिखाई पड़ती हैं।
स्वच्छ भारत अभियान, खुले में शौच के विरूद्ध अभियान, स्वास्थ्य बीमा योजना और अब सिंगल यूज प्लास्टिक के विरूद्ध अभियान इसकी बानगी है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश में भ्रष्टाचार के लिए विरूद्ध उठाए गए कदम नोटबंदी और जीएसटी ऐसे उदाहरण हैं, जो सिंगापुर के पूर्व प्रधानमंत्री ली कुआन यू की याद दिलाते हैं। ली कुआन यू सिंगापुर में आर्थिक सुधार और भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए ऐसे कड़े प्रयासों के लिए जाने जाते हैं। यही वजह था कि आलोचक उन्हें तानाशाह पुकारते थे। हालांकि ली कुआन यू लोकतांत्रिक तानाशाह कहा जाता है, क्योंकि वो जनता द्वारा चुने गए तानाशाह थे, जो सुधारों के लिए कड़ाई बरतते थे, कुछ ऐसे ही प्रयोगों के लिए पीएम मोदी की भी आलोचना होती रहती है।
वर्ष 2015 में दुनिया छोड़कर चले गए ली कुआन यू भारत को पसंद करते थे, लेकिन भारत में नौकरशाही के व्यवस्थागत ढांचे को नफरत की हद तक नापसंद करते थे। उनका कहना था कि भारत के नौकरशाह अपने को सुविधा देने वाला नहीं, बल्कि नियमों को लागू करवाने वाला मानते है। यहीं से संस्थागत ढांचे में बुनियादी गलती शुरू होती है। वो कहते कि उद्योगपतियों के बारे में अच्छी सोच की बजाय किसी तरह पैसा ऐंठने की सोच ज्यादातर नौकरशाहों में रहती है, जो किसी भी देश के विकास की राह में एक बहुत बड़ा रोड़ा है। माना जाता है भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार भी नौकरशाही की देन है।
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