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लद्दाख में आर्मी के बीच पहुंचकर पीएम मोदी ने चीन को दिए 5 बड़े संदेश, जानिए क्या

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नई दिल्ली- देश के जवानों और देश की जनता को सरप्राइज देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार तड़के अचानक लेह के नीमू में फॉर्वर्ड लोकेशन पर पहुंच गए। इससे पहले चर्चा थी कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल विपिन रावत के साथ शुक्रवार को लेह जाएंगे। लेकिन, उनका दौरा रद्द हो गया और उनके बदले वहां खुद प्रधानमंत्री पहुंच गए। इस दौरान पीएम मोदी ने वहां सेना, एयरफोर्स और इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस के जवानों से बात की और उनके जज्बे को सलाम किया। लेकिन, पीएम मोदी का यह लेह दौरा सामान्य नहीं है। उन्होंने इसके जरिए अपनी सेना का मनोबल तो और भी बढ़ा ही दिया है, चालबाज चीन को साफ संकेत भी दे दिया है कि वह भारत को 1962 वाला भारत समझने की गलती न कर बैठे। आइए जानते हैं कि इस दौरे से पीएम मोदी ने चीन को क्या 5 बड़े संदेश दिए हैं।

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PM Modi in Leh : Ladakh में PM Narendra Modi ने China को दिए ये 5 कड़े संदेश | वनइंडिया हिंदी
क्षेत्रीय अखंडता की कीमत पर शांति नहीं चाहता भारत

क्षेत्रीय अखंडता की कीमत पर शांति नहीं चाहता भारत

वास्तविक नियंत्रण नेता से खिलावाड़ करके लद्दाख में यथास्थिति बदलने की चीन की चालबाजी नई नहीं है। 1962 की जंग के बाद से ही चीन इस रणनीति पर काम करता रहा है। लेकिन, इसबार उसने एलएसी के पार जितनी बड़ी तादाद में पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी का जमावड़ा लगाया है, उससे जाहिर है कि उसका मंसूबा बहुत ही खतरनाक है। भारतीय इलाके को अपना बताने वाला चीन का खेल भी नया नहीं है और उसे इसके लिए भारत की ओर से समय-समय पर माकूल जवाब भी मिलता रहा है। लेकिन, इसबार उसने गलवान घाटी और पैंगोंग त्शो में जो हरकत की है, उससे लगता है कि वह अक्साई चिन और पाकिस्तानी कब्जे वाली कश्मीर पर अवैध कब्जे की तरह ही लद्दाख के बाकी इलाकों में भी दखलअंदाजी करना चाहता है। लेकिन, पीएम मोदी ने सिंधु नदी के किनारे 11,000 फीट की ऊंचाई पर नीमू सेक्टर तक पहुंचकर उसे साफ संदेश दे दिया है कि भारत हमेशा शांति की वकालत तो करता है, लेकिन क्षेत्रीय अखंडता की कीमत पर कभी नहीं।

भारत किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेगा

भारत किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेगा

चीन चाहता है कि भारत अपनी स्थिति से पीछे हटे, एलएसी के पास हो रहे इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के काम को रोक दे और इलाके से सेना की मौजूदगी को कम कर दे। इसके बाद वह एलएसी से अपनी सेना को कम करेगा, लेकिन इलाके पर अपने दावे को नहीं छोड़ेगा। लेकिन, ऐसे वक्त में जब दोनों की सेनाएं आमने-सामने हैं, लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत हो रही है, पीएम मोदी ने फॉर्वर्ड पोजीशन पर जाकर चीन को साफ संकेत दे दिया है कि चीन जो कुछ चाहता है, वैसा भारत बिल्कुल नहीं करेगा। इंफ्रास्ट्रक्चर का काम जैसे चल रहा था, वैसे ही चलता रहेगा। चीन को अप्रैल से पहले वाली यथास्थिति पर पीछे जाना ही होगा। क्योंकि, चीन भारत को परोक्ष रूप से धमका चुका है कि वह उससे टक्कर लेने की कोशिश न करे। क्योंकि चीन की तुलना में भारत की जीडीपी महज 20 फीसदी है और इतनी जीडीपी में चीन के रक्षा बजट से भारत मुकाबला नहीं कर सकता। लेकिन, पीएम मोदी ने वहां पहुंचकर शी जिनपिंग को बिना कुछ कहे संकेत दे दिया है कि यह न तो 1962 वाला भारत है और न ही उस वक्त जैसा माहौल। ज्यादा नहीं तो चीन को कम से कम डोकलाम और फिर गलवान घाटी को तो नहीं ही भूलना चाहिए।

चीन भारत को अकेले समझने की गलती न करे

चीन भारत को अकेले समझने की गलती न करे

गलवान घाटी के मुद्दे पर जिस तरह से दुनिया के कई देश अलग-अलग बहाने से भारत के साथ आए हैं, पीएम मोदी उस कूटनीतिक संदेश से भी चीन को वाकिफ कराना चाहते हैं। अमेरिका सीधा ऐलान कर चुका है कि वह चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी की विस्तारवादी नीति को अच्छे तरीके से समझता है। वह यूरोप से अपनी सेना हटाकर दक्षिण-पूर्व एशिया में तैनात कर ड्रैगन की नकेल कसने का ऐलान कर चुका है। इस तनाव के वक्त में चीन की मनाही के बावजूद रूस रक्षा सौदे के लिए तैयार है। फ्रांस ने राफेल को पूरी तरह से युद्ध के लिए तैयार कर भेजने की तैयारी शुरू कर दी है। मतलब, अगर गलवान घाटी में भारतीय सेना के जवान पीएलए को मार-मार कर भगाने के लिए तैयार हैं तो भारत बाकी स्थिति के लिए भी भारत खुद को तैयार कर चुका है।

दुनिया में चीन के खिलाफ बढ़ता माहौल

दुनिया में चीन के खिलाफ बढ़ता माहौल

कोरोना वायरस के चलते पहले से है वैश्विक-जनमानस में चीन के खिलाफ गुस्सा भरा हुआ है। पीएम मोदी को भी इस बात का पूरा एहसास है। दुनिया में वामपंथी तानाशाही शासन के चलते पहले से ही चीन की छवि खराब है। ऐसे में उसने सिर्फ भारत को ही नहीं, बल्कि जापान, वियतनाम, ताइवान और रूस जैसे देशों को भी उंगली करने की कोशिश की है। दक्षिण चीन सागर में दखल बढ़ाते जाने और कोरोना वायरस के चलते तो वह पहले से ही अमेरिका के निशाने पर है। पीएम मोदी को पता है कि इस माहौल में विश्व की भावना दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र यानि भारत के साथ है। अमेरिका के अलावा जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर भारत के साथ होने का संकेत दे चुके हैं। यही वजह है कि पीएम मोदी के लद्दाख पहुंचने से एक दिन पहले भारत चीन की दुखती रग यानि हॉन्ग हॉन्ग में उसकी ज्यादतियों का मुद्दा उठा चुका है। गौरतलब है कि इस मुद्दे पर यूके पहले से ही चीन के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है।

 भारत की जनभावना सेना और सरकार के साथ

भारत की जनभावना सेना और सरकार के साथ

पूर्वी लद्दाख के मसले पर कांग्रेस और कुछ लेफ्ट पार्टियों को छोड़कर ज्यादातर विपक्षी पार्टियां भी सरकार के साथ खड़ी हैं। अलबत्ता इस मसले पर कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी के अलावा किसी बड़े नेता ने भी तथ्यों के साथ सरकार को घेरने की कोशिश नहीं की है। उलटे 20 शहीदों का बदला लेने की जनभावना ही पूरे देश में फैली हुई है। शी जिनपिंग और चीन की स्थिति इससे ठीक उलट है। आज वह गलवान में मारे गए अपनी सेना के अफसरों और जवानों की संख्या बताने तक की साहस नहीं दिखा पा रहा है। साम्यवादी चीन से जो खबरें कुछ विदेशी मीडिया के माध्यमों से आई हैं, उससे वहां इस घटना को लेकर बहुत ही ज्यादा विरोध का माहौल बना हुआ है। चीनी सेना के 5 करोड़ से ज्यादा वेटरन पहले से ही चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी से खार खाए बैठे हैं। इस स्थिति में प्रधानमंत्री मोदी का मनोबल भी ऊंचा है और इसलिए उन्होंने मोर्चे पर डटी सेना के बीच जाकर उनका भी मनोबल ऊंचा करने का साहस दिखाया है। जबकि, 21वीं सदी के चीन के डिक्टेटर में ऐसी साहस की अपेक्षा चीन की जनता भी नहीं कर सकती।

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English summary
PM Modi in Ladakh: 5 big messages to China, know what
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