J&K पर पाकिस्तान की जुबान बोलने वाले तुर्की को पीएम मोदी ने 3 कूटनीतिक मोर्चों पर घेरा
नई दिल्ली- जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान से सुर मिलाने वाले तुर्की को पीएम मोदी ने भारत की ओर से सख्त कूटनीतिक संदेश दे दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका से स्वदेश लौटने से पहले तुर्की के तीन विरोधी देशों के नेताओं से मुलाकात करके जता दिया है कि चिंगारी से खेलने का अंजाम बुरा होता है। प्रधानमंत्री मोदी ने ग्रीस, साइप्रस और आर्मेनिया के प्रमुखों से मुलाकात की है, जिनकी अपनी-अपनी वजहों से तुर्की से पुरानी दुश्मनी है। दरअसल, कभी खुद को भारत का दोस्त बताने वाले तुर्की ने जिस तरह से कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की हिमायत करने की कोशिश की है, वह भारत को बेहद नागवार गुजरा है। इसलिए, मोदी ने उसके तीनों विरोधी देशों के नेताओं से कूटनीतक मुलाकात करके उसे भविष्य के लिए चेता दिया है।
तुर्की को सख्त कूटनीतिक संकेत
पीएम मोदी ने यूएन जनरल असेंबली में अपने संबोधन के तत्काल बाद साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस अनास्तासियादेस से मुलाकात की। गौरतलब है कि साइप्रस और तुर्की के बीच विवाद 1974 से ही चल रहा है। 1974 में तुर्की ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर जबरन कब्जा कर लिया था, जो उसके स्वतंत्रत क्षेत्र की तरह था। कब्जे के बाद तुर्की ने उस इलाके का नाम टर्किश रिपब्लिक ऑफ नॉर्दन साइप्रस कर दिया। अनास्तासियादेस से मुलाकात के दौरान पीएम मोदी ने जोर देकर कहा कि 'भारत रिपब्लिक ऑफ साइप्रस की स्वतंत्रता, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और एकता का लगातार समर्थन करता रहा है।' जाहिर है कि मोदी का यह कदम तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन को असहज करने वाली घटना है। इससे पहले तुर्की भारत के खिलाफ एक और हिमाकत कर चुका है। उसने न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की एंट्री का यह कहकर विरोध किया था कि बिना पाकिस्तान को सदस्य बनाए ऐसा करना ठीक नहीं है।
अपने ही जाल में उलझा तुर्की
प्रधानमंत्री ने ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोताकिस से भी मुलाकात की जिसका तुर्की के साथ समुद्र क्षेत्र को लेकर बड़ा विवाद चल रहा है। इसके अलावा पीएम मोदी आर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान से भी मिले। गौरतलब है कि आर्मेनिया अपने लाखों नागरिकों के नरसंहार के लिए तुर्की को जिम्मेदार मानता है और यह मुद्दा दोनों देशों के लिए हमेशा से ही तनाव की वजह रहा है। तुर्की-आर्मेनिया के बीच की यह दुश्मनी एक सदी से भी ज्यादा पुरानी है जब 1915 से 1918 के बीच तुर्की के आटोमन साम्राज्य ने लगभग 15 लाख आर्मेनियाई नागरिकों का कत्लेआम कर दिया था।
यूएनजीए में तीनों देशों के निशाने पर था तुर्की
यहां ये बता देना जरूरी है कि साइप्रस, ग्रीस और आर्मेनिया ने यूएनजीए में तुर्की के खिलाफ जमकर हमला बोला था। यही वजह है कि पीएम मोदी ने उनकी भावनाओं को समझते हुए फौरन कूटनीतिक पहल की और उनके नेताओं से मुलाकात करके तुर्की को उसकी चालबाजियों के लिए आगाह करने की कोशिश की है। अपने इस कदम से मोदी ने अंकारा को आगाह किया है कि वह भारत के आंतरिक मामलों में पाकिस्तान का प्रवक्ता बनने की कोशिश न करे। गौरतलब है कि तुर्की पहले खुद को भारत का मित्र राष्ट्र बताता था। सरकारी सूत्रों के मुताबिक इन तीनों मुलाकातों के पीछे भारत का मकसद साफ है कि जम्मू-कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और उसमें दखल देने वालों को वह हरगिज बर्दाश्त नहीं करेगा। इसकी बानगी तब भी देखने को मिली जब चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया तो भारत ने उसे चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को लेकर मुंहतोड़ जवाब दिया।
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