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कृपया दिल्ली CM को मत कोसिए, दिल्ली में लॉ एंड ऑर्डर मामले में बिल्कुल शक्तिहीन हैं केजरीवाल!

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बेंगलुरू। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली पिछले दो महीने से अशांत है। पहले शाहीन बाग और अब जाफराबाद इलाके में नागरिकता संशोधन कानून की आड़ में दंगाईओं ने दिल्ली की आबोहवा को खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखा है। आरोप लगता है कि दिल्ली आम आदमी पार्टी सरकार आखिर क्यों कुछ नहीं कर रही है। जब से बयानों को हवा मिलती है तब केजरीवाल और उनके नुमाइंदगी करने वाले नेता बीजेपी पर राजनीति करने का आरोप लगाकर पल्ला झाड़ लेती हैं।

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आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के सीएम केजरीवाल दिल्ली के लॉ एंड ऑर्डर की जिम्मेदारी केंद्र में पल्ले में डालकर डालकर फारिक हो जाते हैं और दिल्ली की चुनी हुई सरकार की जिम्मेदारी पर सवाल पूछने पर वो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को दोहराने से नहीं चूकते हैं। यानी जब दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन होगी तभी दिल्ली में दिल्ली की जनता का भविष्य सुरक्षित होगा। यह बड़ा सवाल है, जिसका जवाब आम आदमी पार्टी समेत किसी के पास नहीं है।

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हालांकि वास्तविकता की धरातल पर दिल्ली सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की वस्तुस्थिति पर नज़र डालेंगे तो जवाब आसानी से मिल जाएंगे, क्योंकि दिल्ली में समस्या की जड़ कानूनी है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम के कारण दिल्ली की चुनी हुई सरकार लॉ एंड ऑर्डर में बिल्कुल असहाय है। चूंकि दिल्ली न राज्य है और न केंद्र प्रशासित क्षेत्र है। एक त्रिशंकु की तरह दिल्ली की जनता के वोटों से चुनकर आए केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे केजरीवाल को अगर तमाशाई प्रशासक कहें तो अतिशियोक्ति नहीं होगी।

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दरअसल, वर्ष 1991 में 69वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम के तहत केंद्र-शासित दिल्ली को औपचारिक रूप से दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की पहचान दी गई थी। इसी अधिनियम में दिल्ली विधान सभा और मंत्री-परिषद से संबंधित संवैधानिक प्रावधान निर्धारित किए थे। वर्ष 1991 से दिल्ली में एक विधानसभा है, जहां कुल 70 विधायक चुने जाते हैं। एक मुख्यमंत्री समेत सात मंत्रियों की एक काउंसिल दिल्ली में सरकार चलाती है, लेकिन राजधानी दिल्ली में मौजूदा व्यवस्था के तहत कई सरकारें हैं।

केजरीवाल नहीं, दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल हैं सबसे बड़ी सरकार

केजरीवाल नहीं, दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल हैं सबसे बड़ी सरकार

मौजूदा व्यवस्था में दिल्ली में सबसे बड़ी सरकार उपराज्यपाल हैं, जो कि एक केंद्र सरकार के अधिकारी हैं। चूंकि दिल्ली के पूर्ण राज्य ना होने की स्थिति में दिल्ली के उप राज्यपाल राष्ट्रपति के नुमाइंदे कहे जाते हैं, जिनका ओहदा दिल्ली में मुख्य प्रशासक का है और दिल्ली के सारे फैसले मसलन, अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ कार्रवाई का अधिकार सिर्फ उपराज्यपाल के पास सुरक्षित हैं। यही नहीं, दूसरे राज्यों की तरह दिल्ली में नगर निगम भी दिल्ली की चुनी हुई सरकार के सीधे अधीन नहीं है, वह उपराज्यपाल के अधीन है। साथ ही, निगम चुनी हुई आम आदमी पार्टी की सरकार के आदेशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

मौजूदा दिल्ली सरकार उपराज्यपाल और केंद्र सरकार की दया पर निर्भर है

मौजूदा दिल्ली सरकार उपराज्यपाल और केंद्र सरकार की दया पर निर्भर है

इसके अलावा दूसरे राज्यों की तरह दिल्ली में जमीन यानी दिल्ली विकास प्राधिकरण सीधे-सीधे उपराज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार के अधीन है। ऐसे में दिल्ली सरकार लाख चाहे भी तो जमीन से जुड़े हुए फैसले नहीं ले सकती। इतना ही नहीं, अगर दिल्ली सरकार को कहीं किसी सरकारी परियोजना के लिए जमीन की जरूरत हो तो उसे उपराज्यपाल और केंद्र सरकार की दया पर निर्भर होना पड़ता है। सीधे शब्दों में यह कह सकते हैं कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार महज एक ऐसी सरकार है जिसे जनता अपने लिए चुन तो सकती है, लेकिन अपनी मदद के लिए उसे पुकार नहीं सकती है, क्योंकि वह उसकी मदद कर ही नहीं सकती है, क्योंकि पुलिस और प्रशासन में उसकी हैसियत ही नहीं है।

दिल्ली की पुलिस सीधे-सीधे केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के नियंत्रण में है

दिल्ली की पुलिस सीधे-सीधे केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के नियंत्रण में है

क्योंकि दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश होने की स्थिति में दिल्ली की पुलिस भी उपराज्यपाल के जरिए सीधे-सीधे केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के नियंत्रण में है, जो केजरीवाल सरकार के आदेश मानने के लिए बिल्कुल बाध्य नहीं है। इतना ही काफी नहीं था कि वर्ष 2015 में दिल्ली सरकार के अधीन रही एंटी करप्शन ब्रांच को भी दिल्ली के अधीनता से हटा लिया गया। जबकि केजरीवाल सरकार से पहले पूर्ववर्ती शीला दीक्षित सरकार में दिल्ली सरकार के अधीन हुआ करती थी। मई 2015 में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक नोटिफिकेशन में दिल्ली की चुनी हुई सरकार से एंटी करप्शन ब्रांच और सर्विसेस विभाग को उपराज्यपाल के हवाले कर दिया गया। इस नोटिफिकेशन के जरिए दो टूक कह दिया कि दिल्ली में सरकार का मतलब सिर्फ और सिर्फ उपराज्यपाल हैं।

चपरासी से लेकर नौकरशाह की नियुक्ति का हक सिर्फ उपराज्यपाल को

चपरासी से लेकर नौकरशाह की नियुक्ति का हक सिर्फ उपराज्यपाल को

सरकार में आने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट में केजरीवाल सरकार ने गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन को चुनौती दी, लेकिन हाई कोर्ट ने भी केंद्र के फैसले को सही ठहराते हुए दिल्ली में उप-राज्यपाल को ही सबसे बड़ा प्रशासक माना और उन्हें ही सर्व शक्तियों वाली सरकार घोषित कर दिया। जाहिर है अब दिल्ली में चपरासी से लेकर नौकरशाह की नियुक्ति, उनके तबादले और उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई का अधिकार सिर्फ और सिर्फ उपराज्यपाल को है। ऐसी स्थिति में अधिकारों के मामले में बिल्कुल निहत्थी दिल्ली सरकार ट्विटर के माध्यम से सिर्फ शांति की अपील करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती है।

तकरीबन 3 वर्ष तक केजरीवाल और उपराज्यपाल खींची रहीं तलवारें

तकरीबन 3 वर्ष तक केजरीवाल और उपराज्यपाल खींची रहीं तलवारें

यही वह स्थिति है जब अधिकारों की लड़ाई में केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच तलवार खींची हुई थी। दिल्ली सरकार के चुने हुए अफसरों पर उपराज्यपाल द्वारा अड़ंगा लगाने और दिल्ली के अफसरों द्वारा दिल्ली सरकार के मंत्रियों के आदेश नहीं मानने के किस्से बहुत मशहूर है, क्योंकि केजरीवाल सरकार पिछले कार्यकाल में दिल्ली सरकार और दिल्ली की नौकरशाही के बीच चले 3 साल लंबी लड़ाई कौन इत्तेफाक नहीं रखता है। यही कारण है कि बार-बार केजरीवाल सरकार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की वकालत करते हैं ताकि वह अपने विकास मॉडल को लागू कर सके, जिसमें वो सिर्फ इसलिए अब तक असफल हैं, क्योंकि दिल्ली पर पूरा अधिकार अभी दिल्ली उप राज्यपाल तक सीमित है।

2020 दिल्ली चुनाव में टर्म एंड कंडीशन वाले मेनिफिस्टों लेकर आई AAP

2020 दिल्ली चुनाव में टर्म एंड कंडीशन वाले मेनिफिस्टों लेकर आई AAP

इसीलिए 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव के मेनिफेस्टों में केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से मेनिफिस्टों के वादे को पूरा करने के लिए टर्म एंड कंडीशन वाले क्लाज लगाए हैं, जिसमें दिल्ली के पूर्ण राज्य का तमगा दिलाने की मांग सबसे प्रमुख शर्त है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग दिल्ली की सरकार द्वारा की गई है। दिल्ली में चुनी हुई सरकार चाहे बीजेपी की रही हो या कांग्रेस की, दोनों पार्टियों की दिल्ली की सरकारों ने जनता की उम्मीदों को बेहतर तरीके से पूरा करने के लिए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग कर चुके हैं।

पूर्व CM शीला दीक्षित ने दिल्ली के पूर्ण राज्य का दर्जा देने की थी वकालत

पूर्व CM शीला दीक्षित ने दिल्ली के पूर्ण राज्य का दर्जा देने की थी वकालत

लगातार 15 वर्ष तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं पूर्व दिल्ली सीएम दिवंगत शीला दीक्षित ने दिल्ली में कानून व्यवस्था बिगड़ने से लेकर महिलाओं की सुरक्षा तक के सवाल पर दिल्ली के पूर्ण राज्य नहीं होने और पुलिस के राज्य सरकार के अधीन ना होने का हवाला देती रहीं हैं। 2013 दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को अपने घोषणापत्र में प्रमुखता से रखा था। इससे पहले दिल्ली में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे विजय गोयल भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर चुके हैं। वर्ष 2004 में एनडीए सरकार में गृह मंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने को लेकर एक मसौदा भी संसद में पेश किया जिसे प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाली समिति के पास विचार करने के लिए भेजा गया था, लेकिन दिल्ली के पूर्ण राज्य का मुद्दा आज भी ढाक के तीन पात है।

दिल्ली की जनता अपनी सुरक्षा के लिए गुहार आखिर किसके सामने लगाए?

दिल्ली की जनता अपनी सुरक्षा के लिए गुहार आखिर किसके सामने लगाए?

वर्तमान में भी दिल्ली की वास्तविक स्थिति वही है कि अगर दिल्ली के बाहरी इलाके में किसी गांव में कानून-व्यवस्था बिगड़े या कोई विवाद हो तो दिल्ली की जनता के सामने असमंजस की स्थिति हो जाती है कि आखिर वह अपनी सुरक्षा के लिए गुहार किसके सामने लगाए। दिल्ली के शाहीन बाग में दो महीने से जारी धरना-प्रदर्शन और जाफराबाद में हुए हालिया हिंसक प्रदर्शन के संदर्भ में इसका आसानी से समझा जा सकता है, जहां दिल्ली सरकार तमाशबीन बनी हुई हैं, जिसे दिल्ली की जनता ने रिकॉर्ड मतों से चुनकर अपनी सुरक्षा के लिए कुर्सी पर बैठाया है और जो दिल्ली के सर्व शक्तिमान हैं वहां तक जनता की सीधी पहुंच नहीं है, जिनका उत्तरदायित्व है कि वह लॉ एंड ऑर्डर को बनाने में योगदान दें।

जनता के प्रति सीधे जवाबदेह केजरीवाल सरकार के पास शक्तियां नहीं है

जनता के प्रति सीधे जवाबदेह केजरीवाल सरकार के पास शक्तियां नहीं है

सीधे-सीधे समझिए तो दिल्ली में लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांत के विपरीत स्थिति है यानी जिसको जनता ने चुना है और जो जनता के प्रति सीधे जवाबदेह है, उसके पास शक्तियां नहीं है और जिसको जनता ने नहीं चुना है बल्कि नियुक्त किया गया है और जो जनता के प्रति सीधे जवाबदेह नहीं है, उसके पास अथाह शक्तियां हैं। दिल्ली की मौजूदा परिस्थिति में चुनी हुई सरकार की भूमिका का महज़ सलाहकार है। यानी दिल्ली की लाखों की आबादी ने जिस सरकार को फैसले लेने के लिए चुना है वह नीति और नियम तो बना सकती है, लेकिन उन नीतियों को अमलीजामा पहनाने का अधिकार उस सरकार के पास नहीं है।

संविधान की धारा 239 ए ए के तहत दिल्ली की चुनी हुई सरकार बाध्य है

संविधान की धारा 239 ए ए के तहत दिल्ली की चुनी हुई सरकार बाध्य है

इसे लोकतंत्र की विडंबना ही कहेंगे कि संविधान की धारा 239 ए ए में मौजूदा परिभाषा के अनुसार उपराज्यपाल दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सलाह मानने के लिए बिलकुल बाध्य नहीं हैं। दूसरे राज्यों में लोकतंत्र के मूल सिद्धांत के तहत राज्यपाल चुनी हुई सरकार के फैसले मानने के लिए बाध्य होता हैं, लेकिन दिल्ली में उपराज्यपाल के पास अधिकार हैं कि वह जब चाहें, जितने चाहें या फिर चाहें तो चुनी हुई सरकार के सारे फैसले और आदेश पलट सकते हैं या उसे खारिज कर सकते हैं। दिल्ली में ऐसा पिछले 3 सालों में लगातार देखा जा रहा है जब उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार के नीतिगत फैसलों को पलट दिया।

उप-राज्यपाल व केंद्र के रहमों होती है दिल्ली की चुनी हुई सरकार

उप-राज्यपाल व केंद्र के रहमों होती है दिल्ली की चुनी हुई सरकार

राजनीतिक आरोप और प्रत्यारोप को दूर रखकर समझिए तो दिल्ली की यह स्थिति इसलिए हैं, क्योंकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का अधिकार नहीं मिला है और दिल्ली की चुनी हुई सरकार को हर हालत में उप-राज्यपाल और केंद्र सरकार के रहमों करम पर जीना पड़ता है। स्थिति तब और बदतर हो जाती है जब दिल्ली में किसी और पार्टी की सरकार हो और केंद्र में कोई और दल सत्ता में काबिज हो। जैसा कि मौजूदा समय में है जब केंद्र में बीजेपी की सरकार है और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार काबिज है और दोनों के बड़े नेताओं के बीच कड़वाहट जगजाहिर है। जाहिर है खामियाजा दिल्ली की जनता भुगत रही है।

10 वर्षों में शीला दीक्षित इच्छाशक्ति दिखाती तो दिल्ली पूर्ण राज्य होता

10 वर्षों में शीला दीक्षित इच्छाशक्ति दिखाती तो दिल्ली पूर्ण राज्य होता

दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार, उपराज्यपाल और दिल्ली पुलिस के बीच आपसी समन्वय नहीं होने की स्थिति की शिकायत कभी शीला दीक्षित भी करती थी और वर्तमान में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कर रहे हैं। हालांकि शीला दीक्षित के पास उस समय एंटी करप्शन ब्रांच और सर्विसेस विभाग था, जिससे वह अधिकारियों पर नकेल लगा सकती थी, लेकिन केजरीवाल के पास वह शक्तियां भी नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पास मौका था जब 10 साल की अंदर में कांग्रेस की सरकार थी और दिल्ली में भी कांग्रेस की ही सरकार थी। तब अगर वह इच्छा शक्ति दिखातीं तो दिल्ली आज की तारीख में एक पूर्ण राज्य होता और दिल्ली की केजरीवाल सरकार को अभी रक्षात्मक नहीं होना पड़ता।

 दिल्ली की 2 करोड़ आबादी को अधिकारों से लैस एक सशक्त सरकार जरूरी

दिल्ली की 2 करोड़ आबादी को अधिकारों से लैस एक सशक्त सरकार जरूरी

शाहीन बाग और जाफराबाद में हिंसात्मक धरना प्रदर्शन के बाद अब वह समय आ गया है जब दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नाम देने का हल निकाला जाए ताकि दिल्ली की दो करोड़ की आबादी को एक चुनी हुई और अधिकारों से लैस सशक्त सरकार मिल सके, जो उनके लिए न सिर्फ सीधे तौर पर जिम्मेदार हो बल्कि उस जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए पर्याप्त शक्तियां भी रखती हो, क्योंकि दिल्ली के पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं देने के पीछे की वजहों का हल निकालना अब जरूरी हो गया है। नई दिल्ली में मौजूद प्रधानमंत्री आवास, राष्ट्रपति भवन, संसद और विदेशी दूतावासों की सुरक्षा का हवाला देकर अब और दिल्ली को और दिल्ली की जनता को लावारिस नहीं छोड़ा जा सकता है?

कब कब हुई दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग?

कब कब हुई दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग?

2013 में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने को अपने घोषणापत्र में प्रमुखता से रखा था। मई 2014 में लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद भी डॉ. हर्षवर्धन ने बयान दिया था कि वह प्रधानमंत्री के पास जाकर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करेंगे। दिल्ली में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे विजय गोयल ने भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कई बार दोहराई। केंद्र में एनडीए की सरकार थी तब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने संसद की ओर मार्च करते हुए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग की थी। तब तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने को लेकर एक मसौदा संसद में पेश किया जिसे प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाली समिति के पास विचार करने के लिए भेजा गया था

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English summary
If we look at the reality of Delhi Government and National Capital Territory of Delhi on the ground of reality, the answers will be easily found, because the root of the problem is legal in Delhi. Due to the National Capital Territory Act, the elected government of Delhi is completely helpless in law and order. Since Delhi is neither a state nor a centrally administered region. Kejrawal, who was elected by the votes of the people of Delhi, is certainly sitting on the chair of the Chief Minister of Delhi, but if he is called a tamasha administrator, it will not be an exaggeration.
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