COVID19: आखिर सच हुई वैश्विक आपदा को लेकर बाबा बेन्गा की भविष्यवाणी!
बेंगलुरू। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोनावायरस (COVID-19) को महामारी घोषित करने में करीब दो महीने का वक्त लिया, तब जब इसकी चपेट में आकर पूरे विश्व में 4637 लोग अपनी जान गंवा चुके है। मौत का यह आंकड़ा प्रतिदिन के लिहाज से तेज गति से बढ़ रहा है।
चीन के हुंबई शहर से निकलकर अब 124 देशों में फैला चुका कोरोनावायरस से सबसे अधिक प्रभावित चीन में अब तक कुल 3169 नागरिकों की मौत हो चुकी है। पूरी दुनिया में वर्तमान में 126, 490 कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों की पुष्टि हुई है और वर्तमान में यह आंकड़ा प्रतिदिन 7-8 फीसदी की दर से बढ़ रहा है।
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शुरूआती दौर में जब यह वायरस चीन में तेजी से फैल रहा था तब डब्ल्यूएचओ ने हेल्थ इमरजेंसी घोषित करने से परहेज किया और उसे मामूली बताया, लेकिन जल्द ही उसे समझ आ गया कि यह मामूली नहीं, बल्कि एक बड़ी आपदा है और इसे विश्वव्यापी खतरा मानते हुए हेल्थ इमरजेंसी घोषित करना पड़ा। अब जब पूरे विश्व में कोरोनावायरस के मरीज बढ़ रहे हैं तो बुधवार को WHO ने कोरोना को वैश्विक महामारी (Pandemic) घोषित कर दिया।
यह कहना सही होगा कि कोरोनोवायरस (COVID-19) की भयावहता को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ही नहीं, चीन और अन्य देश भी आंशकित नहीं थे। सरकारी जानकारी के मुताबिक भारत में 11 मार्च तक कुल 62 मरीज कोरोना वायरस से ग्रसित पाए गए हैं। भारत में इसकी शुरूआत केरल में हुईं। हालांकि केरल सरकार ने कोरोना वायरस को राज्य आपदा घोषित करने में देर नहीं लगाई।
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केरल के बाद भारत में कोरोनावायरस के सबसे ज्यादा केस राजस्थान में सामने आए हैं, जहां इटालियन पर्यटकों का एक ग्रुप पर्यटन के लिए पहुंचा था। जांच के बाद कोरोनावायरस की पुष्टि के बाद राजस्थान में पीड़ितों की संख्या 18 पहुंच गई। इनमें 17 इटालियन नागरिक हैं और एक भारतीय नागरिक शामिल हैं, जो इटालियन ग्रुप को घुमाने वाले बस का ड्राइवर था।
निःसंदेह कोरोनावायरस के संचरण का केंद्र चीन का हुबंई शहर है, जहां सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है, लेकिन कोरोनावायरस पहली बीमारी का प्रकोप नहीं है जिसके कारण बड़े पैमाने पर मौतें हुई हैं। वैश्विक इतिहास टटोलेंगे तो ऐसे जानलेवा प्रकोपों ने दुनिया के कई हजारों लोगों को मार डाला है।
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वर्ष 1720 में फ्रांस के मार्सिले शहर में वैश्विक महामारी प्लेग फैला। वर्ष 1820 में इंडोनेशिया,थाईलैंड और फिलीपींस में वैश्विक महामारी हैजा (कॉलरा) फैला, वर्ष 1920 में यूरोपीय देश स्पेन में वैश्विक महामारी फ्लू (स्पेनिश फ्लू) फैला और 100 वर्ष बाद अब चीन में कोरोना वायरस फैला है, जो एक वैश्विक आपदा घोषित हो चुकी है। वैश्विवक महामारी कोरोनावायरस वर्तमान में न केवल तेजी से फैल रही है बल्कि लोगों की जान भी ले रही है।
यहां वैश्विक आपदा को लेकर भविष्य वक्ता बुल्गारिया के बाबावेन्गा की भविष्यवाणी की चर्चा करनी इसलिए जरूरी है, क्योंकि बाबावेन्गा द्वारा की गईं भविष्यवाणियां सच साबित हो रही है, जो उन्होंने पर्यावरण और प्राकृतिक आपदा को लेकर की थी। बाबावेन्गा ने 50 साल में करीब 100 भविष्यवाणियां की थीं।
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जब दुनिया इस वक्त कोरोनावायरस की चपेट में हैं तो ऐसे में वेन्गा कि गई वह भविष्यवाणी सच होती दिख रही है। बाबा वेन्गा ही नहीं, कई वैज्ञानिकों द्वारा भी बार-बार कहा गया है कि धरती की तबाही का बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है, जिसकी कड़ी प्राकृतिक संसाधनों के अनुचित दोहन और प्रकृति के साथ खिलवाड़ से जुड़ी हुई है।
गौरतलब है वर्ष 2009 में अमेरिका और मैक्सिको में एच1एन1 वायरस के संक्रमण में हजारों लोगों की जान गई थी। डब्ल्यूएचओ द्वारा वैश्विक महामारी घोषित की गई एन1एन1 (स्वाइन फ्लू) का इतिहास 121 वर्ष पुराना है। वर्ष 1889 से पहले एच1 से मानवों में स्वाइन फ्लू का वायरस संक्रमित हुआ।
लेकिन, इसी वर्ष रूस में एच2 वायरस सामने आया और पूरी दुनिया में फैल गया। इससे 10 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। इसके बाद वर्ष 1918 में वैश्विक महामारी स्पेनिश फ्लू फैला, जिसमें करीब पांच करोड़ लोगों की मौत हुई और और वैश्विक आबादी की एक-तिहाई आबादी इससे संक्रमित हुई थी।
वर्ष 2009 में स्वाइन फ्लू ने भारत में दस्तक दिया था और इसकी भयावहता को देखकर 2009 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एच1एन1 को वैश्विक महामारी घोषित करने का फैसला किया था। स्वाइन फ्लू (एच1एन1) को वैक्सीन से नियंत्रित करने की कोशिश की गई, लेकिन उसमे सफलता नहीं मिली।
स्पैनिश फ्लू के संबंध में WHO द्वारा जारी 'ए वर्ल्ड एट रिस्क' नामक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने लगभग दर्ज़न भर बीमारियों को सूचीबद्ध किया है और चेतावनी जारी की थी कि उक्त बीमारियां नियंत्रण से बाहर होती हैं, और विश्व-स्तर पर भयंकर बीमारी फैला सकती हैं। इनमें वैश्विक महामारी घोषित हो चुकी प्लेग, इबोला,जीका वायरस और डेंगू शामिल थी।
इसी रिपोर्ट में वर्ष 1918 में फैले घातक स्पेनिश फ्लू का ज़िक्र किया गया था। विशेषज्ञों की मानें तो वर्ष 1918 के मुकाबले आज के दौर में पूरी दुनिया में काफी ज्यादा और तेजी से लोग एक देश से दूसरे देश की यात्राएं कर रहे हैं। इस लिहाज से कोरोनावायरस पिछली महामारियों से अधिक ज्यादा खतरनाक साबित होगा।
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प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती है। 23 जनवरी को कोरोनावायरस चीन तक सीमित थी और उससे पीड़ितों की संख्या महज 8 थी और वर्तमान यानी 12 मार्च को लगभग 124 देशों में फैल चुकी कोरोना वायरस की चपेट में 124, 280 लोग हैं और 4634 लोग की जान तक ले चुका है।
उल्लेखनीय है इस रिपोर्ट में, पूर्व में जारी की गई चेतावनियों को नज़रंदाज़ करने की बात भी कही गई थी, जो कोरोना वायरस के संचरण के मामले में भी देखने को मिला और डब्ल्यूएचओ को लापरवाही बरतने के लिए कई देशों को फटकार भी लगानी पड़ी।
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'द ग्लोबल प्रीपेयर्डनेस मॉनिटरिंग बोर्ड के अनुसार वर्ष 1918 में फैली स्पेनिश फ्लू से निपटने के लिए सिफारिशी रिपोर्ट को भी विश्व के नेताओं द्वारा नज़रंदाज़ किया गया था और जब नतीजा सामने आया तो लोगों के होश उड़ गए थे। स्पेनिश फ्लू ने करीब 5 करोड़ लोगों को निगल लिया था।
माना जा रहा है कि कोरोनावायरस से निपटने के मामले में भी ऐसी ही पैटर्न सामने आए हैं। WHO द्वारा जारी रिपोर्ट में वायरस इबोला की तरह कोरोनावायरस को खतरनाक बताया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि पूर्व में गई गलतियों से सबक लेते हुए WHO द्वारा जारी रिपोर्ट की सिफारिशों को गंभीरतापूर्वक लेने की जरूरत है।
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सम्पूर्ण विश्व को इस संबंध में मिलकर काम करने की जरुरत है। WHO के महानिदेशक ने इसकी गंभीरता को देखते हुए कहा कि ये प्रकोप हमें सबक सिखा रहे है कि बारिश आने से पहले हमें अपने छत को ठीक कर लेना होगा।
वर्ष 1918 में जब दुनिया प्रथम विश्व युद्ध की वैश्विक विभीषिका से उबरने का प्रयास कर रही थी, ठीक उसी वक्त स्पेनिश फ्लू ने दुनिया में दस्तक दी थी। प्रथम विश्व युद्ध में जितने लोग मारे गए, स्पेनिश फ्लू ने उससे दो गुना लोगों को लील लिया था। उस दौरान करीब 5 करोड़ लोग मारे गए थे।
यह मानव इतिहास की सबसे भीषण महामारियों में से एक थी। स्पेनिश फ्लू से कोविड-19 (कोरोना) तक करीब एक सदी बीत चुकी है। स्पेनिश फ्लू पश्चिमी मोर्चे पर सैनिकों के तंग और भीड़ भरे ट्रेनिंग कैंपों में फैला। विशेष रूप से फ्रांस के साथ लगती सीमाओं पर स्थित खाइयों में प्रदूषित वातावरण ने इसके फैलने में मदद की। नवंबर 1918 में जब युद्ध समाप्त हुआ और सैनिक घर लौटने लगे तो वायरस उनके साथ आया।
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वर्ष 1720 फ्रांस में फैला प्लेग, महामारी में गई एक लाख की जान
फ्रांस के मार्सिले शहर में फैले बुबोनिक प्लेग को फैलने रोकने के लिए कुल 100,000 लोगों की हत्या की गई। यह संख्या उस वक्त दुनिया की पूरी जनसंख्या का 20% हुआ करती थी। खास तौर पर पर्शिया और इजिप्ट में फैली इस बीमारी की चपेट में आया एक अच्छा खासा इंसान की मौत हो जाती थी। इसका खौफ इतना था कि लोग किसी भी चीज को छूने तक को भी घबराते थे। 19वीं सदी के आखिरी सालों में प्लेग भारत के सूरत शहर में फैला था। हालांकि इतिहास में प्लेग के कई बार जिक्र मिलते हैं, जिससे संक्रमित यूरोप, अफ्रीका और एशिया में 7-20 करोड़ लोगों तक की जान ली थी। प्लेग को ताऊन, ब्लैक डेथ, पेस्ट आदि नाम भी दिए गए हैं। मुख्य रूप से यह चूहों और पीसू से फैलता है। प्लेग रोग कितना पुराना है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एफीरस के रूफुस ने, जो ट्रॉजन युग का चिकित्सक था, 'प्लेग के ब्यूबों का जिक्र किया है।
वर्ष 1820 द फर्स्ट कॉलरा (हैजा) में हुई 8 लाख लोगों की मौत!
वर्ष 1820 में अस्तित्व में आई जानलेवा बीमारी हैजा (कॉलरा) सबसे पहले थाईलैंड, इंडोनेशिया और फिलीपींस को अपनी चपेट में लिया। अकेले जावा द्वीप पर हैजा फैलने से 100,000 लोगों की मौत हो गई। वर्ष 1910 और 1911 के बीच भारत में शुरू छठी कॉलरा महामारी फैली। इसके बाद मध्य पूर्व, अफ्रीका और पूर्वी यूरोप और रूस तक यह महामारी फैली थी, जिससे करीब 8 लाख से ज़्यादा लोग मारे गए होंगे। विब्रियो कॉलरा नाम के बैक्टीरिया से होने वाले हैजा रोग इंसानी शरीर के गंदे अवशेष, पानी या खाने या फिर किसी दूसरे के हाथों तक पहुंचते हैं। इस बीमारी में दस्त और उल्टियां होती हैं, जिससे मरीज शरीर का सारा पानी खो देते हैं। साफ पानी न मिलने पर मरीज की मौत घंटों के अंदर-अंदर हो सकती है। कई सालों के शोध के बाद पता चला कि हैजा रोग सबसे पहले बांग्लादेश से शुरू हुई थी।
1920 में स्पैनिश फ्लू फैला, महामारी में गई 5 करोड़ की जान
दुनिया के सबसे खतरनाक वायरस यानी स्पेनिश फ्लू (एन्फ्लुएंजा) ने तबाही मचाई। स्पेनिश फ्लू ने दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी को अपना शिकार बना लिया था। यह वायरस सबसे पहले यूरोप, यूनाइटेड स्टेट्स और एशिया के कुछ हिस्सों में फैला और करीब 2-5 करोड़ लोगों की जिंदगी खत्म कर दी थी। यह वायरस एच1एन1 फ्लू था, जो कि खांसी, छींकने के दौरान निकलने वाली ड्रॉपलेट्स के संपर्क में आने से फैलता है। इस वायरस ने सबसे ज्यादा स्पेन में तबाही मचाई थी, जिस वजह से इसे स्पेनिश फ्लू के नाम से जाना जाने लगा।
डेंगू और एन1एन1 महामारी में हुई 13 लाख से अधिक मौत!
दुनिया में महामारी डेंगू और एच1एन1 ने भी काफी कहर ढाया। इनमें हेपेटाइटिस और एनसेफलाइटिस भी शामिल है। वर्ष 2015 में पूरी दुनिया में 13 लाख से ज़्यादा मौत अकेले हेपेटाइटिस से चलते हुई थी। वहीं, हेपेटाइटिस B टाइप से आज भी हर साल 7 लाख से ज्यादा मौतें हो रहीं हैं। इसके अलावा भारत के लिए जीका वायरस, निपाह वायरस जैसी जानलेवा बीमारियां चिंता का विषय अभी तक बनी हुई हैं। महामारी में शुमार इन्फ्लुएंजा मार्च 2009 में मैक्सिको में पहली बार प्रकट हुआ था। वैज्ञानिकों ने वायरस को इन्फ्लुएंजा A H1N1 के रूप में पहचान की। यह मूल रूप से सूअरों में था।
पैनडेमिक क्या है?
मेडिकल साइंस की भाषा में पैनडेमिक उस संक्रामक बीमारी को कहते हैं जिससे एक ही समय में दुनिया भर के लोग बड़ी संख्या में प्रभावित हो सकते हैं। पैनडेमिक का हालिया उदाहरण वर्ष 2009 में फैला स्वाइन फ़्लू था। इसकी वजह से दुनिया में लाखों लोगों की मौत हुई थी। किसी नए वायरस के ज़रिए फैलने वाली पैनडेमिक ज़्यादा ख़तरनाक होती है, क्योंकि ये लोगों में आसानी से फैल सकती है और ज़्यादा वक़्त तक मौजूद रह सकती है। कोरोना वायरस में यह सभी लक्षण पाए गए हैं। चूंकि अब तक कोरोना वायरस पर लगाम लगाने के लिए कोई वैक्सीन या ठोस इलाज उपलब्ध नहीं है, इसलिए यह तेज़ी से अपने पैर पसार रहा है।
निमोनिया पीड़ित मरीजों के लिए अधिक खतरनाक है कोरोना!
कोविड-19 से बहुत से लोग जान गंवा चुके हैं। इनमें से कई निमोनिया के एक रूप से पीड़ित हैं। यह आपको अपनी चपेट में ले लेता है, क्योंकि वायरस से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है। यह स्पेनिश फ्लू जैसा ही है, लेकिन कोविड-19 में मृत्यु दर कई गुना कम है। हालांकि जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है, ज्यादातर उन्हीं लोगों की मौत हुई है।
सुगम हवाई यात्राओं ने पूरी दुनिया में तेजी से फैलाया कोरोना वायरस!
स्पेनिश फ्लू जब फैला तो हवाई यातायात अपने शुरुआती दौर में था। इसी कारण दुनिया में ऐसे कुछ स्थान थे, जो इसके भीषण प्रभावों से बच गए। दुनिया में इसका प्रसार कम था। हवाई जहाज के बजाय रेल और स्टीमरों के जरिए लोग यात्रा करते थे। कुछ जगह महीनों और यहां तक की वर्षों इस फ्लू के पहुंचने में लगे और इस कारण यह इलाके इसके विनाशकारी प्रभावों से बचे रहे। हालांकि कई जगहों पर फ्लू को दूर रखने के लिए 100 साल पुरानी तकनीक को अपनाया।
संक्रमण रोकने के लिए भारत समेत कई देशों ने यात्रा पर लगाया प्रतिबंध!
भारत ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए कई देशों के वीजा प्रतिबंध लगा दिया है। अमेरिका ने यूरोपीय देशों के आवागमन पर 30 दिन का प्रतिबंध लगा दिया है। क्योंकि वर्ष 1918 में फैले घातक स्पेनिश फ्लू से अलास्का में एक समुदाय पूरी तरह से यूं ही बच पाया था। उन्होंने स्कूलों को बंद कर दिया, सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिया और मुख्य सड़क से गांव तक का रास्ता बंद कर दिया। यात्रा प्रतिबंध कम तकनीक वाला संस्करण था, जिसका उपयोग कोरोना वायरस को रोकने के लिए चीन के हुबेई प्रांत और उत्तरी इटली में किया जा रहा है।