मणिपुर की People's Libration Army जो भारतीय जवानों को बनाती है निशाना, चीन में मिलती ट्रेनिंग
नई दिल्ली। मणिपुर के चंदेल में गुरुवार को असम राइफल्स के जवानों को पांच साल बाद एक बार फिर निशाना बनाया गया। इस हमले को भारत की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) ने अंजाम दिया है। मणिपुर में पीएलए का नाम सुनकर आपको कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीसीपी) की सेना पीएलए का नाम याद आ गया होगा जो इस समय लद्दाख में जमी हुई है। चंदेल में हुए हमले में जहां तीन जवान शहीद हो गए हैं तो वहीं छह घायल गंभीर रूप से घायल हैं। घायल जवानों में से पांच असम राइफल्स के और एक सेना का जवान है। यह घटना भारत-म्यांमार बॉर्डर के करीब हुई।
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सन् 1978 में हुई थी शुरुआत
चंदेल वही जगह जहां पर पांच साल पहले जून 2015 में सेना काफिले पर आतंकियों ने हमला किया था। उस हमले में 17 जवान शहीद हो गए थे। इस हमले में भी पीएलए का ही नाम आया था। इंडियन आर्मी की वेबसाइट पर मणिपुर के पीएलए संगठन को एक उग्रवादी संगठन है और इसकी शुरुआत 25 सितंबर 1978 को एन बिशेस्वर ने की थी। उसका मकसद पूर्वी क्षेत्र को भारत से आजादी दिलाना था और अपने मकसद में सफलता हासिल करने के लिए मणिपुर को अपने बेस के तौर पर प्रयोग करना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि इस संगठन को चीन की मदद मिलती है और उसकी मदद से ही संगठन हमेशा आजादी की लड़ाई की अपील करता रहता है। इस संगठन के सिद्धांत और विचारधारा चीन की सेना पीएलए से काफी मिलती-जुलती है।
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चीन की पीएलए देती है ट्रेनिंग
आतंकवाद को करीब से समझने वाले विशेषज्ञों की मानें तो पीएलए-मणिपुर के उग्रवादियों को चीन की पीएलए से ही ट्रेनिंग मिलती है। साल 2015 में चंदेल में जब हमला हुआ तो पीएलए का नाम सबसे पहले आया। लेकिन चीन ने हमेशा चुप्पी साधे रखी। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने चाइनीज पीएलए और पीएलए-मणिपुर के बीच किसी तरह के गठजोड़ से साफ इनकार कर दिया। पीएलए के एक उग्रवादी ने इस बात को स्वीकारा था कि चीन की मिलिट्री ने उसे ट्रेनिंग दी है और इसके बाद भी ग्लोबल टाइम्स ने चीनी पीएलए का हाथ होने से साफ इनकार कर दिया।
आतंकी ने बताई थी चीन की असलियत
साल 2009 में पीएलए के आतंकी जिसकी पहचान सार्जेट रॉनी के तौर पर हुई थी, उसने पूछताछ में बताया था कि चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी, मणिपुर के पीएलए संगठन से करीबी संपर्क बनाए रखती है। उसने बताया था कि आतंकियों की 16 पलटन चीन में ट्रेनिंग लेकर वापस भारत आई हैं। रॉनी को एक ज्वॉइन्ट ऑपरेशन के बाद अगस्त 2009 में गिरफ्तार किया गया था। वह ऑपरेशन मणिपुर पुलिस और सेना ने मिलकर चलाया था। रॉनी ने उत्तर प्रदेश से अपनी पढ़ाई पूरी की थी और उसके पास उत्तराखंड के पंतनगर के कृषि महाविद्यालय से कृषि विज्ञान की डिग्री है।
कुछ आतंकी कैंप्स म्यांमार में भी
रॉनी सन् 1980 में मणिपुर वापस लौटा और पीएलए के प्रभाव में आ गया था। उसके बयान को इसलिए और ज्यादा विश्वसनीय माना गया था क्योंकि वह काफी समय से आतंकवाद में सक्रिय था। उसने बताया था कि चीनी आर्मी पीएलए के युवा उग्रवादियों को ट्रेनिंग देती है। आतंकी बड़े हथियारों के साथ ट्रेनिंग लेते हैं और फिर भारत वापस आ जाते हैं। उसने बताया था कि आतंकी लगातार ट्रेनिंग के लिए म्यांमार भी जाते रहते हैं। मणिपुर में भी कई अस्थायी कैंप्स हैं। मणिपुर-पीएलए में राज्य के मेइती-पंगल समुदाय के लोग शामिल हैं। इन्हें काफी पिछड़ा और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग माना
चीन की आंख और कान मणिपुर का PLA
नब्बे के दशक के आखिर में इस गुट ने मणिपुर पुलिस पर हमला न करने का एकपक्षीय फैसला सुनाया था। चीन पर अक्सर ही संगठन को हथियार मुहैया कराने के आरोप लगते रहे हैं। देश के सीमावर्ती इलाकों में दशकों से जारी उग्रवाद के बने रहने की यह एक बड़ी वजह है। 2012 में एनआईए ने माओवादी और पीएलए की मिलीभगत का खुलासा करते हुए बताया था माओवादियों ने 2006 से 2011 के बीच चीनी हथियारों को म्यामांर से कोलकाता होते हुए गुवाहाटी पहुंचाया था। यह भी कहा जाता है कि मणिपुर पीएलए चीन के लिए आंख और कान है।