PhD thesis:सुब्रमण्यम स्वामी ने उठाया था सवाल, IIM-A ने सरकार का निर्देश ठुकराया!
नई दिल्ली: भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने आईआईएम अहमदाबाद की एक पीएचडी थीसिस पर सवाल उठाए थे। उन्होंने तथ्यों के साथ प्रधानमंत्री को लिखा था कि इसमें जानबूझकर प्रोपेगेंडा फैलाने की कोशिश की गई है, जो कि ब्रिटिश इतिहासकारों ने भारत के लिए फैलाया था। लेकिन,केंद्र सरकार ने जब इंस्टीट्यूट से उन विवादास्पद थीसिस की कॉपी मांगी तो आईआईएम अहमदाबाद के डायरेक्टर एरोल डीसूजा उसे उपलब्ध करवाने से नियमों का हवाला देकर कन्नी काट गए। बता दें कि यह विवादित थीसिस कथित तौर पर जानबूझकर गलत तथ्यों पर तैयार की गई है,जिसका मकसद भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ प्रोपेगेंडा खड़ा करना हो सकता है।
पीएचडी थीसिस में हुआ 'खेल'
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक पिछले साल मार्च में आईआईएम अहमदाबाद में चुनावी लोकतंत्र पर तीन थीसिस पीएचडी डिग्री के लिए मंजूर की गई थी, और उस सेमिनार को खुद इसके डायरेक्टर डिसूजा ने मार्च, 2020 में अध्यक्षता की थी। जब राज्यसभा सांसद स्वामी ने उस थीसिस पर सवाल उठाए और प्रधानमंत्री को लिखा तो अप्रैल,2020 में शिक्षा मंत्रालय ने आईआईएम अहमदाबाद से उसकी एक कॉपी मांग ली। स्वामी ने प्रधानमंत्री को लिखे खत में आरोप लगाया था कि थीसिस में भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को 'जाति के आधार पर गठित' पार्टी बताया गया है; और बीजेपी को 'हिंदू-समर्थक ऊंची जाति की' पार्टी बताया है।
डायरेक्टर ने थीसिस की कॉपी देने से किया इनकार
पीएम को लिखे खत में स्वामी ने कहा कि प्रधानमंत्री अगड़ी जाति के नेता नहीं हैं और ब्रिटिश इतिहासकारों ने भारत के ऐसा चित्रित करके प्रचारित करने का प्रयास इसलिए किया है, ताकि यह दिखाया जा सके कि भारत कभी भी 'एक देश' के रूप में नहीं रहा और यहां का समाज कभी भी 'एकजुट' नहीं था। भाजपा सांसद ने सरकार से अपील की थी कि आईआईएम को निर्देश दिया जाए कि थीसिस की स्वतंत्र प्रोफेसरों से 'फिर से जांच हो' और तबतक पीएचडी को रोक दिया जाए। जब इंस्टीट्यूट से इस विवादित थीसिस की कॉपी मांगी गई तो डिसूजा ने शिक्षा मंत्रालय को लिखा कि वह (मंत्रालय) थीसिस से जुड़ी शिकायतों का मध्यस्थ नहीं है। जानकारी के मुताबिक उन्होंने मंत्रालय को यह भी जवाब दिया कि संस्थान के थीसिस एडवाइजरी एंड एग्जामिनेशन कमिटी ने थीसिस पढ़ा है और इसके कुछ हिस्से वाइवा के दौरान सेलेक्ट एकेडमिक कम्युनिटी के सामने भी रखे गए थे और अगर किसी को शिकायत है तो उसे उन्हीं फोरम पर अपनी बात रखनी चाहिए।
स्वायत्ता और जवाबदेही को लेकर पहले से छिड़ी है बहस
जब सोमवार को डिसूजा से संपर्क किया गया तो उन्होंने इसपर कोई भी टिप्पणी करने से साफ इनकार कर दिया। सूत्रों का कहना है कि उन्हें एक रिमाइंडर भी भेजा गया है, जिसका उनकी ओर से अभी तक जवाब नहीं मिला है। जानकारी के मुताबिक वो आईआईएम ऐक्ट का हवाला देकर सरकार को थीसिस की कॉपी देने से मना कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक कानून मंत्रालय के मुताबिक इस ऐक्ट के तहत देश के 20 बिजनेस स्कूलों के बहुत ही ज्यादा स्वायत्ता प्राप्त है और अगर सरकार को इनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई करनी होगी तो उसे पहले कानून में संशोधन करना पड़ेगा। बता दें कि यह मामला ऐसे समय में फिर उठा है जब आईआईएम की संस्थागत स्वायत्ता और जवाबदेही को लेकर पहले से बड़ी बहस छिड़ी हुई है। आईआईएम-कलकत्ता में भी बोर्ड ऑफ गवर्नर्स और फैकल्टी के एक वर्ग के बीच डायरेक्टर के अधिकारों को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है।