राम जन्मभूमि के बाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला पहुंचा कोर्ट, शाही मस्जिद हटाने की मांग
नई दिल्ली: पिछले साल श्रीरामजन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन रामलला के नाम कर दी थी। ऐसे में अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला स्थानीय कोर्ट में पहुंच गया है। शुक्रवार को श्रीकृष्ण विराजमान ने भी मथुरा की कोर्ट में 13.37 एकड़ भूमि को लेकर सिविल मुकदमा दायर किया। इसके साथ ही बगल से शाही ईदगाह मस्जिद हटाने की मांग की गई है। ये मामला श्रीकृष्ण विराजमान, रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य भक्तों ने दाखिल किया है।
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मुकदमे में एक्ट बना रुकावट
इस मुकदमे में साफ किया गया कि वादी कटरा केशव देव केवट, मौजा मथुरा बाजार के श्रीकृष्ण विराजमान हैं। वकील हरिशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन के मुताबिक यह मुकदमा मस्जिद ईदगाह प्रबंधन समिति द्वारा किए गए अतिक्रमण को हटाने के लिए दायर किया गया है। वहीं दूसरी ओर मुकदमे में एक बड़ी रुकावट प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 है। इस एक्ट के मुताबिक आजादी के वक्त 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था, भविष्य में भी उसी का रहेगा। इस एक्ट के तहत श्रीरामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को छूट दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में एक्ट के खिलाफ याचिका
ऐसा नहीं है कि ये कानून याचिकाकर्ता के संज्ञान में नहीं है। मामले में वकील विष्णु शंकर जैन 1991 के इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में पहले ही चुनौती दे चुके हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि ये एक्ट हिंदू देवी-देवाताओं को उस जमीन का हक पाने से रोकता है, जिसके वो हकदार पहले से हैं, लेकिन अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि वो सभी ऐतिहासिक गलतियों को नहीं सुधार सकता है।
'औरंगजेब ने गिराया था मंदिर'
रंजना अग्निहोत्री की ओर से दायर ताजा मामले में कहा गया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह या मुस्लिम समुदाय के किसी व्यक्ति को कटरा केशव देव की संपत्ति में कोई दिलचस्पी नहीं है। ये भूमि भगवान श्रीकृष्ण की है। इतिहासकार जदु नाथ सरकार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कोर्ट से कहा कि 1669-70 में औरंगजेब ने कटरा केशवदेव स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद उनकी ओर से वहां पर एक ढांचा तैयार किया गया, जिसे ईदगाह मस्जिद कहा जाता था। इसके करीब 100 साल बाद मराठा योद्धाओं ने इस पूरे इलाके को जीत लिया और फिर मंदिर का विकास और जीर्णोद्धार करवाया।
'भूमि राजा ने नीलामी में खरीदी'
मुकदमे में कहा गया है कि मराठाओं ने आगरा और मथुरा की भूमि को नजूल भूमि घोषित किया और 1803 में मथुरा को घेरने के बाद अंग्रेजों ने उसी तरह से इस भूमि को नजूल मानना जारी रखा। कुछ साल बाद 1815 में ब्रिटिश ने 13.37 एकड़ जमीन की नीलामी की और इसे राजा द्वारा खरीदा गया। इस तरह बनारस के राजा पटनीमल जमीन के मालिक बन गए। वहीं 1921 में मुसलमानों ने सिविल कोर्ट में इसको लेकर याचिका दाखिल की, लेकिन वो खारिज हो गई। वादी के मुताबिक फरवरी 1944 में राजा पाटनीमल के वारिसों ने 13.37 एकड़ जमीन पंडित मदन मोहन मालवीय, गोस्वामी गणेश दत्त और भीकन लालजी आत्रे को 19,400 रुपये में बेच दी, जिसका भुगतान जुगल किशोर बिड़ला ने किया था। बाद में मार्च 1951 को यहां एक ट्रस्ट गठित हुआ, जिसमें विशेष रूप से उल्लेख किया गया था कि पूरी 13.37 एकड़ जमीन ट्रस्ट में निहित होगी और यहां भव्य मंदिर का निर्माण होगा।
1973 में कोर्ट ने दिया था ये फैसला
इसके बाद अक्टूबर 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह के बीच एक समझौता किया गया, भले ही समाज के पास भूमि पर कोई स्वामित्व नहीं था। याचिका के मुताबिक ट्रस्ट ने देवता और भक्तों के हित के खिलाफ मस्जिद ईदगाह की कुछ मांगों को स्वीकार कर लिया। जुलाई 1973 में मथुरा के सिविल जज ने समझौता के आधार पर एक लंबित मुकदमे का फैसला किया और मौजूदा संरचनाओं के किसी भी परिवर्तन पर रोक लगा दी। अब याचिकाकर्ताओं ने इस भूमि से मस्जिद को हटाने की मांग की है। इसके साथ ही उन्होंने अयोध्या मामले का भी हवाला दिया है, जिसमें रामलला को न्यायिक व्यक्ति माना गया था।