56,825 वर्ग किमी वेस्टर्न घाट पर पर्यावरण मंत्रालय के ड्राफ्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका
नई दिल्ली। छह राज्यों में 56,825 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पश्चिमी घाट पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) घोषित करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। 2018 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया था। गाडगिल कमेटी और कस्तूरीरंगन कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर पर्यावरण मंत्रालय ने ये मसौदा अधिसूचना जारी थी। इसको लेकर अब केरल के एक एनजीओ ने सु्प्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
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केरल के एनजीओ कर्षका शब्दम ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में अनुरोध किया है कि केंद्र और केरल सरकार को पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (गाडगिल कमेटी रिपोर्ट) और उच्च स्तरीय कार्य समूह (कस्तूरीरंगन कमेटी रिपोर्ट) की सिफारिशों को लागू नहीं करने के लिए निर्देश दिया जाए। एनजीओ ने अपनी याचिका में पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना को असंवैधानिक कहते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया है क्योंकि ये किसानों को संविधान से मिली जीवन और जीविका की गारंटी का उल्लंघन करता है। एनजीओ ने 2018 की मंत्रालय की अधिसूचना को असंवैधानिक घोषित किये जाने की मांग की है। एनजीओ का कहना है कि 2018 की अधिसूचना के लागू होने से केरल में लाखों किसानों की आजीविका प्रभावित होगी क्योंकि उनकी कृषि भूमि चिन्हित पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) में आएगी।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 2018 के मसौदा अधिसूचना में छह राज्यों के 56,825 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पश्चिमी घाट पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है। पश्चिमी घाट गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु तक फैला है। पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में माधव गाडगिल की अध्यक्षता में कमेटी बनाई थी। जिसने घाटों के संरक्षण के लिए रणनीति बनाना और उनके स्थायित्व को लेकर 2011 में अपनी रिपोर्ट दी। गाडगिल समिति की रिपोर्ट की आलोचना के बाद 2013 में कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में कमेटी बनी, जिसने इसी साल अपनी रिपोर्ट दे दी।
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