न्यूजीलैंड में कैंसर से हुई पालतू कुत्ते की मौत, NRI परिवार ने भारत आकर हिंदू रीति से किया पिंडदान
नई दिल्ली- गांधीजी कहा करते थे- "एक देश की महानता और उसके नैतिक विकास को वहां जानवरों के साथ होने वाले व्यवहार से परखा जा सकता है।" न्यूजीलैंड में रहने वाले एक एनआरआई परिवार ने अपनी मातृभूमि की उसी महानता को एक बार फिर से साबित करके दिखाया है। इन दिनों न्यूजीलैंड में रहने वाला एक भारतीय परिवार बिहार आया हुआ है और वह भी सिर्फ अपनी संस्कृति के मुताबिक रीति-रिवाज निभाने के लिए। वहां परिवार में 10 साल तक सदस्य के तौर पर रहे एक कुत्ते की लंबी बीमारी से मौत हो गई थी। उसी के पिंड दान और श्राद्ध कर्मों के लिए वह परिवार भारत आया है और कुत्ते के अंतिम संस्कार में वही सारे विधान निभा रहा है, जैसे किसी इंसान के लिए की जाती है।
कुत्ते के पिंडदान के लिए भारत आया परिवार
कहते हैं कि एक कुत्ता इंसान का सबसे अच्छा दोस्त हो सकता है। न्यूजीलैंड के ऑकलैंड में दो दशकों से रह रहे प्रमोद चौहान के परिवार उसके सबसे बड़े गवाह हैं। करीब 10 साल से उनके परिवार के सदस्य बनकर रह रहे लाइकेन नाम के एक लैब्राडोर ने जबसे कैंसर से लड़कर दम तोड़ा है, पूरा परिवार गम में डूबा है। मूलरूप से बिहार के पूर्णिया के रहने वाले प्रमोद चौहान अपनी पत्नी रेखा और बेटी के साथ पिछले 13 फरवरी को ही लाइकेन के अंतिम संस्कार से जुड़े कर्मकांडों को पूरा करने के लिए पटना आए गए, क्योंकि उसे चौहान दंपति कुत्ता नहीं, अपना बेटा समझते थे। उनके एक मित्र हिमाकर मिश्रा ने बताया कि 'लाइकेन प्रमोद और उसके परिवार के लिए परिवार के सदस्य की तरह था और ऑकलैंड में उसका हिंदू रीति-रिवाज से दाह-संस्कार किया गया। '
गंगा में अस्थि प्रवाह और गया में पिंडदान
जब लाइकेन की ऑकलैंड में मौत हो गई तो प्रमोद चौहान ने खुद अपने बेटे की तरह ही उसे मुखाग्नि दी और उसकी अस्थियां लेकर गंगा में प्रवाह के लिए न्यूजीलैंड से पटना आ गए। जब उन्होंने पटना में अस्थियां पवित्र गंगा में प्रवाहित कर दीं तो उसके पिंडदान की रश्म निभाने के लिए गया पहुंचे। हिंदुओं की मान्यता के मुताबिक जब तक किसी इंसान को फलगू नदी के किनारे गया में पिंड दान नहीं दे दिया जाता, उसकी मुक्ति का मार्ग साफ नहीं होता। इसी इरादे से प्रमोद चौहान और उनकी पत्नी रेखा सिंह ने पिछले 15 फरवरी को निर्धारित परंपरा के तहत गया में दिवंगत आत्मा की शांति के लिए पिंड दान की प्रक्रिया भी पूरी की।
श्राद्ध के लिए विशाल भंडारे का आयोजन
अब न्यूजीलैंड में लकड़ी के कारोबार से जुड़ प्रमोद चौहान अब अपनै पैतृक गांव पूर्णिया के सिपाही टोला पहुंच चुके हैं। वहां 23 फरवरी को वह अपने बेटे की तरह प्यारे लाइकेन के लिए 13वीं का आयोजन कर रहे हैं। इस मौके पर वहां उन्होंने विशाल भंडारे का आयोजन करवाया है, जहां वह ब्रह्म भोज और गरीबों को भोजन कराने के अलावा दान से जुड़ी परंपराओं को निभाएंगे। प्रमोद चौहान के मुताबिक, 'लाइकेन हिंदू संस्कृति में पला-बढ़ा और हमारे साथ हिंदू पर्व-त्योहारों में शामिल रहा। उसके श्राद्ध में हमारे सारे रिश्तेदार शामिल होंगे।'
कभी भुला न पाएंगे- एनआरआई परिवार
आज प्रमोद का लकड़ी का कारोबार चीन समेत दुनिया के कई देशों में फैला है। प्रमोद कहते हैं किसी के बेटे के जाने की जो कमी हो सकती है, वही कमी वह लाइकेन के लिए महसूस कर रहे हैं। उनकी छोटी बेटी भी लाइकेन के श्राद्ध के लिए भारत आई है। उनकी पत्नी कहती हैं कि बड़ी बेटी विष्णुप्रिया और छोटी बेटी तनु प्रिया की तरह ही लाइकेन उनके परिवार का सदस्य था, जिसे वह कभी भुला नहीं पाएंगे।
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