'लोग मुझे क़साब की बेटी बोलते थे'
मुंबई हमले की सबसे छोटी उम्र की चश्मदीद, देविका रोटावन ने बताया, मुंबई में क्या हुआ था 26 नवंबर की रात? उन्होंने बताया कि लोग उन्हें अपने घर पर बुलाने से कतराते थे। कसाब के खिलाफ गवाही देने वजह से उसे कसाब की बेटी कहकर बुलाया जाता था।
नौ साल पहले मुंबई में कुछ चरमपंथियों ने हमला कर दर्जनों लोगों को मार डाला. इस घटना मे कई लोग घायल हुए थे.
इस हमले में बड़े होटलों, मुंबई के मुख्य रेलवे स्टेशन और यहूदियों के धार्मिक स्थल को निशाना बनाया गया था.
हमले में शामिल एकमात्र बचे और पकड़े गए हथियारबंद हमलावर अजमल कसाब को 2012 में भारत ने फांसी दे दी.
क़साब की पहचान देविका रोटावन ने की, जिसके बिना पर अजमल को फांसी हुई.
देविका उस समय चश्मदीद गवाहों में सबसे छोटी उम्र की थीं. मुंबई के सीएसटी रेलवे स्टेशन पर फ़ायरिंग में वो घायल हो गई थीं.
उनके पैरों के ज़ख्म अब भर गए हैं, लेकिन निशान अभी भी मौजूद हैं. जब ये हमला हुआ, उस समय उनकी उम्र 9 साल 11 महीने थी.
अब 18 बरस की हो चुकीं देविका को, नौ साल पहले गुजरी उस रात का हर एक पल आज भी याद है.
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नौ साल पहले क्या हुआ था, बता रही हैं देविका रोटावन-
मैं, मेरा भाई और पिता मेरे बड़े भाई से मिलने के लिए पुणे जा रहे थे.
मैंने गोलियों की आवाज़ सुनी. सब इधर-उधर भागने लगे थे, लोग एक दूसरे के ऊपर गिर रहे थे. हमने भी भागने की कोशिश की. हमने भी दौड़ लगाने की कोशिश की. उसी समय क़साब की बंदूक से निकली गोली मेरे पैर में लगी और मैं गिर गई. मैं बेहोश हो गई थी.
मैंने क़साब को देखा था. इसके बाद 10 जून को कोर्ट में उसके ख़िलाफ़ बयान दिया. कोर्ट में मैंने उसे उसी आतंकवादी के रूप में पहचाना जिसने मुझे गोली मारी थी.
लेकिन गवाह बनने के मेरे फैसले ने मुझे समाज में अलग थलग कर दिया था. चूंकि मैंने क़साब के ख़िलाफ़ बयान दिया था, तो कुछ लोग मुझे क़साब की बेटी बोलते थे.
'अजमल क़साब ने जुर्म क़बूल किया'
अगर कोई कार्यक्रम होता है या शादी विवाह होता है तो लोग हमें बुलाने से क़तराते हैं. उन्हें डर लगता है कि आतंकवादी आ जाएंगे और हमला बोल देंगे. जब हमें गांव जाना होता है तो हमें होटल में रुकना पड़ता है. लोग हमें घर पर नहीं ठहराते.
26/11 के बाद तो मुझे स्कूल में दाख़िला मिलने में भी दिक्कत हुई.
लेकिन अब मैं पढ़ रही हूं और आईपीएस अफ़सर बनना चाहती हूं. मैं पढ़ना चाहती हूं और आईपीएस अफ़सर बनकर आतंकवादियों को मारना चाहती हूं.
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दो देशों में उलझा मामला
कसाब को फांसी दिए जाने के बावजूद, बांद्रा के अपने छोटे से घर में रह रहीं देविका को लगता है कि 26/11 के पीड़ितों को पूरी तरह न्याय मिलना अभी बाकी है.
भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह मुद्दा हमेशा उठाता आ रहा है कि मुंबई हमले के असली मास्टरमाइंड पाकिस्तान में हैं और जब तक उन्हें सज़ा नहीं मिलेगी इंसाफ़ पूरा नहीं होगा.
'जमात-उद-दावा' के हाफ़ीज सईद और 'लश्कर-ए-तैय्यबा' के ज़की-उर-रहमान लखवी का नाम इसमें आता है. भारत ने अपनी तरफ से सबूत भी पेश किए लेकिन फिर भी मुक़दमा अब तक अपने अंजाम तक नहीं पहुंचा है.
इस्लामाबाद में डिफ़ेंस लॉयर रिज़वान अब्बासी के अनुसार, "पाकिस्तानी ट्रायल कोर्ट ने भारतीय गवाह के लिए बहुत समन इश्यू किए हैं. विदेश विभाग को कई ख़त लिखे जा चुके हैं. लेकिन कोई इंडिया की तरफ़ से इस बात का जवाब नहीं आ रहा कि वो गवाह भेजेंगे या नहीं."
जबकि भारत का कहना है कि वो सारे सबूत पेश कर चुका है.
इस मामले से जुड़े रहे वरिष्ठ वकील उज्जवल निकम का कहना है, "अजमल क़साब को फांसी दिए जाने के बाद भारत सरकार के अधिकारियों के साथ मैं खुद पाकिस्तान गया था और वहां उन लोगों के साथ चर्चा की. वहां गृह मंत्रालय को सबूतों के बारे में बताया. लेकिन उनका कहना था कि आप सबूत दीजिए."
वो कहते हैं, "साबित हम कैसे दें. साजिश आपके यहां हुई है, छानबीन तो आपको करना चाहिए."
मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड बताए जा रहे लखवी को पाकिस्तान में एक बार गिरफ़्तार कर रिहा किया है, साथ ही हाफिज़ सईद को नज़रबंद होने के बाद रिहा हो चुके हैं.
दोनों देशों के बीच नौ साल से चल रही इंसाफ की ये जंग फ़िलहाल आरोपों, सबूतों और गवाहों के बीच झूल रही है.
भारत ने 26/11 से कोई सबक़ सीखा है?
और किनकी थी 26/11 में अहम भूमिका
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