पटना HC का नीतीश सरकार को निर्देश, सुनिश्चित करें कि बच्चे ना मांगे भीख, सभी को मिले मिड-डे मील
नई दिल्ली। देश में कोरोना वायरस के चलते तीन महीनों से अधिक समय से स्कूल बंद हैं, ऐसे में सिर्फ बच्चों को अपनी पढ़ाई को लेकर ही नहीं बल्कि भूख की समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के भागलपुर जिले के बाडबिला गांव के मुसहरी टोला के बच्चे रोजाना भूख के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। स्कूल बंद होने के चलते बच्चों को मिड-डे मील नहीं मिल पा रहा है जिससे वहां के कई बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के दखल और मीडिया रिपोर्ट के बाद पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार को फिर से मिड-डे मील शुरू करने का निर्देश दिया है।
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मिड-डे मील योजना के बंद होने से बच्चे भूखे
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि मंगलवार को पटना हाई कोर्ट ने मामले पर संज्ञान लेते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिया कि कोई भी बच्चा भिक्षावृत्ति की किसी भी गतिविधि में शामिल न हो या भोजन की कमी के कारण अधिक ऐसी गतिविधि में धकेला ना जाए। कोर्ट ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब देने को कहा है। बता दें कि सोमवार को छपी खबर में बताया कि बड़बिल गांव के मुसहरी टोला के बच्चे मिड-डे मील योजना के बंद होने के बाद कूड़ा बीनने की ओर रुख कर रहे थे।
बिहार सरकार ने दिया ये आदेश
दोपहर के भोजन के अभाव में भागलपुर के एक महादलित गांव की दुर्दशा पर प्रकाश डालने वाली रिपोर्ट के बाद बिहार सरकार ने स्कूली बच्चों को तीन महीने के लिए राशन वितरित करने और उनके बैंक खातों में या उनके अभिभावक के खाते में धनराशि स्थानांतरित करने का राज्यव्यापी आदेश जारी किया था। यह आदेश तब भी जारी किया गया जब एनएचआरसी ने द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट का संज्ञान लिया और केंद्र और बिहार को नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया कि यह एक 'गंभीर मुद्दा' है।
कबाड़ बीनने लगे थे बच्चे
मंगलवार को चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस कुमार की खंडपीठ ने समाचार रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा, समाचार लेख सार्वजनिक महत्व और प्रासंगिकता के मुद्दे पर प्रकाश डालता है। यह समाज के सबसे निचले तबके से आने वाले बच्चों के कल्याण की चिंता करता है, जो समाज के हाशिए, दलित, सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित वर्ग के लोग हैं। स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त पोषण आवश्यक है।
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