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पूर्वी यूपी में BTV के अलावा गैरयादव पिछड़ों से भाजपा को करिश्मे की उम्मीद

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नई दिल्ली- तीन चरणों के चुनाव के बाद चौथे चरण से राजनीतिक दलों का फोकस पूर्वी उत्तर प्रदेश की ओर शिफ्ट हो चुका है। चुनावी गठबंधन वही है, पार्टियां वही हैं, लेकिन फिर भी इलाका बदलने से सभी दलों को चुनावी रणनीति में थोड़ा बदलाव लाना पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश का चुनाव मूल रूप से जातीय समीकरणों पर ही आधारित होता है। लेकिन, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं रुहेलखंड की तुलना में पूर्वांचल की डेमोग्राफी भी बदल जाती है। इसलिए सारे दलों ने उसी को ध्यान में रखकर सीटों का बंटवारा भी किया है और उसी के हिसाब से प्रत्याशियों को भी उतारा है। पूर्वी यूपी की सियासी अहमियत इसलिए बढ़ जाती है कि यहीं वाराणसी लोकसभा क्षेत्र भी है, जिस पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। यहीं पर आजमगढ़, रायबरेली और अमेठी जैसी हाईप्रोफाइल सीटें भी हैं। सभी राजनीतिक दल तैयार हैं, नेता कमर कस चुके हैं, चौथे दौर का काउंटडाउन शुरू हो चुका है, अंतिम दौर के लिए नामांकन जारी है, 26 अप्रैल को नरेंद्र मोदी पर्चा भरने वाराणसी जा रहे हैं। जानकार मानते हैं कि 2014 में मोदी के यहां से लड़ने से पूर्वी के बाकी सीटों पर भी बहुत ज्यादा असर पड़ा था। इसबार भी पार्टी को वैसे ही करिश्मे की उम्मीद है। उसने टिकट बांटने में जातीय गुना-गणित का पूरा ख्याल रखा है। बाकी दल और गठबंधन भी पीछे नहीं हैं।

बीजेपी की रणनीति

बीजेपी की रणनीति

अगर भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो वह एसपी-बीएसपी गठबंधन का सामना करने के लिए पूर्वी यूपी में अपर-कास्ट वोटरों और गैर-यादव ओबीसी (OBC) को एकजुट करने पर मुस्तैदी से जुटी रही है। यहां पार्टी को उम्मीद है कि मोदी का करिश्मा इस क्षेत्र में एकबार फिर से 2014 जैसा चुनावी हालात पैदा कर सकता है। अगर पश्चिमी यूपी में पार्टी ने दलित-मुस्लिम वोट के काट में जाट-गुर्जरों मतों की गोलबंदी पर भरोसा जताया था, तो अब उसे मौर्या, कुशवाहा, निषाद, बिंद और मल्लाह जैसे अति-पिछेड़े वर्गों का समर्थन मिलने का विश्वास है। इसके अलावा ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य (BTV-ब्राह्मण,ठाकुर, वैश्य) मतदाताओं को तो वह अपना कोर वोटर मानकर चल ही रही है।

29 अप्रैल को चौथे चरण में जिन सीटों पर चुनाव हो रहे हैं वहां टिकट देने में भी पार्टी ने जातीय समीकरणों का पूरा गणित बिठाने की कोशिश की है। मसलन बुंदेलखंड के इलाके में पार्टी ने झांसी संसदीय सीट से एक ब्राह्मण अनुराग शर्मा को टिकट दिया है, तो हमीरपुर से एक ठाकुर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल को मैदान में उतारा है। जबकि, बांदा में आरके सिंह पटेल (OBC) को टिकट दिया है और जालौन से एक दलित उम्मीदवार को चुनाव लड़ा रही है। अनुसूचित जातियों के लिए रिजर्व सीटों में बीजेपी ने इटावा से रमा शंकर कठेरिया (दलित), हरदोई से जय प्रकाश (पासी) और जालौन से भानू प्रताप (कोरी) पर विश्वास जताया है। इसी जातीय गुना-भाग को ध्यान में रखकर भाजपा ने निषाद पार्टी के संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को पार्टी में शामिल कराकर उन्हें संत कबीर नगर से टिकट दिया है। गोरखपुर उपचुनाव में उन्होंने ही भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त दी थी। भाजपा ने कुल 4 ब्राह्मण उम्मीदवारों को इसबार टिकट दिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता नवीन श्रीवास्तव का कहना है कि,"पार्टी ने समाज के सभी वर्गों को टिकट दिए हैं।" इसके अलावा मोदी के नाम पर वोट बटोरने की रणनीति के तहत पार्टी ने हर चुनाव के बीच में उनकी दो से तीन बड़ी रैली आयोजित कराने की भी तैयारी कर रखी है।

महागठबंधन का गुना-गणित

महागठबंधन का गुना-गणित

आने वाला दौर यादवों के गढ़ (रुहेलखंड) से बाहर निकल चुका है। इसलिए अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश का चुनाव एसपी-बीएसपी गठबंधन के लिए भी चुनौतियों से भरपूर है। हालांकि, फिर भी समाजवादी पार्टी को वाराणसी, चंदौली, बलिया, आजमगढ़ और फूलपुर संसदीय सीटों पर यादव वोट बैंक पर ही ज्यादा भरोसा है। पार्टी ने टिकट बंटवारे में भी इस गणित का पूरा ख्याल रखा है। पार्टी प्रवक्ता उदयवीर सिंह का कहना है कि, "एसपी के आधे यादव उम्मीदवारों को पूर्वी यूपी से उतारा गया है।" गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी पार्टी ने शालिनी यादव नाम की प्रत्याशी पर ही दांव लगाया है। उनके परिवार का क्षेत्र के यादवों में खासा दबदबा माना जाता है। आजमगढ़ से अखिलेश यादव का चुनाव लड़ना भी उसी रणनीति का हिस्सा है, जो बाकी सीटों पर भी पार्टी के पक्ष में गोलबंदी पर असर डाल सकते हैं। सपा प्रवक्ता ने बताया कि, "हमें पूर्वी यूपी और अवध क्षेत्र के लिए अपनी रणनीति बदलने की जरूरत नहीं है। बीएसपी और एसपी दोनों सही सामाजिक गुटबंदी है।" उनका दावा है कि महागठबंधन को 50% वोट मिलेंगे। जबकि उसकी सहयोगी बीएसपी को लगता है कि गन्ना किसानों का बकाए का मुद्दा नेपाल से सटे इलाकों में उनके गठबंधन के पक्ष में जा सकता है।

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कांग्रेस की कोशिश

कांग्रेस की कोशिश

कांग्रेस के लिए हमेशा से रायबरेली और अमेठी सबसे महत्वपूर्ण सीटें रही हैं। इन दोनों सीटों पर पांचवें चरण में मतदान होना है। राहुल गांधी ने प्रियंका को पूर्वी यूपी की जिम्मेदारी देकर उन्हें इस इलाके में पार्टी संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी है। पिछले दो-तीन महीनों से वह इस क्षेत्र में पूरा जोर भी लगा रही हैं। कांग्रेस को लगता है कि प्रियंका को आगे करने से वह खासकर ब्राह्मण मतदाताओं को ज्यादा प्रभावित कर सकती है। ब्राह्मणों के अलावा दलित मतदाताओं से भी उसे काफी उम्मीदें हैं। पार्टी समर्थकों का हौसला बरकरार रहे इसलिए राहुल प्रियंका को वाराणसी से मोदी के खिलाफ उतारने को लेकर सस्पेंस भी बनाए हुए हैं। लेकिन, जानकारी के मुताबिक कांग्रेस को सबसे ज्यादा दिक्कत इसबार अमेठी में ही आ रही है और हाल ही में केंद्रीय मंत्री और अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा उम्मीदवार स्मृति ईरानी के खिलाफ प्रियंका गांधी वाड्रा का गुस्सा भी कहीं न कहीं परिवार की चिंता जाहिर करता है। इस क्षेत्र में पार्टी और परिवार अपना खोया जनाधार फिर से पाने के लिए पूरा दमखम लगा चुका है। लेकिन, प्रियंका इफेक्ट कांग्रेस की कितनी मदद करता है और उससे भाजपा और महागठबंधन में से किसको नुकसान होता है, इसका अंदाजा लगाना बहुत ही मुश्किल है।

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English summary
Parties shift gears for east UP battle
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